महाराज नाभि का परिचय,महाराज नाभि की कथा, पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ,यज्ञ में भगवान विष्णु का प्रकट होना, ऋषभदेव का जन्म,ऋषभदेव की शिक्षा,महाराज नाभि क
महाराज नाभि की कथा भागवत पुराण के पंचम स्कंध, अध्याय 3 में विस्तार से वर्णित है। महाराज नाभि राजा प्रियव्रत के पुत्र आग्नीध्र के सबसे बड़े पुत्र थे। उनकी कथा में धर्म, भक्ति और भगवान विष्णु की कृपा का महत्वपूर्ण स्थान है। नाभि के पुत्र ऋषभदेव भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं।
महाराज नाभि का परिचय
- महाराज नाभि जंबूद्वीप के एक भाग हिमवर्ष के राजा थे। वे अपने धर्म पालन, दानशीलता, और भक्ति के लिए प्रसिद्ध थे। उनकी पत्नी का नाम मेरु देवी था, जो अत्यंत पतिव्रता और धर्मपरायण थीं।
पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ
- महाराज नाभि और मेरु देवी के कोई संतान नहीं थी। इस कारण उन्होंने ब्राह्मणों और ऋषियों की सहायता से भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया।
यज्ञ में भगवान विष्णु का प्रकट होना
- महाराज नाभि की भक्ति और यज्ञ से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु स्वयं प्रकट हुए। यह देख कर यज्ञ में उपस्थित सभी ब्राह्मण और ऋषि स्तुति करने लगे।
भगवान विष्णु का वरदान
- भगवान विष्णु ने नाभि और मेरु देवी की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया कि वे स्वयं उनके पुत्र के रूप में अवतरित होंगे। भगवान विष्णु ने कहा कि वे धर्म की स्थापना और समाज को ज्ञान देने के लिए उनके पुत्र के रूप में जन्म लेंगे।
ऋषभदेव का जन्म
- भगवान विष्णु ने महाराज नाभि के पुत्र के रूप में जन्म लिया। उनका नाम ऋषभदेव रखा गया। ऋषभदेव ने युवावस्था में राज्य संभाला और धर्म, ज्ञान, और वैराग्य का प्रचार किया।
ऋषभदेव की शिक्षा
- ऋषभदेव ने संसार को भौतिक और आध्यात्मिक जीवन का संतुलन सिखाया। उन्होंने अपने 100 पुत्रों को धर्म, राजनीति और वैराग्य का पाठ पढ़ाया।
महाराज नाभि की कथा का महत्व
1. भक्ति और तपस्या का फल: महाराज नाभि और मेरु देवी की भक्ति और तपस्या का परिणाम यह हुआ कि स्वयं भगवान विष्णु उनके पुत्र के रूप में अवतरित हुए।
2. धर्म की स्थापना: महाराज नाभि के वंशजों, विशेषकर ऋषभदेव के माध्यम से धर्म, ज्ञान और वैराग्य की शिक्षा दी गई।
3. भगवान विष्णु का कृपा स्वरूप अवतार: यह कथा यह सिखाती है कि भगवान अपने भक्तों की भक्ति से प्रसन्न होकर स्वयं उनकी सहायता के लिए अवतरित होते हैं।
निष्कर्ष
महाराज नाभि की कथा भागवत पुराण में धर्म, भक्ति और तपस्या का आदर्श प्रस्तुत करती है। यह कथा यह संदेश देती है कि ईश्वर की कृपा पाने के लिए निष्ठा, भक्ति, और धर्म का पालन अत्यंत आवश्यक है। महाराज नाभि और मेरु देवी का जीवन भक्ति और साधना के प्रति एक प्रेरणा है।
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