साहित्यदर्पण के द्वितीय परिच्छेद: वाक्य स्वरूप का अनुवाद
वाक्य की परिभाषा:
श्लोक:
"वाक्यं स्याद्योग्यताकाङ्क्षासत्तियुक्तः पदोच्चयः।"
अनुवाद:
वाक्य वह पदों का समूह है, जो योग्यता, आकांक्षा, और आसक्ति (संबद्धता) से युक्त हो।
इन तत्वों का विवरण:
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योग्यता:
योग्यता का अर्थ है, पदों के बीच परस्पर संबंध में कोई बाधा न हो। यदि यह बाधा हो, तो वाक्य के अर्थ में विघ्न उत्पन्न होगा।- उदाहरण: "वह्निना सिञ्चति" (अग्नि से सिंचाई करता है) - यह वाक्य योग्य नहीं है क्योंकि "अग्नि" और "सिंचाई" में विरोध है।
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आकांक्षा:
वाक्य का प्रत्येक पद ऐसा हो कि श्रोता को जिज्ञासा हो कि आगे क्या कहा जाएगा।- यदि आकांक्षा न हो, तो "गौरश्वः पुरुषो इस्ती" (गाय, घोड़ा, पुरुष और स्त्री) जैसे कथन भी वाक्य कहलाएंगे, लेकिन इनका कोई स्पष्ट अर्थ नहीं होगा।
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आसक्ति:
वाक्य के पदों के बीच मानसिक विच्छेद न हो। यदि पदों में मानसिक जुड़ाव न हो, तो वाक्य का संप्रेषण नहीं हो सकता।- उदाहरण: "देवदत्त" शब्द सुबह बोला जाए और "गच्छति" शब्द शाम को, तो यह वाक्य नहीं बनेगा।
महावाक्य और वाक्य का भेद:
श्लोक:
"वाक्योच्चयो महावाक्यम्।
योग्यताकाङ्क्षासत्तियुक्त इत्येव।
इत्थं वाक्यं द्विधा मतं।।" (सूत्र 2.1)*
अनुवाद:
- वाक्य: वह पदों का छोटा समूह है, जो अर्थ प्रदान करता है।
- उदाहरण: "शून्यं वासगृहम्" (गृह खाली है)।
- महावाक्य: यह पदों और वाक्यों का बड़ा समूह है, जैसे रामायण, महाभारत, आदि।
पद की परिभाषा:
श्लोक:
"वर्णाः पदं प्रयोगार्हानन्वितेकार्थबोधकाः।"
अनुवाद:
पद वे वर्ण होते हैं, जो प्रयोग के योग्य हों, स्वतंत्र हों, और एक अर्थ का बोध कराएं।
- उदाहरण: "घट" (घड़ा)।
- प्रयोगार्ह: इससे प्रातिपदिक (मूल शब्द) का विवेक होता है।
- अनन्वित: यह वाक्य या महावाक्य से भिन्न है।
- अर्थबोधक: इससे "कचटतप" जैसे निरर्थक शब्द अलग होते हैं।
अर्थ के तीन प्रकार (सूत्र 2.2):
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वाच्य:
जो शब्द के प्राथमिक अर्थ से सीधे बोध हो।- उदाहरण: "ग्रामं गच्छ" (ग्राम में जाओ)।
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लक्ष्य:
जब शब्द के प्राथमिक अर्थ का त्याग करके किसी दूसरे अर्थ को ग्रहण किया जाए।- उदाहरण: "गङ्गायां घोषः" (गंगा में गांव है) - यहां "गंगा" का अर्थ "तट" है।
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व्यंग्य:
जो न तो सीधे शब्द से प्रकट हो, न ही लक्ष्य से, बल्कि संकेत के माध्यम से बोध हो।- उदाहरण: "कालो मधुः" (वसंत ऋतु मधुर है)।
लक्षणा (संकेतार्थ):
श्लोक:
"मुख्यार्थबाधे तद्युक्तो ययान्योर्ऽथः प्रतीयते।
रूढेः प्रयोजनाद्वासौ लक्षणा शक्तिरर्पिता।।" (सूत्र 2.5)*
अनुवाद:
जब शब्द के मुख्य अर्थ (मुख्यार्थ) में बाधा उत्पन्न हो, और किसी दूसरे अर्थ को ग्रहण करना संभव हो, तो उसे लक्षणा (संकेत अर्थ) कहते हैं।
- रूढ़ि: परंपरा या प्रसिद्धि के कारण।
- उदाहरण: "कलिङ्गः साहसिकः" - यहां "कलिंग" का अर्थ साहसी व्यक्ति है।
- प्रयोजन: अर्थ ग्रहण का उद्देश्य।
- उदाहरण: "गङ्गायां घोषः" - गंगा में गांव। प्रयोजन: गंगा का पवित्र तट।
व्यंजना (संकेतार्थ से गूढ़ अर्थ):
श्लोक:
"विरतास्वभिधाद्यासु ययार्ऽथो बोध्यते परः।
सा वृत्तिर्व्यञ्जना नाम शब्दस्यार्थादिकस्य च।।" (सूत्र 2.12)*
अनुवाद:
जब शब्द अपने सामान्य अर्थ (अभिधा), संकेतार्थ (लक्षणा) आदि को पूरा करने के बाद भी एक गूढ़ अर्थ का बोध कराए, तो उसे व्यंजना कहते हैं।
- अभिधा आधारित व्यंजना:
- "कालो मधुः" - यहां "मधु" (मधुरता) का अर्थ वसंत ऋतु से लिया गया।
- लक्षणा आधारित व्यंजना:
- "गङ्गायां घोषः" - यहां गंगा के तट से शीतलता और पवित्रता का बोध होता है।
वाक्य, पद, और अर्थ का संबंध:
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वाक्य:
वाक्य शब्दों का ऐसा समूह है, जो योग्य अर्थ प्रदान करे। -
पद:
पद वह है, जो एक अर्थ का बोध कराए। -
अर्थ:
अर्थ तीन प्रकार के होते हैं – वाच्य, लक्ष्य, और व्यंग्य।
निष्कर्ष:
साहित्यदर्पण के इस भाग में वाक्य की परिभाषा, उसके तत्व (योग्यता, आकांक्षा, आसक्ति), और पद, अर्थ, लक्षणा, तथा व्यंजना की विस्तृत व्याख्या की गई है। वाक्य को "योग्यता, आकांक्षा और आसक्ति" से युक्त पदों का समूह बताया गया है। व्यंजना को काव्य का गूढ़तम पहलू मानते हुए इसे विशेष रूप से व्याख्यायित किया गया है।
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