कारक परिचय

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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कारक परिचय
कारक परिचय


कारक की परिभाषा

 संस्कृत व्याकरण में "कारक" का अर्थ है वह तत्व जो किसी क्रिया (verb) के संपादन में सहयोग करता है। वाक्य में क्रिया के साथ जुड़े शब्दों का क्रिया से जो संबंध होता है, उसे कारक कहते हैं। इसलिए कहा गया है -"क्रियान्वयित्वं कारकत्वम्"  

अर्थात्:

  • क्रियान्वयित्वम्: क्रिया से संबंध रखना।
  • कारकत्वम्: कारक होना।

इसका पूरा अर्थ है:

"जो पद (शब्द) किसी क्रिया से संबंध रखता है, वही कारक कहलाता है।"


व्याख्या:

पाणिनि के व्याकरण में 'कारक' की अवधारणा यह स्पष्ट करती है कि वाक्य में प्रयुक्त कोई भी शब्द तब तक कारक नहीं कहलाता जब तक कि उसका किसी क्रिया के साथ प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से संबंध न हो।

  • क्रिया के बिना कारक का अस्तित्व नहीं: वाक्य में कारक की पहचान तभी होती है, जब कोई क्रिया मौजूद हो। क्रिया से जुड़े शब्दों को ही कारक माना जाता है।
  • कारक और विभक्ति का संबंध: कारक से यह तय होता है कि कौन-सा शब्द किस विभक्ति में प्रयुक्त होगा। पाणिनि के सूत्र 'कारकं विभक्तिः' (2.3.1) में यही बताया गया है।

उदाहरण:

वाक्य: रामः ग्रामे गच्छति।

  • क्रिया: गच्छति (जाना)
  • क्रिया से संबंधित शब्द:
    • रामः: यह कर्ता है (कौन जा रहा है?) – प्रथमा विभक्ति।
    • ग्रामे: यह अधिकरण है (कहाँ जा रहा है?) – सप्तमी विभक्ति।

यहाँ राम और ग्राम शब्दों का संबंध गच्छति (जाना) क्रिया से है, इसलिए ये कारक बनते हैं।


कारक के प्रकार

 संस्कृत व्याकरण में कारक वह तत्व है, जो किसी वाक्य में क्रिया के साथ संबंध स्थापित करता है। पाणिनि के अनुसार, कारक की छह प्रमुख श्रेणियाँ हैं, जो क्रिया के विभिन्न संबंधों को व्यक्त करती हैं। जैसा कि श्लोक में बताया गया है -

कर्ता कर्म च करणं च सम्प्रदानं तथैव च । 

अपादानाधिकरणं इत्याहुः कारकाणि षट् ॥

अब हम सभी कारकों का क्रम से अध्ययन करेंगे।


1. कर्तृ कारक (प्रथमा विभक्ति)

  • सूत्र: "स्वतन्त्रः कर्ता" (1.4.54)
    • अर्थ: जो स्वतंत्र रूप से क्रिया करता है, वह कर्ता है।
    • उदाहरण:
      • "रामः गच्छति।" (राम जाता है) – यहाँ 'रामः' कर्ता है।
      • "गौः चरति।" (गाय चरती है) – यहाँ 'गायः' कर्ता है।

2. कर्म कारक (द्वितीया विभक्ति)

  • सूत्र: "कर्मणि द्वितीया" (2.3.2)
    • अर्थ: जिस पर क्रिया का प्रभाव पड़ता है, वह कर्म है।
    • उदाहरण:
      • "रामः पुस्तकं पठति।" (राम पुस्तक पढ़ता है) – 'पुस्तकम्' कर्म है।
      • "बालकः फलम् खादति।" (बालक फल खाता है) – 'फलम्' कर्म है।

3. करण कारक (तृतीया विभक्ति)

  • सूत्र: "करणं च" (1.4.42)
    • अर्थ: जिसके माध्यम से क्रिया संपन्न होती है, वह करण है।
    • उदाहरण:
      • "रामः हस्तेन लिखति।" (राम हाथ से लिखता है) – 'हस्तेन' करण है।
      • "गजः पृष्ठेन गच्छति।" (हाथी पीठ पर चलता है) – 'पृष्ठेन' करण है।

4. सम्प्रदान कारक (चतुर्थी विभक्ति)

  • सूत्र: "सम्प्रदानं च" (1.4.32)
    • अर्थ: जिसे क्रिया का फल प्राप्त होता है, वह सम्प्रदान है।
    • उदाहरण:
      • "रामः बालकाय फलम् ददाति।" (राम बालक को फल देता है) – 'बालकाय' सम्प्रदान है।
      • "पिता पुत्राय धनं ददाति।" (पिता पुत्र को धन देता है) – 'पुत्राय' सम्प्रदान है।

5. अपादान कारक (पंचमी विभक्ति)

  • सूत्र: "अपादाने पंचमी" (2.3.28)
    • अर्थ: जिससे अलग होने की क्रिया होती है, वह अपादान है।
    • उदाहरण:
      • "पर्णं वृक्षात् पतति।" (पत्ता वृक्ष से गिरता है) – 'वृक्षात्' अपादान है।
      • "बालकः ग्रामात् गच्छति।" (बालक गाँव से जाता है) – 'ग्रामात्' अपादान है।

6. अधिकरण कारक (सप्तमी विभक्ति)

  • सूत्र: "अधिकरणे सप्तमी" (2.3.36)
    • अर्थ: जहाँ या जिसमें क्रिया होती है, वह अधिकरण है।
    • उदाहरण:
      • "रामः ग्रामे वसति।" (राम गाँव में रहता है) – 'ग्रामे' अधिकरण है।
      • "पक्षी वृक्षे उपविष्टः।" (पक्षी वृक्ष पर बैठा है) – 'वृक्षे' अधिकरण है।

अन्य संबंधित सूत्र

  1. "कारकं विभक्तिः" (2.3.1)

    • विभक्तियाँ कारकों के साथ संबंधित हैं।
    • यह सूत्र बताता है कि कारक के आधार पर विभक्ति का निर्धारण होता है।
  2. "तस्मै हितं सम्प्रदानम्" (1.4.55)

    • जिसका लाभ क्रिया से होता है, उसे सम्प्रदान कहते हैं।
  3. "कर्मणो यमभिप्रेतः क्रियाफलोपभोगः तेन सम्प्रदानम्"

    • क्रिया का फल जिसे प्राप्त होता है, वह सम्प्रदान है।

विशेषता

पाणिनि ने इन सूत्रों के माध्यम से:

  • कारक और उनके उपयोग को व्यवस्थित रूप से परिभाषित किया।
  • प्रत्येक कारक के लिए विभक्तियों का निर्धारण किया।
  • क्रिया और कारक के बीच गहरे संबंध को स्पष्ट किया।

यदि आप किसी विशेष सूत्र या उदाहरण पर अधिक जानकारी चाहते हैं, तो पूछ सकते हैं।

कारकों की सारणी (चार्ट)

क्रम कारक विभक्ति सूत्र सामान्य अर्थ उदाहरण (5)
1 कर्तृ प्रथमा "स्वतन्त्रः कर्ता" (1.4.54) क्रिया को करने वाला 1. रामः गच्छति। (राम जाता है)
2. सीता गायति। (सीता गाती है)
3. बालकः पठति। (बालक पढ़ता है)
4. पक्षी उड्डयते। (पक्षी उड़ता है)
5. गौः चरति। (गाय चरती है)
2 कर्म द्वितीया "कर्मणि द्वितीया" (2.3.2) क्रिया का प्रभाव जिसे सहना पड़ता है 1. रामः पुस्तकं पठति। (राम पुस्तक पढ़ता है)
2. सीता फलं खादति। (सीता फल खाती है)
3. बालकः गृहं गच्छति। (बालक घर जाता है)
4. कृषकः क्षेत्रं कर्षति। (किसान खेत जोतता है)
5. गुरुः शिष्यं शिक्षयति। (गुरु शिष्य को सिखाता है)
3 करण तृतीया "करणं च" (1.4.42) जिसके द्वारा क्रिया होती है 1. रामः हस्तेन लिखति। (राम हाथ से लिखता है)
2. कृषकः हलेन क्षेत्रं कर्षति। (किसान हल से खेत जोतता है)
3. बालकः दण्डेन खेलति। (बालक डण्डे से खेलता है)
4. बालिका पुस्तकेन पठति। (बालिका पुस्तक से पढ़ती है)
5. सीता लेखन्या लिखति। (सीता कलम से लिखती है)
4 सम्प्रदान चतुर्थी "सम्प्रदानं च" (1.4.32) जिसे क्रिया का फल प्राप्त होता है 1. रामः बालकाय फलम् ददाति। (राम बालक को फल देता है)
2. पिता पुत्राय धनं ददाति। (पिता पुत्र को धन देता है)
3. गुरु शिष्याय विद्याम् ददाति। (गुरु शिष्य को विद्या देता है)
4. सीता मित्राय पुष्पं ददाति। (सीता मित्र को पुष्प देती है)
5. मातुः पुत्राय भोजनं यच्छति। (माँ पुत्र को भोजन देती है)
5 अपादान पंचमी "अपादाने पंचमी" (2.3.28) जिससे अलग होने की क्रिया हो 1. फलं वृक्षात् पतति। (फल वृक्ष से गिरता है)
2. गजः नद्याः गच्छति। (हाथी नदी से जाता है)
3. पक्षी आकाशात् पतति। (पक्षी आकाश से गिरता है)
4. शिष्यः गुरुकुलात् आगच्छति। (शिष्य गुरुकुल से आता है)
5. मुनिः आश्रमात् गच्छति। (मुनि आश्रम से जाता है)
6 अधिकरण सप्तमी "अधिकरणे सप्तमी" (2.3.36) जहाँ या जिसमें क्रिया होती है 1. रामः ग्रामे वसति। (राम गाँव में रहता है)
2. पक्षी वृक्षे स्थितः। (पक्षी वृक्ष पर बैठा है)
3. बालकः उद्याने क्रीडति। (बालक उद्यान में खेलता है)
4. गायः गोशालायां वसति। (गाय गोशाला में रहती है)
5. सीता गृहे पठति। (सीता घर में पढ़ती है)


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