Ramcharit manas mantra |
मंगलों का मूल लग्न का दिन आ गया। हेमंत ऋतु और सुहावना अगहन का महीना था। ग्रह, तिथि, नक्षत्र, योग और वार श्रेष्ठ थे। लग्न (मुहूर्त) शोधकर ब्रह्मा ने उस पर विचार किया, अर्थात प्रभु श्री राम एवं माता सीता का पाणिग्रहण संस्कार इसी मंगल महीने में हुआ था।
यह महीना अत्यंत पवित्र है क्योंकि मार्गशीर्ष मास की प्रथम तिथि को ही सतयुग का आरंभ हुआ, और किसी किसी का कहना है कि सतयुग का आगमन कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था. और कुछ के मत है कि शुक्ल चैत्र नवरात्रि प्रतिपदा को इस युग की उत्पत्ति हुई थी। खैर हम मार्गशीर्ष मास की बात करते हैं और इसी माह में महर्षि कश्यप ने कश्मीर प्रदेश की रचना की थी। इस माह की एकादशी को मोक्ष देने वाली एकादशी कहा गया है। मार्गशीर्ष नक्षत्र में पड़ने वाला यह माह देवताओं को अत्यंत प्रिय है। भगवान कृष्ण स्वयं कहते हैं कि
बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम्।
मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः।।
सामवेद के प्रकरणों में जो बृहत्साम नामक प्रधान प्रकरण है, वह मैं हूँ। छन्दों में मैं गायत्री छन्द (मंत्र) हूँ । महीनों में मार्गशीर्ष नामक महीना और ऋतुओं में मैं बसन्त ऋतु हूँ।
देवताओं के साथ-साथ मनुष्यों के लिए भी यह माह विशेष महत्व का है क्योंकि अगहन आने का मतलब मांगलिक कार्य आरंभ करने का उचित समय आ गया है।
गांव में एक कहावत काफी प्रचलित है -
कातिक बात कहातिक
अगहन हांड़ी अदहन
पूस काना टूस।
माघ तिले-तिल बाढ़े
फागुन बित्ता काढ़े
कातिक बात-बात में बीत जाता है, अगहन के दिन हांडी में अदहन करते यानि पानी गर्म करते-करते बीत जाते हैं, पूस माह के दिन तो इतने छोटे होंगे कि मानो कान को छूकर निकल गए। माघ से दिन तिल -तिल करके यानि धीरे -धीरे बढ़ेंगे और फागुन में बित्ते के बराबर यानि काफी बड़े हो जाएंगे!
यह महीना इसलिए भी सुखकारी है क्योंकि इसके बाद दिन और छोटे होने लगेंगे तथा पौष और माघ की हाड़ कंपाने वाली ठंड भी शुरू हो जाएगी।
मार्गशीर्ष इसलिए भी मस्ती का महीना है क्योंकि अभी ठंड गुलाबी है और जाड़े की धूप खुशनुमा लगती है। बाजार में खूब हरी सब्जियां आने लगी हैं तथा सेब, अमरूद जैसे मौसमी और सेहतमंद फल रेहड़ी, ठेलिया में सजे दिखने लगे हैं। गांवों की हाट में गुलैया, गजक, गुड़पट्टी की खुशबू भी बिखरने लगी है। हाट के किसी कोने में भुनी करारी मूंगफली धनिया- लहसुन वाले गीले नमक तथा काले वाले सूखे नमक की पुड़िया के साथ बिकने लगी है।
अगहन इसलिए आनंदकारी है क्योंकि जनकवि घाघ कहते हैं कि इस महीने तेल का परहेज़ नहीं करना है-
कार्तिक मूली, अगहन तेल।
पौष में करें दूध से मेल।
अतः बाजरे की रोटी और सरसो के साग का दिव्य स्वाद लेने का समय आ गया है। बिल्कुल ताज़े आलू को आग में भुनकर गरम-गरम खाने तथा गन्ने के रस को दही में मिलाकर पीने का महीना आ चुका है। राब, ताजे सुस्वादु गुड़ को सीधे गन्ने के कोल्हू के पास जाकर चखने का समय आ गया है।
महाकवि माघ इस महीने में बारिश के महत्व को रेखांकित करते हुए लिखते हैं-
अगहन बरसे हून, पूस बरसे दून।
यानि इस महीने बारिश हो जाये तो अन्नदाता किसानों की फसल अच्छी होगी और दिल्ली जैसे शहरों में रह रहे मेरे जैसे आम नागरिक को दमघोंटू प्रदूषण से कुछ राहत मिल जाएगी। ऐसा हुआ तो फिर किसान और कर्मचारी दोनों ही इस मंगलकारी महीने का भरपूर आनंद ले सकेंगे।
शादी विवाह का समय चल रहा है खूब मज़ा करो ।
लेकिन -
उतना ही लीजिए थाली में
व्यर्थ जाए नाली में
खाओ मन भर छोड़ो न कण भर
कई लोग ऐसे भी हैं जिन्हें दो वक्त रोटी नहीं मिलती।
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