भागवत माहात्म्य, स्कन्द पुराण, तृतीय अध्याय (हिन्दी अनुवाद सहित)

SHARE:

  यह चित्र बालकृष्ण के दिव्य रूप का  है, विशेषकर उनकी आंखों में एक चमकदार आकर्षण है। यह दृश्य निश्चित रूप से और अधिक मोहक लग रहा है। वृन्दाव...

 

यह चित्र बालकृष्ण के दिव्य रूप का  है, विशेषकर उनकी आंखों में एक चमकदार आकर्षण है। यह दृश्य निश्चित रूप से और अधिक मोहक लग रहा है। वृन्दावन की छटा को भी अत्यन्त मनोरम ढंग से चित्रित किया गया है।
यह चित्र बालकृष्ण के दिव्य रूप का  है, विशेषकर उनकी आंखों में एक चमकदार आकर्षण है। यह दृश्य निश्चित रूप से और अधिक मोहक लग रहा है। वृन्दावन की छटा को भी अत्यन्त मनोरम ढंग से चित्रित किया गया है।




भागवत माहात्म्य स्कन्द पुराण तृतीय अध्याय

उद्धवमुखेन श्रीमद् भागवतमाहात्म्यवर्णनं
भागवतोपदेशस्य सम्प्रदायकर्मकथनं परीक्षितः
कलिनिग्रहायोद्योगःभागवतश्रवणेन वजादीनां भगवद्दर्शनं च


श्लोक 1

अयोद्धवस्तु तान् दृष्ट्वा कृष्णकीर्तनतत्परान् ।
सत्कृत्याथ परिष्वज्य परीक्षितमुवाच ह ॥
अनुवाद:
उद्धवजी ने कृष्ण-कीर्तन में तत्पर उन लोगों को देखा, उनका आदर किया और परीक्षित महाराज को गले लगाकर कहा।


श्लोक 2

धन्योऽसि राजन् कृष्णैक भक्त्या पूर्णोऽसि नित्यदा ।
यस्त्वं निमग्नचित्तोऽसि कृष्णसंङ्‌कीर्तनोत्सवे ॥
अनुवाद:
उद्धवजी ने कहा: "हे राजन! तुम धन्य हो, क्योंकि तुम केवल श्रीकृष्ण की भक्ति से सदा पूर्ण हो। तुम्हारा चित्त सदा कृष्ण-कीर्तन के उत्सव में मग्न रहता है।"


श्लोक 3

कृष्णपत्‍नीषु वज्रे च दिष्ट्या प्रीतिः प्रवर्तिता ।
तवोचितमिदं तात कृष्णदत्ताङ्‌गवैभव ॥
अनुवाद:
"हे तात! वज्र और अन्य कृष्ण पत्नियों में तुम्हारी जो प्रीति है, वह तुम्हारे लिए उपयुक्त है, क्योंकि यह सब कृष्ण के आशीर्वाद से ही है।"


श्लोक 4

द्वारकास्थेषु सर्वेषु धन्या एते न संशयः ।
येषां व्रजनिवासाय पार्थमादिष्टवान् प्रभुः ॥
अनुवाद:
"जो द्वारका में रहते हैं, वे सभी धन्य हैं, क्योंकि भगवान ने उन्हें वृन्दावन में निवास करने की आज्ञा दी थी।"


श्लोक 5

श्रीकृष्णस्य मनश्चन्द्रो राधास्यप्रभयान्वितः ।
तद् विहारवनं गोभिः मण्डयन् रोचते सदा ॥
अनुवाद:
"श्रीकृष्ण का मन रूपी चंद्रमा, जो राधाजी के प्रभाव से प्रकाशित है, गोपियों और गौओं के साथ विहारवन को सदा सुशोभित करता है।"


श्लोक 6

कृष्णचन्द्रः सदा पूर्णः तस्य षोडश या कलाः ।
चित्सहस्रप्रभभिन्ना अत्रास्ते तत्स्वरूपता ॥
अनुवाद:
"कृष्णचंद्र सदा पूर्ण हैं और उनकी सोलह कलाएं दिव्य तेज से प्रकाशित हैं। उनकी यह स्वरूपता अनगिनत प्रकाश कणों से भिन्न है।"


श्लोक 7

एवं वज्रस्तु राजेन्द्र प्रपन्नभयभञ्जकः ।
श्रीकृष्णदक्षिणे पादे स्थानमेतस्य वर्तते ॥
अनुवाद:
"हे राजेन्द्र! वज्र, जो शरणागतों के भय का नाश करता है, श्रीकृष्ण के दक्षिण चरण में स्थित है।"


श्लोक 8

अवतारेऽत्र कृष्णेन योगमायातिभाविताः ।
तद्‌बलेनात्मविस्मृत्या सीदन्त्येते न संशयः ॥
अनुवाद:
"श्रीकृष्ण के अवतार में योगमाया के प्रभाव से जीव अपना आत्मज्ञान भूल जाते हैं और असमंजस में पड़ जाते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं।"


श्लोक 9

ऋते कृष्णप्रकाशं तु स्वात्मबोधो न कस्यचित् ।
तत्प्रकाशस्तु जीवानां मायया पिहितः सदा ॥
अनुवाद:
"श्रीकृष्ण के प्रकाश के बिना किसी को भी आत्मबोध प्राप्त नहीं हो सकता। यह प्रकाश जीवों के लिए माया द्वारा सदा ढका हुआ रहता है।"


श्लोक 10

अष्टाविंशे द्वापरान्ते स्वयमेव यदा हरिः ।
उत्सारयेन्निजां मायां तत्प्रकाशो भवेत्तदा ॥
अनुवाद:
"द्वापर युग के अठाईसवें चरण के अंत में जब स्वयं भगवान हरि अपनी माया हटाते हैं, तब उनका प्रकाश स्पष्ट रूप से प्रकट होता है।"


श्लोक 11

स तु कालो व्यतिक्रान्तः तेनेदमपरं श्रृणु ।
अन्यदा तत्प्रकाशस्तु श्रीमद् भागवताद् भवेत् ॥
अनुवाद:
"वह समय अब व्यतीत हो गया है। इसलिए अब सुनो, श्रीमद्भागवत के माध्यम से ही यह प्रकाश प्रकट होता है।"


श्लोक 12

श्रीमद् भागवतं शास्त्रं यत्र भागवतैर्यदा ।
कीर्त्यते श्रूयते चापि श्रीकृष्णस्तत्र निश्चितम् ॥
अनुवाद:
"जहां भी श्रीमद्भागवत का पाठ या श्रवण किया जाता है, वहां श्रीकृष्ण निश्चित रूप से उपस्थित रहते हैं।"


श्लोक 13

श्रीमद् भागवतं यत्र श्लोकं श्लोकार्द्धमेव च ।
तत्रापि भगवान् कृष्णो वल्लवीभिर्वराजते ॥
अनुवाद:
"जहां श्रीमद्भागवत का एक श्लोक या अर्धश्लोक भी गाया जाता है, वहां भगवान कृष्ण गोपियों के साथ सुशोभित होते हैं।"


श्लोक 14

भारते पानवं जन्म प्राप्य भागवतं न यैः ।
श्रुतं पापपराधीनैः आत्मघातस्तु तैः कृतः ॥
अनुवाद:
"भारत में जन्म लेकर भी जिन्होंने श्रीमद्भागवत का श्रवण नहीं किया, वे पापों के अधीन रहकर आत्महत्या के समान कृत्य करते हैं।"


श्लोक 15

श्रीमद् भागवतं शास्त्रं नित्यं यैः परिसेवितम् ।
पितृमातुश्च भार्यायाः कुलपङ्‌क्तिः सुतारिता ॥
अनुवाद:
"जो लोग श्रीमद्भागवत का नित्य श्रवण या सेवा करते हैं, वे अपने पितरों, माता, पत्नी और संपूर्ण कुल का उद्धार करते हैं।"


श्लोक 16

विद्याप्रकाशो विप्राणां राज्ञां शत्रुजयो विशाम् ।
धनं स्वास्थ्यं च शूद्राणां श्रीमद् भागवताद् भवेत् ॥
अनुवाद:
"ब्राह्मणों के लिए विद्या का प्रकाश, राजाओं के लिए शत्रु पर विजय, वैश्यों के लिए धन और शूद्रों के लिए स्वास्थ्य की प्राप्ति श्रीमद्भागवत से होती है।"


श्लोक 17

योषितां अपरेषां च सर्ववाञ्छितपूरणम् ।
अतो भागवतं नित्यं को न सेवेत भाग्यवान् ॥
अनुवाद:
"स्त्रियों और अन्य लोगों की सभी इच्छाएं श्रीमद्भागवत से पूर्ण होती हैं। इसलिए कौन भाग्यशाली ऐसा होगा जो इसका नित्य सेवन न करे?"


श्लोक 18

अनेकजन्मसंसिद्धः श्रीमद् भागवतं लभेत् ।
प्रकाशो भगवद्‌भक्तेः उद्‌भवस्तत्र जायते ॥
अनुवाद:
"अनेक जन्मों की साधना और सिद्धि के बाद ही मनुष्य को श्रीमद्भागवत प्राप्त होता है। वहीं भगवद्भक्ति का प्रकाश उत्पन्न होता है।"


श्लोक 19

सांख्यायनप्रसादाप्तं श्रीमद्‌भागवतं पुरा ।
बृहस्पतिर्दत्तवान् मे तेनाहं कृष्णवल्लभः ॥
अनुवाद:
"प्राचीन काल में सांख्यायन ऋषि की कृपा से श्रीमद्भागवत प्राप्त हुआ था। बृहस्पति ने मुझे यह दिया, जिससे मैं श्रीकृष्ण का प्रिय बना।"


श्लोक 20

अखायिकां च तेनोक्तां विष्णुरात निबोध ताम् ।
ज्ञायते सम्प्रदायोऽपि यत्र भागवतश्रुतेः ॥
अनुवाद:
"हे विष्णुरात (परीक्षित)! बृहस्पति ने मुझे जो आख्यान बताया, उसे सुनो। इसके माध्यम से श्रीमद्भागवत के श्रवण से सम्प्रदाय का ज्ञान होता है।"


श्लोक 21

ईक्षाञ्चक्रे यदा कृष्णो मायापुरुषरूपधृक् ।
ब्रह्मा विष्णुः शिवश्चापि रजः सत्त्वतमोगुणैः ॥
अनुवाद:
"जब श्रीकृष्ण ने माया के पुरुष रूप को धारण कर सृष्टि की रचना के लिए दृष्टि डाली, तब ब्रह्मा, विष्णु और शिव रजोगुण, सत्त्वगुण और तमोगुण के रूप में प्रकट हुए।"


श्लोक 22

पुरुषास्त्रय उत्तस्थुः अधिकारान् तदादिशत् ।
उत्पत्तौ पालने चैव संहारे प्रक्रमेण तान् ॥
अनुवाद:
"वे तीन पुरुष प्रकट हुए और श्रीकृष्ण ने उन्हें क्रमशः सृष्टि, पालन और संहार के कार्य सौंपे।"


श्लोक 23

ब्रह्मा तु नाभिकमलात् उत्पन्नस्तं व्यजिज्ञपत् ।
नारायणादिपुरुष परमात्मन् नमोऽस्तु ते ॥
अनुवाद:
"ब्रह्मा, जो नाभि-कमल से उत्पन्न हुए थे, ने भगवान नारायण की स्तुति करते हुए कहा: 'हे आदिपुरुष, हे परमात्मा, आपको नमस्कार।'"


श्लोक 24

त्वया सर्गे नियुक्तोऽस्मि पपीयान् मां रजोगुणः ।
त्वत्स्मृतौ नैव बाधेत तथैव कृपया प्रभो ॥
अनुवाद:
"ब्रह्मा ने कहा: 'हे प्रभु, आपने मुझे सृष्टि के कार्य में नियुक्त किया है। मैं रजोगुण से प्रभावित हूं। कृपा करके यह गुण मेरी आपकी स्मृति में बाधा न डाले।'"


श्लोक 25

यदा तु भगवान् तस्मै श्रीमद्‌भागवतं पुरा ।
उपदिश्याब्रवीद् ब्रह्मन् सेवस्वैनत् स्वसिद्धये ॥
अनुवाद:
"भगवान ने ब्रह्मा को श्रीमद्भागवत का उपदेश दिया और कहा: 'इसका सेवन करो, जिससे तुम्हें पूर्ण सिद्धि प्राप्त हो।'"


श्लोक 26

ब्रह्मा तु परमप्रीतः तेन कृष्णाप्तयेऽनिशम् ।
सप्तावरणभङ्‌गाय सप्ताहं समवर्तयत् ॥
अनुवाद:
"ब्रह्मा भगवान के इस उपदेश से अत्यंत प्रसन्न हुए और श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्ति के लिए सात दिनों तक निरंतर श्रीमद्भागवत का श्रवण-संकीर्तन आयोजित किया।"


श्लोक 27

श्रीभागवतसप्ताह सेवनाप्तमनोरथः ।
सृष्टिं वितनुते नित्यं ससप्ताहः पुनः पुनः ॥
अनुवाद:
"श्रीमद्भागवत-सप्ताह के सेवन से उनकी सभी इच्छाएं पूर्ण हुईं, और वे सृष्टि की रचना बार-बार करते रहे।"


श्लोक 28

विष्णुरप्यर्थयामास पुमांसं स्वार्थसिद्धये ।
प्रजानां पालने पुंसा यदनेनापि कल्पितः ॥
अनुवाद:
"इसके बाद भगवान विष्णु ने भी अपने उद्देश्य की सिद्धि के लिए श्रीमद्भागवत को ग्रहण किया, ताकि वे प्रजा का पालन करने में समर्थ हो सकें।"


श्लोक 29

प्रजानां पालनं देव करिष्यामि यथोचितम् ।
प्रवृत्त्या च निवृत्त्या च कर्मज्ञानप्रयोजनात् ॥
अनुवाद:
"भगवान विष्णु ने कहा: 'हे देव! मैं प्रजा का पालन उचित रूप से करूंगा, प्रवृत्ति (सांसारिक कर्म) और निवृत्ति (वैराग्य) के मार्ग को कर्म और ज्ञान के उद्देश्य से सिद्ध करूं।'"


श्लोक 30

यदा यदैव कालेन धर्मग्लानिर्भविष्यति ।
धर्मं संस्थापयिष्यामि ह्यवतारैस्तदा तदा ॥
अनुवाद:
"भगवान विष्णु ने कहा: 'जब-जब काल के प्रभाव से धर्म की हानि होगी, तब-तब मैं अवतार लेकर धर्म की स्थापना करूंगा।'"


श्लोक 31

भोगार्थिभ्यस्तु यज्ञादि फलं दास्यामि निश्चितम् ।
भोगार्थिभ्यो विरक्तेभ्यो मुक्तिं पञ्चविधां तथा ॥
अनुवाद:
"जो भोग की इच्छा रखते हैं, उन्हें यज्ञादि कर्मों का फल प्रदान करूंगा, और जो वैराग्यशील हैं, उन्हें पंचविध मुक्तियां प्रदान करूंगा।"


श्लोक 32

येऽपि मोक्षं न वाञ्छन्ति तान् कथं पालयाम्यहम् ।
आत्मानं च श्रियं चापि पालयामि कथं वद ॥
अनुवाद:
"जो लोग मोक्ष की भी इच्छा नहीं रखते, ऐसे लोगों का और स्वयं अपने स्वरूप और लक्ष्मीजी का पालन मैं कैसे करूं, यह बताइए।"


श्लोक 33

तस्मा अपि पुमानाद्यः श्रीभागवतमादिशत् ।
उवाच च पठस्वैनत् तव सर्वार्थसिद्धये ॥
अनुवाद:
"तब श्रीकृष्ण ने उन्हें श्रीमद्भागवत का उपदेश दिया और कहा: 'इसका अध्ययन करो, जिससे तुम्हारे सभी उद्देश्य सिद्ध हो सकें।'"


श्लोक 34

ततो विष्णुः प्रसन्नात्मा परमार्थकपालने ।
समर्थोऽभूच्छ्रिया मासि मासि भागवतं स्मरन् ॥
अनुवाद:
"इसके बाद विष्णु भगवान प्रसन्नचित्त हुए और परमार्थ के पालन में समर्थ बन गए। वे मास दर मास श्रीमद्भागवत का स्मरण करते रहे।"


श्लोक 35

यदा विष्णुः स्वयं वक्ता लक्ष्मीश्च श्रवणे रतः ।
तदा भागवतश्रावो मासेनैव पुनः पुनः ॥
अनुवाद:
"जब विष्णु स्वयं श्रीमद्भागवत का वाचन करते और लक्ष्मीजी उसका श्रवण करतीं, तब श्रीमद्भागवत का श्रवण मासभर के भीतर ही पुनः-पुनः संपन्न होता था।"


श्लोक 36

यदा लक्ष्मीः स्वयं वक्त्री विष्णुश्च श्रवणे रतः ।
मासद्वयं रसास्वादः तदातीव सुशोभते ॥
अनुवाद:
"जब लक्ष्मीजी स्वयं श्रीमद्भागवत का वाचन करतीं और विष्णु भगवान उसका श्रवण करते, तब यह रसास्वादन दो माह तक चलता और अत्यंत सुशोभित होता।"


श्लोक 37

अधिकारे स्थितो विष्णुः लक्ष्मीर्निश्चिन्तमानसा ।
तेन भागवतास्वादः तस्या भूरि प्रकाशते ॥
अनुवाद:
"भगवान विष्णु अपने धर्मपालन के अधिकार में स्थित होकर और लक्ष्मीजी निश्चिंत मन से श्रीमद्भागवत का आनंद लेते। इससे उनका प्रकाश दिव्य रूप से प्रकट होता।"


श्लोक 38

अथ रुद्रोऽपि तं देवं संहाराधिकृतः पुरा ।
पुमांसं प्रार्थयामास स्वसामर्थ्यविवृद्धये ॥
अनुवाद:
"इसके बाद संहार के अधिपति भगवान रुद्र ने भी श्रीकृष्ण से अपनी सामर्थ्य को बढ़ाने के लिए उनकी प्रार्थना की।"


श्लोक 39

नित्ये नैमित्तिके चैव संहारे प्राकृते तथा ।
शक्तयो मम विद्यन्ते देवदेव मम प्रभो ॥
अनुवाद:
"रुद्र ने कहा: 'हे देवाधिदेव! नित्य, नैमित्तिक और प्राकृत संहार के लिए मेरी शक्तियां विद्यमान हैं।'"


श्लोक 40

आत्यन्तिके तु संहारे मम शक्तिर्न विद्यते ।
महत् दुःखं ममेतत्तु तेन त्वां प्रार्थयाम्यहम् ॥
अनुवाद:
"‘परंतु आत्मा के संहार (आत्यंतिक संहार) के लिए मेरी शक्ति नहीं है। यह मेरे लिए महान दुःख का कारण है, इसलिए मैं आपकी प्रार्थना करता हूं।’"


श्लोक 41

श्रीमद् भागवतं तस्मादपि नारायणो ददौ ।
स तु संसेवनादस्य जिग्ये चापि तमोगुणम् ॥
अनुवाद:
"इसके बाद भगवान नारायण ने रुद्र को श्रीमद्भागवत प्रदान किया। इसके सेवन से रुद्र ने तमोगुण पर विजय प्राप्त की।"


श्लोक 42

कथा भागवती तेने सेविता वर्षमात्रतः ।
लये त्वात्यन्तिके तेनौ आप शक्तिं सदाशिवः ॥
अनुवाद:
"भगवान शिव ने एक वर्ष तक श्रीमद्भागवत कथा का सेवन किया। इससे उन्होंने आत्मिक संहार की शक्ति प्राप्त की।"


श्लोक 43

श्रीभागवतमाहात्म्य इमां आख्यायिकां गुरोः ।
श्रुत्वा भागवतं लब्ध्वा मुमुदेऽहं प्रणम्य तम् ॥
अनुवाद:
"उद्धवजी ने कहा: 'गुरु से श्रीमद्भागवत माहात्म्य की यह कथा सुनकर, मैंने श्रीमद्भागवत प्राप्त किया और उन्हें प्रणाम कर आनंदित हुआ।'"


श्लोक 44

ततस्तु वैष्णवीं रीतिं गृहीत्वा मासमात्रतः ।
श्रीमद् भागवतास्वादो मया सम्यङ्‌निषेवितः ॥
अनुवाद:
"फिर वैष्णव परंपरा को स्वीकार करके, मैंने एक महीने तक श्रीमद्भागवत का विधिपूर्वक श्रवण और रसास्वादन किया।"


श्लोक 45

तावतैव बभूवाहं कृष्णस्य दयितः सखा ।
कृष्णेनाथ नियुक्तोऽहं व्रजे स्वप्रेयसीगणे ॥
अनुवाद:
"इससे मैं श्रीकृष्ण का प्रिय सखा बन गया। तब श्रीकृष्ण ने मुझे व्रज में उनकी प्रिय सखियों के बीच सेवा के लिए नियुक्त किया।"


श्लोक 46

विरहार्त्तासु गोपीषु स्वयं नित्यविहारिणा ।
श्रीमद्‌भागवतसन्देशो मन्मुखेन प्रयोजितः ॥
अनुवाद:
"श्रीकृष्ण के वियोग से पीड़ित गोपियों में, जो नित्य उनकी संगिनी थीं, मैंने उनके बीच श्रीमद्भागवत का संदेश सुनाया।"


श्लोक 47

तं यथामति लब्ध्वा ता आसन् विरहवर्जिताः ।
नाज्ञासिषं रहस्यं तत् चमत्कारस्तु लोकितः ॥
अनुवाद:
"गोपियों ने उस संदेश को अपनी क्षमता के अनुसार ग्रहण किया और वियोग से मुक्त हो गईं। मैंने उस रहस्य को नहीं जाना, परंतु उसका चमत्कार स्पष्ट दिखा।"


श्लोक 48

स्वर्वासं प्रार्थ्य कृष्णं च ब्रह्माद्येषु गतेषु मे ।
श्रीमद्‌भागवते कृष्णः तद् रहस्यं स्वयं ददौ ॥
अनुवाद:
"जब ब्रह्मा आदि देवताओं के साथ मैंने भी स्वर्गवास की प्रार्थना की, तब श्रीकृष्ण ने मुझे श्रीमद्भागवत के उस रहस्य को स्वयं समझाया।"


श्लोक 49

पुरतोऽश्वत्थमूलस्य चकार मयि तद् दृढम् ।
तेनात्र व्रजवल्लीषु वसामि बदरीं गतः ॥
अनुवाद:
"उन्होंने मुझे अश्वत्थ (पीपल) के वृक्ष के मूल के सामने स्थिर किया। उनके आशीर्वाद से मैं व्रज की लताओं में बस गया, और बदरीनाथ में निवास करने लगा।"


श्लोक 50

तस्मात् नारदकुण्डेऽत्र तिष्ठामि स्वेच्छया सदा ।
कृष्णप्रकाशो भक्तानां श्रीमद्‌भागवताद् भवेत् ॥
अनुवाद:
"इसलिए, मैं नारदकुंड में अपनी इच्छा से सदा निवास करता हूं। भक्तों में कृष्ण का प्रकाश श्रीमद्भागवत के माध्यम से प्रकट होता है।"


श्लोक 51

तदेषामपि कार्यार्थं श्रीमद्‌भागवतं त्वहम् ।
प्रवक्ष्यामि सहायोऽत्र त्वयैवानुष्ठितो भवेत् ॥
अनुवाद:
"उनके कल्याण के लिए मैं श्रीमद्भागवत का प्रचार करूंगा, और इसमें आप मेरे सहायक बनें।"


श्लोक 52

विष्णुरातस्तु श्रुत्वा तद् उद्धवं प्रणतोऽब्रवीत् ।
हरिदास त्वया कार्य श्रीभागवतकीर्तनम् ॥
अनुवाद:
"परीक्षित ने उद्धवजी के वचन सुनकर उन्हें प्रणाम करते हुए कहा: 'हे हरिदास (भगवान के सेवक), आपको श्रीमद्भागवत का कीर्तन करना चाहिए।'"


श्लोक 53

आज्ञाप्योऽहं यथा कार्यः सहायोऽत्र मया तथा ।
श्रुत्वैतद् उद्धवो वाक्यं उवाच प्रीतमानसः ॥
अनुवाद:
"परीक्षित ने कहा: 'मुझे बताइए कि मैं इसमें कैसे आपकी सहायता करूं।' यह सुनकर उद्धवजी प्रसन्नचित्त होकर बोले।"


श्लोक 54

श्रीकृष्णेन परित्यक्ते भूतले बलवान कलिः ।
करिष्यति परं विघ्नं सत्कार्ये समुपस्थिते ॥
अनुवाद:
"उद्धवजी ने कहा: 'जब से श्रीकृष्ण ने इस पृथ्वी का परित्याग किया है, बलवान कलियुग सत्कर्मों में विघ्न उत्पन्न कर रहा है।'"


श्लोक 55

तस्माद् दिग्विजयं याहि कलिनिग्रहमाचर ।
अहं तु मासमात्रेण वैष्णवीं रीतिमास्थितः ॥
अनुवाद:
"इसलिए आप दिग्विजय यात्रा पर जाकर कलियुग का दमन करें। इस बीच, मैं वैष्णव परंपरा के अनुसार एक महीने तक श्रीमद्भागवत का प्रचार करूंगा।"


श्लोक 56

श्रीमद्‌भागवतास्वादं प्रचार्यं त्वत्सहायतः ।
एतान् सम्प्रापयिष्यामि नित्यधाम्नि मधुद्विषः ॥
अनुवाद:
"मैं आपकी सहायता से श्रीमद्भागवत के रस का प्रचार करूंगा और इन भक्तों को भगवान श्रीकृष्ण के नित्य धाम में पहुंचाऊंगा।"


श्लोक 57

श्रुत्वैवं तद्वचो राजा मुदितश्चिन्तयाऽऽतुरः ।
तदा विज्ञापयामास स्वाभिप्रायं तमुद्धवम् ॥
अनुवाद:
"राजा (परीक्षित) उद्धवजी के इन वचनों को सुनकर प्रसन्न और चिंतनशील हो गए। तत्पश्चात उन्होंने अपना अभिप्राय उद्धवजी को बताया।"


श्लोक 58

कलिं तु निग्रहीष्यामि तात ते वचसि स्थितः ।
श्रीभागवतसम्प्राप्तिः कथं मम भविष्यति ॥
अनुवाद:
"परीक्षित ने कहा: 'हे तात! मैं आपके वचनों का पालन करते हुए कलियुग का दमन करूंगा। परंतु मुझे श्रीमद्भागवत की प्राप्ति कैसे होगी?'"


श्लोक 59

अहं तु समनुग्राह्यः तव पादतले श्रितः ।
श्रुत्वैतद् वचनं भूयोऽपि उद्धवस्तं उवाच ह ॥
अनुवाद:
"परीक्षित ने आगे कहा: 'मैं आपके चरणों के समीप शरणागत हूं। कृपया मुझे अनुग्रहित करें।' यह सुनकर उद्धवजी ने उन्हें पुनः उत्तर दिया।"


श्लोक 60

राजन् चिन्ता तु ते कापि नैव कार्या कथञ्चन ।
तवैव भगवत् शास्त्रे यतो मुख्याधिकारिता ॥
अनुवाद:
"उद्धवजी ने कहा: 'हे राजन! आपको किसी प्रकार की चिंता नहीं करनी चाहिए, क्योंकि भगवान के शास्त्र (श्रीमद्भागवत) में आपका विशेष अधिकार है।'"


श्लोक 61

एतावत् काल पर्यंतं प्रायो भागवतश्रुतेः ।
वार्तामपि न जानन्ति मनुष्याः कर्मतत्पराः ॥
अनुवाद:
"अब तक अधिकांश मनुष्य, जो केवल कर्मों में लगे रहते हैं, श्रीमद्भागवत के श्रवण या उसकी महिमा के विषय में भी नहीं जानते।"


श्लोक 62

त्वत्प्रसादेन बहवो मनुष्या भारताजिरे ।
श्रीमद्भागवतप्राप्तौ सुखं प्राप्स्यन्ति शाश्वतम् ॥
अनुवाद:
"आपकी कृपा से भारत भूमि में अनेक मनुष्य श्रीमद्भागवत को प्राप्त कर सदा के लिए आनंदित हो जाएंगे।"


श्लोक 63

नन्दनन्दनरूपस्तु श्रीशुको भगवान् ऋषिः ।
श्रीमद् भागवतं तुभ्यं श्रावयिष्यत्यसंशयम् ॥
अनुवाद:
"नंदनंदन रूप में प्रकट भगवान शुकदेव ऋषि आपको श्रीमद्भागवत का श्रवण कराएंगे, इसमें कोई संदेह नहीं।"


श्लोक 64

तेन प्राप्स्यसि राजन् त्वं नित्यं धाम व्रजेशितुः ।
श्रीभागवतसञ्चारः ततो भुवि भविष्यति ॥
अनुवाद:
"हे राजन! इसके माध्यम से आप व्रजेश्वर (श्रीकृष्ण) के नित्यधाम को प्राप्त करेंगे। इसके बाद पृथ्वी पर श्रीमद्भागवत का प्रचार होगा।"


श्लोक 65

तस्मात्त्वं गच्छ राजेन्द्र कलिनिग्रहमाचर ।
अनुवाद:
"इसलिए, हे राजेन्द्र (परीक्षित), आप शीघ्र जाकर कलियुग का दमन करें।"


श्लोक 66

वज्रस्तु निजराज्येशं प्रतिबाहुं विधाय च ।
तत्रैव मातृभिः साकं तस्थौ भागवताशया ॥
अनुवाद:
"वज्र ने अपने राज्य का भार अपने मंत्रियों पर सौंप दिया और अपनी माताओं के साथ रहकर श्रीमद्भागवत के श्रवण और चिंतन में लीन हो गया।"


श्लोक 67

अथ वृन्दावने मासं गोवर्धनसमीपतः ।
श्रीमद्भागवास्वादस्तु उद्धवेन प्रवर्तितः ॥
अनुवाद:
"इसके बाद उद्धवजी ने एक महीने तक वृंदावन में गोवर्धन पर्वत के पास श्रीमद्भागवत का रसास्वादन आरंभ किया।"


श्लोक 68

तस्मिन् आस्वाद्यमाने तु सच्चिदानन्दरूपिणी ।
प्रचकाशे हरेर्लीला सर्वतः कृष्ण एव च ॥
अनुवाद:
"श्रीमद्भागवत के रस का आस्वादन करते समय, श्रीकृष्ण की सच्चिदानंद स्वरूप लीलाएं चारों ओर प्रकट होने लगीं।"


श्लोक 69

आत्मानं च तदन्तःस्थं सर्वेऽपि ददृशुस्तदा ।
वज्रस्तु दक्षिणे दृष्ट्वा कृष्णपादसरोप्रुहे ॥
अनुवाद:
"सभी ने स्वयं को उन लीलाओं में देखा। वज्र ने कृष्ण के चरणों के कमल में अपनी आत्मा को स्थित पाया।"


श्लोक 70

स्वात्मानं कृष्णवैधुर्यान् मुक्तस्तद्‌भुव्यशोभत ।
ताश्च तन्मातरं कृष्णे रासरात्रिप्रकाशिनि ॥
अनुवाद:
"वज्र श्रीकृष्ण के वियोग से मुक्त होकर अद्भुत रूप में प्रकट हुआ। उसकी माताएं भी श्रीकृष्ण की रासलीला के प्रकाश में लीन हो गईं।"


श्लोक 71

चन्द्रे कलाप्रभारूपं आत्मानं वीक्ष्य विस्मिताः ।
स्वप्रेष्ठविरहव्याधिविमुक्ताः स्वपदं ययुः ॥
अनुवाद:
"उन्होंने चंद्रमा के समान तेजस्वी स्वरूप में स्वयं को देखा। वियोग की पीड़ा से मुक्त होकर वे अपने दिव्य धाम को चली गईं।"


श्लोक 72

येऽन्ये च तत्र ते सर्वे नित्यलीलान्तरं गताः ।
व्यावहारिकलोकेभ्यः सद्योऽदर्शनमागताः ॥
अनुवाद:
"जो अन्य लोग वहां उपस्थित थे, वे भी नित्यलीलाओं में प्रविष्ट हो गए और सांसारिक लोकों से तुरंत अदृश्य हो गए।"


श्लोक 73

गोवर्धननिकुञ्जेषु गोषु वृन्दावनादिषु ।
नित्यं कृष्णेन मोदन्ते दृश्यन्ते प्रेमतत्परैः ॥
अनुवाद:
"गोवर्धन के निकुंजों, गौओं और वृंदावन में श्रीकृष्ण सदा प्रकट होते हैं और प्रेम के प्रति समर्पित भक्तों को दिखते हैं।"


श्लोक 74

ये एतां भगवत्‌प्राप्तिं श्रुणुयाच्चापि कीर्तयेत् ।
तस्य वै भगवत् प्राप्तिः दुःखहानिश्च जायते ॥
अनुवाद:
"जो इस कथा को सुनते और इसका कीर्तन करते हैं, वे भगवान की प्राप्ति करते हैं और उनके सभी दुःख नष्ट हो जाते हैं।"



इति श्रीस्कान्दे महापुराणे… श्रीमद्भागवतमाहात्म्ये तृतीयोऽध्यायः ॥

"इस प्रकार श्रीस्कंद महापुराण के वैष्णव खंड में श्रीमद्भागवत माहात्म्य का तृतीय अध्याय समाप्त होता है।"



COMMENTS

BLOGGER
नाम

अध्यात्म,200,अनुसन्धान,19,अन्तर्राष्ट्रीय दिवस,2,अभिज्ञान-शाकुन्तलम्,5,अष्टाध्यायी,1,आओ भागवत सीखें,15,आज का समाचार,13,आधुनिक विज्ञान,19,आधुनिक समाज,146,आयुर्वेद,45,आरती,8,उत्तररामचरितम्,35,उपनिषद्,5,उपन्यासकार,1,ऋग्वेद,16,ऐतिहासिक कहानियां,4,ऐतिहासिक घटनाएं,13,कथा,6,कबीर दास के दोहे,1,करवा चौथ,1,कर्मकाण्ड,119,कादंबरी श्लोक वाचन,1,कादम्बरी,2,काव्य प्रकाश,1,काव्यशास्त्र,32,किरातार्जुनीयम्,3,कृष्ण लीला,2,क्रिसमस डेः इतिहास और परम्परा,9,गजेन्द्र मोक्ष,1,गीता रहस्य,1,ग्रन्थ संग्रह,1,चाणक्य नीति,1,चार्वाक दर्शन,3,चालीसा,6,जन्मदिन,1,जन्मदिन गीत,1,जीमूतवाहन,1,जैन दर्शन,3,जोक,6,जोक्स संग्रह,5,ज्योतिष,49,तन्त्र साधना,2,दर्शन,35,देवी देवताओं के सहस्रनाम,1,देवी रहस्य,1,धर्मान्तरण,5,धार्मिक स्थल,48,नवग्रह शान्ति,3,नीतिशतक,27,नीतिशतक के श्लोक हिन्दी अनुवाद सहित,7,नीतिशतक संस्कृत पाठ,7,न्याय दर्शन,18,परमहंस वन्दना,3,परमहंस स्वामी,2,पारिभाषिक शब्दावली,1,पाश्चात्य विद्वान,1,पुराण,1,पूजन सामग्री,7,पौराणिक कथाएँ,64,प्रश्नोत्तरी,28,प्राचीन भारतीय विद्वान्,99,बर्थडे विशेज,5,बाणभट्ट,1,बौद्ध दर्शन,1,भगवान के अवतार,4,भजन कीर्तन,38,भर्तृहरि,18,भविष्य में होने वाले परिवर्तन,11,भागवत,1,भागवत : गहन अनुसंधान,27,भागवत अष्टम स्कन्ध,28,भागवत एकादश स्कन्ध,31,भागवत कथा,118,भागवत कथा में गाए जाने वाले गीत और भजन,7,भागवत की स्तुतियाँ,3,भागवत के पांच प्रमुख गीत,2,भागवत के श्लोकों का छन्दों में रूपांतरण,1,भागवत चतुर्थ स्कन्ध,31,भागवत तृतीय स्कन्ध,33,भागवत दशम स्कन्ध,90,भागवत द्वादश स्कन्ध,13,भागवत द्वितीय स्कन्ध,10,भागवत नवम स्कन्ध,25,भागवत पञ्चम स्कन्ध,26,भागवत पाठ,58,भागवत प्रथम स्कन्ध,21,भागवत महात्म्य,3,भागवत माहात्म्य,12,भागवत माहात्म्य(हिन्दी),4,भागवत मूल श्लोक वाचन,55,भागवत रहस्य,53,भागवत श्लोक,7,भागवत षष्टम स्कन्ध,19,भागवत सप्तम स्कन्ध,15,भागवत साप्ताहिक कथा,9,भागवत सार,33,भारतीय अर्थव्यवस्था,4,भारतीय इतिहास,20,भारतीय दर्शन,4,भारतीय देवी-देवता,6,भारतीय नारियां,2,भारतीय पर्व,40,भारतीय योग,3,भारतीय विज्ञान,35,भारतीय वैज्ञानिक,2,भारतीय संगीत,2,भारतीय संविधान,1,भारतीय सम्राट,1,भाषा विज्ञान,15,मनोविज्ञान,1,मन्त्र-पाठ,7,महापुरुष,43,महाभारत रहस्य,33,मार्कण्डेय पुराण,1,मुक्तक काव्य,19,यजुर्वेद,3,युगल गीत,1,योग दर्शन,1,रघुवंश-महाकाव्यम्,5,राघवयादवीयम्,1,रामचरितमानस,4,रामचरितमानस की विशिष्ट चौपाइयों का विश्लेषण,124,रामायण के चित्र,19,रामायण रहस्य,65,राष्ट्रीयगीत,1,रुद्राभिषेक,1,रोचक कहानियाँ,150,लघुकथा,38,लेख,168,वास्तु शास्त्र,14,वीरसावरकर,1,वेद,3,वेदान्त दर्शन,10,वैदिक कथाएँ,38,वैदिक गणित,1,वैदिक विज्ञान,2,वैदिक संवाद,23,वैदिक संस्कृति,32,वैशेषिक दर्शन,13,वैश्विक पर्व,9,व्रत एवं उपवास,35,शायरी संग्रह,3,शिक्षाप्रद कहानियाँ,119,शिव रहस्य,1,शिव रहस्य.,5,शिवमहापुराण,14,शिशुपालवधम्,2,शुभकामना संदेश,7,श्राद्ध,1,श्रीमद्भगवद्गीता,23,श्रीमद्भागवत महापुराण,17,संस्कृत,10,संस्कृत गीतानि,36,संस्कृत बोलना सीखें,13,संस्कृत में अवसर और सम्भावनाएँ,6,संस्कृत व्याकरण,26,संस्कृत साहित्य,13,संस्कृत: एक वैज्ञानिक भाषा,1,संस्कृत:वर्तमान और भविष्य,6,संस्कृतलेखः,2,सनातन धर्म,2,सरकारी नौकरी,1,सरस्वती वन्दना,1,सांख्य दर्शन,6,साहित्यदर्पण,23,सुभाषितानि,8,सुविचार,5,सूरज कृष्ण शास्त्री,455,सूरदास,1,स्तोत्र पाठ,60,स्वास्थ्य और देखभाल,1,हँसना मना है,6,हमारी संस्कृति,93,हिन्दी रचना,32,हिन्दी साहित्य,5,हिन्दू तीर्थ,3,हिन्दू धर्म,2,about us,2,Best Gazzal,1,bhagwat darshan,3,bhagwatdarshan,2,birthday song,1,computer,37,Computer Science,38,contact us,1,darshan,17,Download,3,General Knowledge,29,Learn Sanskrit,3,medical Science,1,Motivational speach,1,poojan samagri,4,Privacy policy,1,psychology,1,Research techniques,38,solved question paper,3,sooraj krishna shastri,6,Sooraj krishna Shastri's Videos,60,
ltr
item
भागवत दर्शन: भागवत माहात्म्य, स्कन्द पुराण, तृतीय अध्याय (हिन्दी अनुवाद सहित)
भागवत माहात्म्य, स्कन्द पुराण, तृतीय अध्याय (हिन्दी अनुवाद सहित)
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhhQ5E6-wNANWLtfjyDlho61NNEPmvzL6fWa_7r0jRHoxw3WCR3ehOf0m2WtZdJzpPx1UHz_n6X0zvc1UyD9NKD7CoBWGOS5NqgOc-cAIYSOHoXcTwFQqKn1HdhRWIiK311RgzeMVh-5qRyyqJG8fmGiF_dOaoE6q0pVJ_o6ObELgy8UsSELGTRxq7EkzU/s16000/DALL%C2%B7E%202024-12-25%2023.48.46%20-%20An%20exquisitely%20enhanced%20Vrindavan%20scene%20featuring%20Bal%20Krishna%20in%20his%20child%20form,%20dancing%20joyfully%20under%20the%20banyan%20tree.%20His%20eyes%20are%20made%20even%20more%20c.webp
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhhQ5E6-wNANWLtfjyDlho61NNEPmvzL6fWa_7r0jRHoxw3WCR3ehOf0m2WtZdJzpPx1UHz_n6X0zvc1UyD9NKD7CoBWGOS5NqgOc-cAIYSOHoXcTwFQqKn1HdhRWIiK311RgzeMVh-5qRyyqJG8fmGiF_dOaoE6q0pVJ_o6ObELgy8UsSELGTRxq7EkzU/s72-c/DALL%C2%B7E%202024-12-25%2023.48.46%20-%20An%20exquisitely%20enhanced%20Vrindavan%20scene%20featuring%20Bal%20Krishna%20in%20his%20child%20form,%20dancing%20joyfully%20under%20the%20banyan%20tree.%20His%20eyes%20are%20made%20even%20more%20c.webp
भागवत दर्शन
https://www.bhagwatdarshan.com/2024/12/blog-post_801.html
https://www.bhagwatdarshan.com/
https://www.bhagwatdarshan.com/
https://www.bhagwatdarshan.com/2024/12/blog-post_801.html
true
1742123354984581855
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content