"मुह्यन्ति यत्सूरयः" का गहन विश्लेषण करते समय हमें इस वाक्यांश को उसके संदर्भ, भावार्थ और दर्शन से जोड़कर समझना होगा। यह अंश श्रीमद्भागवत महापुराण (1.
"मुह्यन्ति यत्सूरयः" का गहन विश्लेषण करते समय हमें इस वाक्यांश को उसके संदर्भ, भावार्थ और दर्शन से जोड़कर समझना होगा। यह अंश श्रीमद्भागवत महापुराण (1.1.1) के प्रसिद्ध मंगलाचरण श्लोक का हिस्सा है। आइए इसे और विस्तार से समझें:
1. श्लोक का पूर्ण पाठ:
जन्माद्यस्य यतोऽन्वयादितरतः चार्थेष्वभिज्ञः स्वराट्।
तेने ब्रह्म हृदा य आदिकवये मुह्यन्ति यत्सूरयः ॥
अनुवाद:
"मैं उस परब्रह्म को नमन करता हूँ, जिससे सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय होती है, जो हर वस्तु और स्थिति को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जानने वाला है। जिसने ब्रह्मा के हृदय में वेदज्ञान प्रदान किया और जिसके दिव्य स्वरूप व लीलाओं को देवता (सूरयः) भी समझने में भ्रमित हो जाते हैं।"
2. वाक्यांश का शाब्दिक विश्लेषण:
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मुह्यन्ति:
- संस्कृत में "मुह्य" का अर्थ है भ्रमित होना, चकित रह जाना या समझने में असमर्थ होना।
- यह बताता है कि परमात्मा के ज्ञान और लीला के आगे सबसे बड़े ज्ञानी भी अज्ञान की स्थिति में पड़ जाते हैं।
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यत्:
- यहाँ "यत्" उस दिव्य तत्व, ज्ञान या माया की ओर संकेत करता है जो परम सत्य (भगवान) का परिचायक है।
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सूरयः:
- "सूर" का अर्थ है देवता, ऋषि-मुनि या विद्वान।
- यहाँ यह शब्द यह दर्शाता है कि ज्ञान और तपस्या में अग्रणी व्यक्ति भी भगवान की माया और लीलाओं को पूरी तरह समझने में अक्षम हैं।
3. दार्शनिक और आध्यात्मिक विश्लेषण:
(i) भगवान की लीला और माया:
- "मुह्यन्ति यत्सूरयः" का भाव यह है कि भगवान का स्वरूप, उनका ज्ञान और उनकी लीलाएं इतनी गूढ़ हैं कि देवता जैसे ज्ञानी भी उसे पूरी तरह समझने में असमर्थ हैं।
- उनकी "माया" (दिव्य शक्ति) इतनी शक्तिशाली है कि यह भौतिक और आध्यात्मिक जगत को आच्छादित करती है।
- यहाँ भगवान की "अपरिचिन्त्यता" का वर्णन है – उनकी सत्ता और कार्यों को सीमित बुद्धि या तर्क से नहीं जाना जा सकता।
(ii) ज्ञान और भक्ति का महत्व:
- भले ही देवता और ऋषि ज्ञानी हों, लेकिन केवल ज्ञान के माध्यम से भगवान को जान पाना असंभव है।
- यह वाक्य भक्तिमार्ग की ओर संकेत करता है, जहाँ कहा गया है कि भगवान को केवल भक्ति, प्रेम और समर्पण के माध्यम से ही समझा जा सकता है।
(iii) सृष्टि की उत्पत्ति और उद्देश्य:
- इस श्लोक में बताया गया है कि भगवान सृष्टि के मूल कारण हैं। उनकी इच्छा से ही यह ब्रह्मांड उत्पन्न, स्थित और नष्ट होता है। लेकिन उनके इन कार्यों को समझना अत्यंत कठिन है।
- देवताओं और ऋषियों का भ्रमित होना यह दर्शाता है कि भगवान के कार्य हमारे भौतिक तर्क और कल्पना से परे हैं।
4. भगवान की अद्वितीयता और रहस्यमयता:
"मुह्यन्ति यत्सूरयः" वाक्यांश हमें बताता है कि:
- भगवान का ज्ञान और शक्ति अनंत है:
- उनके हर कार्य में अद्वितीयता और गहराई है। वे एक साथ "निर्गुण" (गुणों से परे) और "सगुण" (गुणयुक्त) हैं।
- देवताओं का भ्रमित होना:
- देवता भी भक्ति और प्रेम के बिना भगवान की पूर्णता को समझने में असमर्थ हैं।
- यह उनकी दिव्यता और अद्वितीयता का संकेत है।
5. प्रासंगिकता: आध्यात्मिक शिक्षा:
(i) विनम्रता और भक्ति का महत्व:
- यह वाक्य मानव को यह सिखाता है कि भगवान को केवल बुद्धि के बल पर नहीं जाना जा सकता।
- उनकी महिमा को समझने के लिए समर्पण और भक्ति आवश्यक है।
(ii) भगवान की लीला में श्रद्धा:
- यह श्लोक हमें यह भी प्रेरित करता है कि हम भगवान की लीलाओं को केवल तार्किक दृष्टिकोण से न देखें।
- उनकी हर लीला का एक गूढ़ अर्थ है, जो भक्तों के कल्याण के लिए है।
(iii) मानव का सीमित ज्ञान:
- मनुष्य की बुद्धि और ज्ञान सीमित हैं। इसलिए, भगवान को समझने में यदि हम असमर्थ हों, तो यह स्वाभाविक है। यह हमें विनम्र और सहिष्णु बनाता है।
6. आधुनिक परिप्रेक्ष्य में संदर्भ:
आज के युग में, जब हर चीज़ को विज्ञान और तर्क से मापा जाता है, यह वाक्य हमें यह याद दिलाता है कि कुछ सत्य ऐसे हैं, जिन्हें केवल अनुभव और विश्वास से ही समझा जा सकता है। "मुह्यन्ति यत्सूरयः" हमें यह सिखाता है कि ईश्वर और ब्रह्मांड की वास्तविकता को जानने के लिए तर्क और ज्ञान से परे जाकर आत्मा और भक्ति के स्तर पर सोचना होगा।
7. निष्कर्ष:
"मुह्यन्ति यत्सूरयः" भगवान की दिव्यता, उनकी अनिर्वचनीयता और अद्वितीयता का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि उनकी लीलाएं इतनी गूढ़ हैं कि ज्ञानीजन और देवता भी इसे समझने में असमर्थ हैं।
यह वाक्य मानव को यह सिखाता है कि भगवान के स्वरूप को समझने के लिए विनम्रता, भक्ति और श्रद्धा की आवश्यकता है। उनकी माया और लीलाएं मानव जीवन को यह अनुभव कराने के लिए हैं कि केवल समर्पण और प्रेम ही उनके निकट जाने का मार्ग है।
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