महावाक्य और वाक्य के प्रकार

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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महावाक्य और वाक्य के प्रकार
महावाक्य और वाक्य के प्रकार



महावाक्य और वाक्य के प्रकार:

"इत्थं वाक्यं द्विधा मतं।" (सूत्र 2.1)

  • इत्थम् (इस प्रकार)
  • वाक्यं (वाक्य)
  • द्विधा (दो प्रकार का)
  • मतं (माना गया)।

अनुवाद: इस प्रकार वाक्य को दो प्रकार का माना गया है।

"उक्तं च तन्त्रवार्तिके--
'स्वार्थबोधसमाप्तानामङ्गाङ्गित्वव्यपेक्षया।
वाक्यानामेकवाक्यत्वं पुनः संहत्य जायते।।'"

  • उक्तं (कहा गया)
  • (और)
  • तन्त्रवार्तिके (तन्त्रवार्तिक में)
  • स्वार्थबोधसमाप्तानाम् (स्वार्थ का बोध कर चुके)
  • अङ्ग-अङ्गित्व-व्यपेक्षया (अंग और मुख्य के संबंध में)
  • वाक्यानाम् (वाक्यों का)
  • एकवाक्यत्वम् (एक वाक्य होना)
  • पुनः (फिर)
  • संहत्य (संग्रह करके)
  • जायते (होता है)।

अनुवाद: तन्त्रवार्तिक में कहा गया है कि जब वाक्य अपने स्वार्थ बोध को पूरा कर लेते हैं, तो अंग और मुख्य के संबंध में इन्हें एक वाक्य माना जाता है।


वाक्य और महावाक्य के उदाहरण:

"तत्र वाक्यं यथा--'शून्यं वासगृहम्।'"

  • तत्र (वहाँ)
  • वाक्यं (वाक्य)
  • यथा (जैसे)
  • शून्यं वासगृहम् (गृह खाली है)।

अनुवाद: वाक्य का उदाहरण है - "गृह खाली है।"

"महावाक्यं यथा--रामायण-महाभारत-रघुवंशादि।"

  • महावाक्यं (महावाक्य)
  • यथा (जैसे)
  • रामायण-महाभारत-रघुवंश-आदि (रामायण, महाभारत, रघुवंश आदि)।

अनुवाद: महावाक्य का उदाहरण है - रामायण, महाभारत, रघुवंश आदि।


पद की परिभाषा (सूत्र 2.2):

"वर्णाः पदं प्रयोगार्हानन्वितेकार्थबोधकाः।"

  • वर्णाः (अक्षर)
  • पदं (पद)
  • प्रयोगार्हः (प्रयोग योग्य)
  • अनन्वितेः (स्वतंत्र)
  • एक-अर्थ-बोधकाः (एक अर्थ का बोध कराने वाले)।

अनुवाद: अक्षरों का वह समूह जो प्रयोग के योग्य, स्वतंत्र, और एक अर्थ का बोध कराने वाला हो, उसे पद कहते हैं।

"यथा--घट।"

  • यथा (जैसे)
  • घट (घड़ा)।

अनुवाद: उदाहरण - "घट" (घड़ा)।


अर्थ के प्रकार (सूत्र 2.3):

"अर्थो वाच्यश्च लक्ष्यश्च व्यङ्ग्यश्चेति त्रिधा मतः।"

  • अर्थः (अर्थ)
  • वाच्यः (जो कहा गया है)
  • लक्ष्यः (जो संकेतित है)
  • व्यङ्ग्यः (जो व्यंग्य रूप से कहा गया है)
  • (और)
  • इति (इस प्रकार)
  • त्रिधा (तीन प्रकार का)
  • मतः (माना गया)।

अनुवाद: अर्थ तीन प्रकार के माने गए हैं - वाच्य (स्पष्ट), लक्ष्य (संकेतित), और व्यंग्य (गूढ़)।


वाच्य, लक्ष्य और व्यंग्य की व्याख्या:

"वाच्योऽर्थोऽभिधया बोध्यः लक्ष्यो लक्षणया मतः।
व्यङ्ग्यो व्यञ्जनया ताः स्युस्तिस्त्रः शब्दस्य शक्तयः।।" (सूत्र 2.4)

  • वाच्यः (वाच्य)
  • अर्थः (अर्थ)
  • अभिधया (अभिधा के माध्यम से)
  • बोध्यः (समझा जाता है)
  • लक्ष्यः (लक्ष्य)
  • लक्षणया (लक्षणा से)
  • मतः (माना गया)
  • व्यङ्ग्यः (व्यंग्य)
  • व्यञ्जनया (व्यंजना से)
  • ताः (वे)
  • स्युः (होती हैं)
  • तिस्रः (तीन)
  • शब्दस्य (शब्द की)
  • शक्तयः (शक्तियाँ)।

अनुवाद: वाच्य अर्थ अभिधा के माध्यम से, लक्ष्य अर्थ लक्षणा के माध्यम से, और व्यंग्य अर्थ व्यंजना के माध्यम से समझा जाता है। ये तीन शब्द की शक्तियाँ हैं।


अभिधा का विवरण:

"तत्र संकेतितार्थस्य बोधनादग्रिमा अभिधा।"

  • तत्र (वहाँ)
  • संकेतित-अर्थस्य (संकेतित अर्थ का)
  • बोधनात् (बोध कराने वाली)
  • अग्रिमा (प्रथम)
  • अभिधा (अभिधा)।

अनुवाद: संकेतित अर्थ को बोध कराने वाली शक्ति को अभिधा कहते हैं।

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