आग्नीध्र की कथा भागवत पुराण के पंचम स्कंध के अध्याय 2 में वर्णित है। राजा आग्नीध्र, स्वायंभुव मनु के पौत्र और राजा प्रियव्रत के पुत्र थे। उनकी कथा में धर्म, तपस्या और सृष्टि के विस्तार का महत्वपूर्ण विवरण मिलता है।
आग्नीध्र का तप और अप्सरा पुरंजना से विवाह
- राजा प्रियव्रत ने अपनी संतान को सप्तद्वीपों में विभाजित किया। आग्नीध्र को जंबूद्वीप का राज्य मिला। आग्नीध्र अपनी प्रजा के कल्याण के लिए तपस्या करने वन में गए और वहाँ भगवान ब्रह्मा की उपासना करने लगे।
भगवान ब्रह्मा की कृपा
- भगवान ब्रह्मा उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्हें सृष्टि के विस्तार के लिए आशीर्वाद स्वरूप पुरंजना नामक अप्सरा भेजी।
श्लोक:
तत्राप्यनुगृहायास्य पुरं जनयितुं प्रभुः।
पुरंजना नाम वरां कन्यां प्राहिणोत्प्रभुः।।
(भागवत पुराण 5.2.7)
भावार्थ:
- भगवान ब्रह्मा ने आग्नीध्र के तप से प्रसन्न होकर सृष्टि के विस्तार के लिए पुरंजना नाम की अप्सरा को उनके पास भेजा।
आग्नीध्र और पुरंजना का मिलन
- पुरंजना के सौंदर्य से मोहित होकर आग्नीध्र ने उनसे विवाह का प्रस्ताव रखा। पुरंजना ने विवाह स्वीकार किया, और दोनों ने एक साथ सात पुत्रों और सात द्वीपों के विस्तार के लिए कार्य किया।
श्लोक:
तां दृष्ट्वा पौरवः कन्यां कामैरनुपलब्धधीः।
उवाच सुस्मितामेतामभिगम्य प्रहर्षितः।।
(भागवत पुराण 5.2.9)
भावार्थ:
- राजा आग्नीध्र ने पुरंजना का सौंदर्य देखकर प्रसन्नता से उन्हें प्रणाम किया और उनके साथ विवाह किया।
आग्नीध्र के सात पुत्र और सात प्रदेश
- आग्नीध्र और पुरंजना से सात पुत्र उत्पन्न हुए, जिन्होंने जंबूद्वीप के सात विभाजनों का संचालन किया। उनके पुत्रों के नाम इस प्रकार हैं:
1. नाभि
2. किम्पुरुष
3. हरिवर्ष
4. इलावृत
5. रम्यक
6. हिरण्मय
7. कुरु
इन पुत्रों को जंबूद्वीप के सात क्षेत्र दिए गए, जिन्हें उनके नाम पर ही जाना जाता है।
श्लोक:
तस्यां सप्त सुतानासूत ताम्रायां धर्मपारगः।
तैर्जंबूद्वीपवत्सप्त विभागा उपकल्पिताः।।
(भागवत पुराण 5.2.15)
भावार्थ:
- आग्नीध्र ने पुरंजना से सात पुत्रों को जन्म दिया और उनके द्वारा जंबूद्वीप के सात भागों का विभाजन किया गया।
नाभि और ऋषभदेव का जन्म
- आग्नीध्र के सात पुत्रों में सबसे बड़े नाभि ने भगवान विष्णु की तपस्या की और उनके आशीर्वाद से भगवान ऋषभदेव का जन्म हुआ। ऋषभदेव ने संसार में धर्म, ज्ञान और वैराग्य का प्रचार किया।
श्लोक:
ऋषभं परमं यज्ञं कल्पयामास भूरिदः।
यज्ञैर्विविधैर्होमैरभ्यर्च्य हरिमादृतः।।
(भागवत पुराण 5.3.8)
भावार्थ:
- नाभि ने भगवान विष्णु की तपस्या से ऋषभदेव को जन्म दिया, जिन्होंने संसार में धर्म की स्थापना की।
आग्नीध्र की कथा का संदेश
1. धर्म और तपस्या का महत्व: आग्नीध्र की तपस्या ने उन्हें जीवन में सफलता और सृष्टि के विस्तार का साधन प्रदान किया।
2. ईश्वर की कृपा: ईश्वर की कृपा से ही मनुष्य को उसके प्रयासों का फल मिलता है।
3. सृष्टि के विस्तार में योगदान: आग्नीध्र ने अपने पुत्रों के माध्यम से जंबूद्वीप के सात क्षेत्रों का विस्तार किया और सृष्टि को आगे बढ़ाया।
4. कर्तव्य का पालन: राजा होने के नाते आग्नीध्र ने अपने कर्तव्यों का पालन किया और अपनी प्रजा का कल्याण किया।
निष्कर्ष
राजा आग्नीध्र की कथा भागवत पुराण में सृष्टि के विस्तार और धर्म के पालन की शिक्षा देती है। उनके पुत्रों के माध्यम से संसार में ज्ञान, धर्म, और संतुलन की स्थापना हुई। यह कथा यह भी बताती है कि तपस्या और ईश्वर की भक्ति से संसार के महान कार्य संपन्न किए जा सकते हैं।
thanks for a lovly feedback