उत्तररामचरितम् की सूक्तियों में किसने किससे कहा, अर्थ, और संदर्भ के साथ उत्तर प्रस्तुत करता हूँ। इसे व्यवस्थित और स्पष्ट रूप में तैयार किया गया है।
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"अनिर्भिन्नो गभीरत्वादन्तर्गूढघनव्यथः।"
- किसने कहा: तमसा ने मुरला से।
- अर्थ: राम का दुःख गहराई में छिपा है और बाहर से स्पष्ट नहीं है।
- संदर्भ: राम के वियोग के करुणा रस का वर्णन।
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"पुटपाकप्रतीकाशो रामस्य करुणो रसः।"
- किसने कहा: तमसा ने मुरला से।
- अर्थ: राम का करुण रस ऐसा है जैसे भट्टी में पकाया गया कुछ।
- संदर्भ: राम के अंतर्मन में छिपे दुःख का चित्रण।
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"सन्तापजां सपदि यः परित्यज्य मूर्च्छाम्।"
- किसने कहा: राम ने तमसा से।
- अर्थ: वियोग की पीड़ा इतनी तीव्र है कि व्यक्ति मूर्छित हो जाता है।
- संदर्भ: सीता के वियोग में राम की स्थिति।
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"स्नेहाधिकायः शोकः सन्धारणीयः।"
- किसने कहा: तमसा ने सीता से।
- अर्थ: गहरे प्रेम के कारण उत्पन्न शोक को सहन करना ही धर्म है।
- संदर्भ: सीता को सांत्वना देते हुए।
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"अन्तःकरणतत्त्वस्य दम्पत्योः स्नेहसंश्रयात्।"
- किसने कहा: तमसा ने मुरला से।
- अर्थ: पति-पत्नी के स्नेह का गहन संबंध।
- संदर्भ: सीता और राम के प्रेम को समझाते हुए।
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"आनन्दग्रन्थिरेकोऽयमपत्यमिति पठ्यते।"
- किसने कहा: सीता ने तमसा से।
- अर्थ: संतान ही माता-पिता के आनंद का सूत्र है।
- संदर्भ: कुश और लव के प्रति सीता के स्नेह को प्रकट करते हुए।
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"हा धिक्! तान्येव चिरपरिचितान्यक्षराणि।"
- किसने कहा: सीता ने तमसा से।
- अर्थ: वही पुराने शब्द जो सीता के वियोग को पुनः ताजा कर देते हैं।
- संदर्भ: पञ्चवटी के स्मरण पर।
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"सन्निकर्षो निरुध्यते।"
- किसने कहा: राम ने तमसा से।
- अर्थ: प्रिय के निकट होने की इच्छा को रोकना असंभव है।
- संदर्भ: राम, सीता के बिना अधीर हो रहे हैं।
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"आश्च्योतनं नु हरिचन्दनपल्लवानां।"
- किसने कहा: राम ने वासंती से।
- अर्थ: प्रिय के प्रेम का अनुभव अमृत के समान है।
- संदर्भ: सीता को पुनः प्राप्त करने की आशा।
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"शोकक्षोभे च दयं प्रलापैरेव धार्यते।"
- किसने कहा: तमसा ने सीता से।
- अर्थ: शोक में मन को संभालने का एकमात्र उपाय प्रलाप है।
- संदर्भ: राम और सीता के वियोग का संदर्भ।
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"कुसुमसमबन्धनं मे दयम्।"
- किसने कहा: तमसा ने मुरला से।
- अर्थ: प्रेम और दया का बंधन कोमल और सूक्ष्म होता है।
- संदर्भ: राम और सीता के प्रेम का वर्णन।
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"उपायानां भावादविरलविनोदव्यतिकरैः।"
- किसने कहा: तमसा ने मुरला से।
- अर्थ: जीवन में कठिनाइयों से उत्पन्न रस ही महान है।
- संदर्भ: राम के संघर्षों का महत्व।
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"प्रसन्नं सौजन्याद्दयितकरुणैर्गाढकरुणम्।"
- किसने कहा: तमसा ने सीता से।
- अर्थ: प्रिय के प्रति करुणा और प्रेम गहरा और सौम्य होता है।
- संदर्भ: राम के प्रेम को व्यक्त करना।
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"अयि कठोर! यशः किल ते प्रियं।"
- किसने कहा: वासंती ने राम से।
- अर्थ: यश का लोभ प्रिय का दुःख बन सकता है।
- संदर्भ: राम के कर्तव्य और वियोग का संघर्ष।
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"ज्वलति तनूमन्तर्दाहः करोति न भस्मसात्।"
- किसने कहा: राम ने तमसा से।
- अर्थ: आंतरिक दुःख व्यक्ति को जलाता है, पर नष्ट नहीं करता।
- संदर्भ: राम के दुःख की तीव्रता।
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"नवकुलयस्निग्धैः अङ्गैः ददन्नयनोत्सवं।"
- किसने कहा: राम ने वासंती से।
- अर्थ: प्रिय का सौंदर्य आँखों के लिए उत्सव है।
- संदर्भ: सीता के सौंदर्य का वर्णन।
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"कुसुममिव धर्मो ग्लपयति।"
- किसने कहा: राम ने तमसा से।
- अर्थ: धर्म भी कभी-कभी जीवन को कष्टकारी बना देता है।
- संदर्भ: सीता का त्याग करते समय।
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"तदद्याप्युच्छ्वासो भवति ननु लाभो हि रुदितम्।"
- किसने कहा: राम ने तमसा से।
- अर्थ: शोक में आंसू राहत का माध्यम बनते हैं।
- संदर्भ: राम के वियोग की स्थिति।
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"क्वासि प्रिये जानकि! देवि! प्रसीद प्रसीद।"
- किसने कहा: राम ने सीता से।
- अर्थ: वियोग में प्रिय का आह्वान।
- संदर्भ: राम का करुणा भरा स्वर।
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"अन्तर्लीनस्य दुःखाग्नेरद्योद्दामं ज्वलिष्यतः।"
- किसने कहा: राम ने वासंती से।
- अर्थ: भीतर का दुःख बाहर की परिस्थितियों को भी प्रभावित करता है।
- संदर्भ: राम के शोक का वर्णन।
- "प्रत्युप्तस्येव दयिते तृष्णादीर्घस्य चक्षुषः।"
- किसने कहा: राम ने सीता के संदर्भ में।
- अर्थ: प्रिय के दर्शन से ही गहरी तृष्णा का अंत होता है।
- संदर्भ: राम का सीता के प्रति प्रेम।
- "पञ्चवटीप्रवेशो महाननर्थः।"
- किसने कहा: तमसा ने मुरला से।
- अर्थ: पञ्चवटी में पुनः प्रवेश राम के लिए दुखदायी है।
- संदर्भ: राम के वियोग का भय।
- "स्नेहस्य सञ्जीवनोपायस्तु मूलतः सन्निहितः।"
- किसने कहा: तमसा ने मुरला से।
- अर्थ: स्नेह में ही जीवन का आधार छिपा हुआ है।
- संदर्भ: राम और सीता के प्रेम की गहराई।
- "वाल्मीकितपोवनोपकण्ठात्परित्यज्य।"
- किसने कहा: तमसा ने मुरला से।
- अर्थ: वाल्मीकि के आश्रम के पास ही सीता को त्यागा गया था।
- संदर्भ: सीता के वनवास की कथा।
- "सन्निकर्षो निरुध्यते।"
- किसने कहा: राम ने तमसा से।
- अर्थ: प्रिय की निकटता को रोकना संभव नहीं है।
- संदर्भ: राम का सीता के प्रति प्रेम।
- "स्नेहाधिकायः शोकः।"
- किसने कहा: तमसा ने सीता से।
- अर्थ: गहरा प्रेम, गहरा शोक उत्पन्न करता है।
- संदर्भ: राम और सीता के वियोग की व्याख्या।
- "सन्तापजां सपदि यः परित्यज्य मूर्च्छाम्।"
- किसने कहा: राम ने।
- अर्थ: वियोग का दुःख इतना प्रबल है कि वह मूर्छा ला सकता है।
- संदर्भ: राम की वियोग स्थिति।
- "कुसुमसमबन्धनं मे दयम्।"
- किसने कहा: तमसा ने मुरला से।
- अर्थ: प्रेम और दया का संबंध कोमल और सूक्ष्म होता है।
- संदर्भ: करुणा और प्रेम का महत्व।
- "तमसा! समाश्वसिहि।"
- किसने कहा: तमसा ने सीता से।
- अर्थ: सांत्वना देना।
- संदर्भ: सीता को उनके दुःख में सांत्वना।
- "पृथ्वीभागीरथीभ्यामप्युभाभ्याम।"
- किसने कहा: तमसा ने मुरला से।
- अर्थ: कुश और लव का पालन पृथ्वी और गंगा ने किया।
- संदर्भ: सीता के बच्चों का पालन।
- "रामस्य करुणो रसः।"
- किसने कहा: मुरला ने।
- अर्थ: राम के जीवन का करुण रस उनकी करुणा का प्रतीक है।
- संदर्भ: राम के वियोग की व्याख्या।
- "नवकुलयस्निग्धैः।"
- किसने कहा: राम ने वासंती से।
- अर्थ: नई आशा का संकेत प्रिय का सौंदर्य है।
- संदर्भ: सीता के सौंदर्य का वर्णन।
- "सन्निकर्षो निरुध्यते।"
- किसने कहा: राम ने।
- अर्थ: प्रिय के निकट जाने की इच्छा को रोकना कठिन है।
- संदर्भ: राम का सीता के प्रति प्रेम।
- "पञ्चवटीप्रवेशो।"
- किसने कहा: तमसा ने।
- अर्थ: पञ्चवटी का प्रवेश दुःखद हो सकता है।
- संदर्भ: राम के दुःख की आशंका।
- "स्वयं कृत्वा त्यागं।"
- किसने कहा: राम ने।
- अर्थ: त्याग करने के बाद भी पीड़ा का अनुभव होता है।
- संदर्भ: सीता का त्याग।
- "शोकक्षोभे च दयं।"
- किसने कहा: तमसा ने।
- अर्थ: शोक का प्रभाव केवल करुणा से कम हो सकता है।
- संदर्भ: सीता के दुःख का संदर्भ।
- "स्नेहाधिकायः।"
- किसने कहा: तमसा ने।
- अर्थ: प्रेम और पीड़ा का गहरा संबंध।
- संदर्भ: राम और सीता के प्रेम का वर्णन।
- "कुसुममिव धर्मो।"
- किसने कहा: राम ने।
- अर्थ: धर्म भी कभी-कभी कष्टकारी हो सकता है।
- संदर्भ: राम का धर्मपालन।
- "प्रत्युप्तस्येव दयिते।"
- किसने कहा: राम ने।
- अर्थ: प्रिय का प्रेम हर कठिनाई का समाधान है।
- संदर्भ: राम का सीता के प्रति प्रेम।
- "तमसा! गच्छावः।"
- किसने कहा: सीता ने।
- अर्थ: आगे बढ़ने की प्रेरणा।
- संदर्भ: भागीरथी तक पहुंचने का संवाद।
- "वाल्मीकितपोवन।"
- किसने कहा: तमसा ने।
- अर्थ: वाल्मीकि का तपोवन शरण का स्थान है।
- संदर्भ: सीता के निर्वासन का स्थान।
- "तदद्याप्युच्छ्वासो।"
- किसने कहा: राम ने।
- अर्थ: दुःख की अनुभूति अभी भी शेष है।
- संदर्भ: राम का वियोग।
- "तृष्णादीर्घस्य चक्षुषः।"
- किसने कहा: राम ने।
- अर्थ: प्रिय के दर्शन से तृष्णा समाप्त होती है।
- संदर्भ: सीता के प्रति राम का प्रेम।
- "पृथ्वीभागीरथी।"
- किसने कहा: तमसा ने।
- अर्थ: पृथ्वी और गंगा ने कुश और लव का पालन किया।
- संदर्भ: सीता के बच्चों का पालन।
- "तमसा! समाश्वसिहि।"
- किसने कहा: तमसा ने सीता से।
- अर्थ: सांत्वना और सहानुभूति।
- संदर्भ: सीता के वियोग को कम करने का प्रयास।
- "कुसुममिव धर्मो ग्लपयति।"
- किसने कहा: राम ने।
- अर्थ: धर्म कभी-कभी जीवन को कष्टमय बना देता है।
- संदर्भ: राम का सीता के वियोग और अपने धर्मपालन का चिंतन।
- "स्वयं कृत्वा त्यागं विलपनविनोदोऽप्यसुलभः।"
- किसने कहा: राम ने।
- अर्थ: त्याग करने के बाद भी दुःख से राहत नहीं मिलती।
- संदर्भ: सीता के त्याग के बाद राम का मनोभाव।
- "स्नेहाधिकायः शोकः।"
- किसने कहा: तमसा ने।
- अर्थ: गहरा स्नेह, गहरा शोक उत्पन्न करता है।
- संदर्भ: राम और सीता के वियोग के संदर्भ में।
- "सन्तापजां सपदि यः परित्यज्य मूर्च्छाम्।"
- किसने कहा: राम ने।
- अर्थ: वियोग का दुःख इतना प्रबल होता है कि व्यक्ति मूर्छित हो जाता है।
- संदर्भ: सीता के बिना राम की स्थिति।
- "पञ्चवटीप्रवेशो महाननर्थः।"
- किसने कहा: तमसा ने।
- अर्थ: पञ्चवटी का प्रवेश राम के लिए पीड़ा का कारण हो सकता है।
- संदर्भ: राम के वियोग का वर्णन।
- "सन्निकर्षो निरुध्यते।"
- किसने कहा: राम ने।
- अर्थ: प्रिय के निकट जाने की इच्छा को रोकना असंभव है।
- संदर्भ: राम का सीता के प्रति गहरा प्रेम।
- "तमसा! समाश्वसिहि।"
- किसने कहा: तमसा ने।
- अर्थ: सांत्वना देना ही दुःख का समाधान है।
- संदर्भ: सीता को सांत्वना देने का प्रयास।
- "वाल्मीकितपोवन।"
- किसने कहा: तमसा ने।
- अर्थ: वाल्मीकि का आश्रम शरण और शांति का स्थान है।
- संदर्भ: सीता के निर्वासन का वर्णन।
- "प्रत्युप्तस्येव दयिते।"
- किसने कहा: राम ने।
- अर्थ: प्रिय का प्रेम हर कठिनाई को दूर कर सकता है।
- संदर्भ: राम का सीता के प्रति प्रेम।
- "पृथ्वीभागीरथीभ्यामप्युभाभ्याम।"
- किसने कहा: तमसा ने।
- अर्थ: कुश और लव का पालन पृथ्वी और गंगा ने किया।
- संदर्भ: सीता के बच्चों की परवरिश।
- "नवकुलयस्निग्धैः।"
- किसने कहा: राम ने।
- अर्थ: नई आशा और सुखद स्मृतियों का अनुभव।
- संदर्भ: सीता के सौंदर्य का स्मरण।
- "रामस्य करुणो रसः।"
- किसने कहा: तमसा ने।
- अर्थ: राम के जीवन में करुण रस का प्रमुख स्थान है।
- संदर्भ: राम के वियोग का वर्णन।
- "स्नेहाधिकायः।"
- किसने कहा: तमसा ने।
- अर्थ: प्रेम और शोक का गहरा संबंध।
- संदर्भ: राम और सीता के प्रेम का विश्लेषण।
- "कुसुमसमबन्धनं मे दयम्।"
- किसने कहा: तमसा ने।
- अर्थ: प्रेम और करुणा का संबंध कोमल और गहरा होता है।
- संदर्भ: राम और सीता के प्रेम का वर्णन।
- "क्वासि प्रिये जानकि!"
- किसने कहा: राम ने।
- अर्थ: वियोग में प्रिय का पुकार।
- संदर्भ: राम का सीता के प्रति प्रेम।
- "तदद्याप्युच्छ्वासो भवति।"
- किसने कहा: राम ने।
- अर्थ: दुःख की अनुभूति अभी शेष है।
- संदर्भ: राम का वियोग।
- "स्नेहाधिकोऽयम्।"
- किसने कहा: तमसा ने।
- अर्थ: गहरा प्रेम, गहरा दुःख लाता है।
- संदर्भ: सीता के दुःख का वर्णन।
- "तृष्णादीर्घस्य चक्षुषः।"
- किसने कहा: राम ने।
- अर्थ: प्रिय का दर्शन तृष्णा को शांत करता है।
- संदर्भ: सीता के प्रति राम का प्रेम।
- "स्वयं कृत्वा त्यागं।"
- किसने कहा: राम ने।
- अर्थ: त्याग के बाद भी पीड़ा शेष रहती है।
- संदर्भ: सीता का त्याग।
- "शोकक्षोभे च दयं।"
- किसने कहा: तमसा ने।
- अर्थ: शोक का समाधान केवल करुणा है।
- संदर्भ: सीता को सांत्वना देते हुए।
- "पञ्चवटीप्रवेशो महाननर्थः।"
- किसने कहा: तमसा ने।
- अर्थ: पञ्चवटी का प्रवेश राम के लिए दुखदायी सिद्ध हो सकता है।
- संदर्भ: सीता के वियोग का स्मरण।
- "सन्निकर्षो निरुध्यते।"
- किसने कहा: राम ने।
- अर्थ: प्रिय के निकट जाने की इच्छा को रोका नहीं जा सकता।
- संदर्भ: राम का सीता के प्रति गहन प्रेम।
- "स्नेहाधिकायः शोकः।"
- किसने कहा: तमसा ने।
- अर्थ: गहरा प्रेम, गहरे शोक का कारण बनता है।
- संदर्भ: राम और सीता के प्रेम और वियोग का वर्णन।
- "सन्तापजां सपदि यः परित्यज्य मूर्च्छाम्।"
- किसने कहा: राम ने।
- अर्थ: वियोग का दुःख इतना प्रबल होता है कि व्यक्ति मूर्छित हो जाता है।
- संदर्भ: राम की वियोगावस्था।
- "वाल्मीकितपोवन।"
- किसने कहा: तमसा ने।
- अर्थ: वाल्मीकि का आश्रम शरण और शांति का स्थान है।
- संदर्भ: सीता के निर्वासन का वर्णन।
- "प्रत्युप्तस्येव दयिते।"
- किसने कहा: राम ने।
- अर्थ: प्रिय का प्रेम हर कठिनाई का समाधान है।
- संदर्भ: राम का सीता के प्रति प्रेम।
- "क्वासि प्रिये जानकि!"
- किसने कहा: राम ने।
- अर्थ: वियोग में प्रिय का पुकारना।
- संदर्भ: राम का सीता के प्रति करुणा भरा आह्वान।
- "पृथ्वीभागीरथीभ्यामप्युभाभ्याम।"
- किसने कहा: तमसा ने।
- अर्थ: कुश और लव का पालन पृथ्वी और गंगा ने किया।
- संदर्भ: सीता के बच्चों का पालन।
- "नवकुलयस्निग्धैः।"
- किसने कहा: राम ने।
- अर्थ: प्रिय के सौंदर्य और सुखद स्मृतियों का वर्णन।
- संदर्भ: सीता के प्रति राम का प्रेम।
- "रामस्य करुणो रसः।"
- किसने कहा: तमसा ने।
- अर्थ: राम के जीवन का करुण रस उनकी गहरी पीड़ा का प्रतीक है।
- संदर्भ: राम के वियोग का वर्णन।
- "स्नेहाधिकायः।"
- किसने कहा: तमसा ने।
- अर्थ: प्रेम और शोक का गहरा संबंध है।
- संदर्भ: राम और सीता के प्रेम का विश्लेषण।
- "कुसुमसमबन्धनं मे दयम्।"
- किसने कहा: तमसा ने।
- अर्थ: प्रेम और करुणा का संबंध कोमल और गहरा होता है।
- संदर्भ: राम और सीता के प्रेम का वर्णन।
- "तृष्णादीर्घस्य चक्षुषः।"
- किसने कहा: राम ने।
- अर्थ: प्रिय का दर्शन तृष्णा को शांत करता है।
- संदर्भ: सीता के प्रति राम का प्रेम।
- "स्वयं कृत्वा त्यागं।"
- किसने कहा: राम ने।
- अर्थ: त्याग करने के बाद भी पीड़ा शेष रहती है।
- संदर्भ: सीता का त्याग।
- "शोकक्षोभे च दयं।"
- किसने कहा: तमसा ने।
- अर्थ: शोक का समाधान केवल करुणा है।
- संदर्भ: सीता के दुःख को सांत्वना देने का प्रयास।
- "तमसा! समाश्वसिहि।"
- किसने कहा: तमसा ने।
- अर्थ: सांत्वना और सहानुभूति देना।
- संदर्भ: सीता के दुःख को कम करने का प्रयास।
- "सन्निकर्षो निरुध्यते।"
- किसने कहा: राम ने।
- अर्थ: प्रिय की निकटता को रोकना कठिन है।
- संदर्भ: राम का सीता के प्रति प्रेम।
- "पञ्चवटीप्रवेशो।"
- किसने कहा: तमसा ने।
- अर्थ: पञ्चवटी में प्रवेश राम के लिए पीड़ा का कारण हो सकता है।
- संदर्भ: राम के वियोग की आशंका।
- "कुसुममिव धर्मो।"
- किसने कहा: राम ने।
- अर्थ: धर्म भी कभी-कभी जीवन को कष्टकारी बना देता है।
- संदर्भ: राम का धर्म और सीता का त्याग।
- "प्रत्युप्तस्येव दयिते।"
- किसने कहा: राम ने।
- अर्थ: प्रिय का प्रेम हर कठिनाई का समाधान है।
- संदर्भ: राम का सीता के प्रति प्रेम।
- "तदद्याप्युच्छ्वासो।"
- किसने कहा: राम ने।
- अर्थ: दुःख की अनुभूति अभी शेष है।
- संदर्भ: राम का वियोग।
- "स्नेहाधिकोऽयम्।"
- किसने कहा: तमसा ने।
- अर्थ: गहरा प्रेम, गहरा दुःख लाता है।
- संदर्भ: सीता के दुःख का वर्णन।
- "वाल्मीकितपोवन।"
- किसने कहा: तमसा ने।
- अर्थ: वाल्मीकि का आश्रम शरण और शांति का स्थान है।
- संदर्भ: सीता के निर्वासन का वर्णन।
- "पृथ्वीभागीरथी।"
- किसने कहा: तमसा ने।
- अर्थ: पृथ्वी और गंगा ने कुश और लव का पालन किया।
- संदर्भ: मातृत्व और प्रेम।
- "क्वासि प्रिये!"
- किसने कहा: राम ने।
- अर्थ: प्रिय का आह्वान।
- संदर्भ: राम का सीता के प्रति प्रेम।
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