काव्य की परिभाषा और उसके तत्व:
"वाक्यं रसात्मकं काव्यम्।"
- वाक्यम् (वाक्य)
- रसात्मकम् (रस से युक्त)
- काव्यम्। (काव्य है)।
अनुवाद: रस से युक्त वाक्य काव्य कहलाता है।
रस का स्वरूप:
"रसस्य स्वरूपं निर्बाधानन्दः।"
- रसस्य (रस का)
- स्वरूपम् (स्वरूप)
- निर्बाध-आनन्दः। (निर्बाध आनंद है)।
अनुवाद: रस का स्वरूप निर्बाध आनंद है।
"विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पत्तिः।"
- विभाव-अनुभाव-व्यभिचारी-संयोगात् (विभाव, अनुभाव, और व्यभिचारी भावों के संयोग से)
- रस-निष्पत्तिः। (रस की उत्पत्ति होती है)।
अनुवाद: विभाव, अनुभाव, और व्यभिचारी भावों के संयोग से रस की उत्पत्ति होती है।
विभाव, अनुभाव, और व्यभिचारी भाव:
"विभावाः कारणं रसस्य।"
- विभावाः (विभाव)
- कारणम् (कारण हैं)
- रसस्य। (रस के)।
अनुवाद: विभाव रस के कारण होते हैं।
"अनुभावः तत्कारणजन्यक्रिया।"
- अनुभावः (अनुभाव)
- तत्-कारण-जन्य-क्रिया। (उस कारण से उत्पन्न क्रिया है)।
अनुवाद: अनुभाव उस कारण (विभाव) से उत्पन्न क्रिया को कहते हैं।
"व्यभिचारिभावाः सहायकः।"
- व्यभिचारि-भावाः (व्यभिचारी भाव)
- सहायकः। (सहायक होते हैं)।
अनुवाद: व्यभिचारी भाव रस की उत्पत्ति में सहायक होते हैं।
काव्य के दोष और गुण:
"दोषाः काव्यस्य रसापकर्षकाः।"
- दोषाः (दोष)
- काव्यस्य (काव्य के)
- रस-अपकर्षकाः। (रस को कम करने वाले)।
अनुवाद: काव्य के दोष वे होते हैं जो रस को कम करते हैं।
"गुणाः काव्यस्य रसवर्धकाः।"
- गुणाः (गुण)
- काव्यस्य (काव्य के)
- रस-वर्धकाः। (रस को बढ़ाने वाले)।
अनुवाद: काव्य के गुण वे होते हैं जो रस को बढ़ाते हैं।
काव्य में अलंकार का स्थान:
"अलंकाराः काव्यस्य शोभा।"
- अलंकाराः (अलंकार)
- काव्यस्य (काव्य की)
- शोभा। (सौंदर्य हैं)।
अनुवाद: अलंकार काव्य का सौंदर्य बढ़ाते हैं।
"रीतयोऽवयवसंस्थानविशेषवत्।"
- रीतयः (रीतियाँ)
- अवयव-संस्थान-विशेषवत्। (अवयवों की विशेष रचना के समान)।
अनुवाद: रीतियाँ काव्य में अवयवों (शब्द और अर्थ) की विशेष रचना के समान होती हैं।
रस और ध्वनि की अनिवार्यता:
"रस एवात्मा काव्यस्य।"
- रसः (रस)
- एव (ही)
- आत्मा (आत्मा है)
- काव्यस्य। (काव्य की)।
अनुवाद: रस ही काव्य की आत्मा है।
"ध्वनिः काव्यस्य प्राणः।"
- ध्वनिः (ध्वनि)
- काव्यस्य (काव्य की)
- प्राणः। (प्राण है)।
अनुवाद: ध्वनि काव्य का प्राण है।
निष्कर्ष:
साहित्यदर्पण में काव्य की आत्मा (रस) और उसकी संरचना (शब्द, अर्थ, अलंकार, गुण, दोष, और ध्वनि) को गहराई से समझाया गया है। इसमें काव्य के मुख्य उद्देश्य—रस की अभिव्यक्ति—को सर्वोपरि बताया गया है। दोषों को त्याज्य और गुणों को वर्धनीय मानते हुए, काव्य की सौंदर्यवृद्धि में अलंकार और रीतियों की भूमिका को रेखांकित किया गया है।
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