व्यंजना का परिपाक:

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
0

 

यह चित्र संस्कृत काव्यशास्त्र (साहित्य और अलंकारशास्त्र) से प्रेरित है। इसमें प्राचीन भारतीय विद्वानों को एक वट वृक्ष के नीचे बैठकर काव्य और सौंदर्यशास्त्र पर चर्चा करते हुए दर्शाया गया है। ताड़पत्र की पांडुलिपियों, प्राकृतिक वातावरण, और बहती नदी के साथ यह दृश्य संस्कृत काव्य की गहराई और सांस्कृतिक समृद्धि को प्रदर्शित करता है।

यह चित्र संस्कृत काव्यशास्त्र (साहित्य और अलंकारशास्त्र) से प्रेरित है। इसमें प्राचीन भारतीय विद्वानों को एक वट वृक्ष के नीचे बैठकर काव्य और सौंदर्यशास्त्र पर चर्चा करते हुए दर्शाया गया है। ताड़पत्र की पांडुलिपियों, प्राकृतिक वातावरण, और बहती नदी के साथ यह दृश्य संस्कृत काव्य की गहराई और सांस्कृतिक समृद्धि को प्रदर्शित करता है।



व्यंजना का परिपाक:

"प्रस्तावदेशकालानां काकोश्चेष्टादिकस्य च।
वैशिष्ट्यादन्यथारूपं बोधयेत्सार्थसंभवा।।"

  • प्रस्ताव-देश-कालानाम् (प्रस्ताव, स्थान, और समय के)
  • काक-उच्चेष्ट-आदिकस्य च (कौवे की गतिविधियों आदि के)
  • वैशिष्ट्यात् (विशिष्टता के कारण)
  • अन्यथा-रूपम् (भिन्न रूप में)
  • बोधयेत् (प्रकट करता है)
  • सार्थ-संभवा। (उचित संदर्भ से उत्पन्न)।

अनुवाद: प्रस्ताव, स्थान, समय, और कौवे की गतिविधियों आदि की विशिष्टता के कारण व्यंजना भिन्न अर्थों को संदर्भ के अनुसार प्रकट कर सकती है।


व्यंजना के प्रकार:

"त्रैविध्यादियमर्थानां प्रत्येकं त्रिविधा मता।
शब्दबोध्यो व्यनक्त्यर्थः शब्दोऽप्यर्थान्तराश्रयः।।"

  • त्रैविध्यात् (तीन प्रकारों के आधार पर)
  • इयम् (यह)
  • अर्थानाम् (अर्थों की)
  • प्रत्येकं त्रिविधा मता। (प्रत्येक को तीन प्रकार का माना गया है)।
  • शब्द-बोध्यः (शब्द से समझाया गया)
  • व्यानक्ति-अर्थः (अर्थ को प्रकट करता है)
  • शब्दः-अपि (शब्द भी)
  • अर्थ-अन्तर-आश्रयः। (दूसरे अर्थ पर आधारित)।

अनुवाद: अर्थों के तीन प्रकार (वाच्य, लक्ष्य, और व्यंग्य) के आधार पर, इन्हें भी तीन प्रकार का माना गया है। शब्द अर्थ को प्रकट करता है, और अर्थ भी शब्द पर आधारित होता है।


शब्द और अर्थ की सहकारिता:

"एकस्य व्यञ्जकत्वे तदन्यस्य सहकारिता।
अभिधादित्रयोपाधिवैशिष्ट्यात्त्रिविधो मतः।।"

  • एकस्य (एक के)
  • व्यञ्जकत्वे (व्यंजना में होने पर)
  • तदन्यस्य (दूसरे का)
  • सहकारिता। (सहायकता)।
  • अभिधा-आदि-त्रय-उपाधि-वैशिष्ट्यात् (अभिधा, लक्षणा और व्यंजना की विशिष्टताओं के आधार पर)
  • त्रिविधः मतः। (तीन प्रकार का माना गया है)।

अनुवाद: जब एक तत्व व्यंजक होता है, तो दूसरे की सहायकता अनिवार्य होती है। अभिधा, लक्षणा और व्यंजना की विशिष्टताओं के आधार पर शब्द को तीन प्रकार का माना गया है।


गूढ़ अर्थ की व्यंजना:

"अभिधालक्षणामूल व्यञ्जना शब्दस्य व्यञ्जना द्विधा।
अभिधालक्षणामूला यया प्रत्याय्यते परः।।"

  • अभिधा-लक्षणा-मूल (अभिधा और लक्षणा पर आधारित)
  • व्यञ्जना (व्यंजना)
  • शब्दस्य व्यञ्जना द्विधा। (शब्द की व्यंजना दो प्रकार की है)।
  • अभिधा-लक्षणा-मूला (अभिधा और लक्षणा पर आधारित)
  • यया प्रत्याय्यते परः। (जिससे गूढ़ अर्थ प्रकट होता है)।

अनुवाद: व्यंजना के दो प्रकार हैं - अभिधा पर आधारित और लक्षणा पर आधारित। ये दोनों गूढ़ अर्थ को प्रकट करती हैं।


उदाहरण से व्यंजना:

"कालो मधुः कुपित एष च पुष्पधन्वा।
धीरा वहन्ति रतिखेदहराः समीराः।।"

  • कालः (वसंत ऋतु)
  • मधुः (मधुर)
  • कुपितः (क्रोधित)
  • एषः (यह)
  • पुष्पधन्वा (कामदेव)
  • धीरा (शांत)
  • वहन्ति (चलती हैं)
  • रतिखेद-हराः (प्रेम की थकान हरने वाली)
  • समीराः। (हवाएँ)।

अनुवाद: "वसंत मधुर है, कामदेव क्रोधित हैं, और प्रेम की थकान हरने वाली हवाएँ धीरे-धीरे चल रही हैं।" यह व्यंजना का उपयोग है, जिसमें गूढ़ भाव प्रकट होता है।


निष्कर्ष:

"वाक्यार्थे तात्पर्यं निहितं।"

  • वाक्यार्थे (वाक्य के अर्थ में)
  • तात्पर्यं (तात्पर्य)
  • निहितं। (अंतर्निहित है)।

अनुवाद: वाक्य के अर्थ में तात्पर्य अंतर्निहित होता है।


यह पाठ भाषा और काव्य के तत्वों जैसे अभिधा, लक्षणा, और व्यंजना की व्याख्या करता है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

thanks for a lovly feedback

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top