तात्पर्य और वाक्यार्थ के संबंध:
"तात्पर्याख्यां वृत्तिमाहुः पदार्थान्वयबोधने।
तात्पर्यार्थं तदर्थं च वाक्यं तद्वोधकं परे।।"
- तात्पर्याख्यां (तात्पर्य नामक)
- वृत्तिम् (वृत्ति)
- आहुः (कहते हैं)
- पदार्थ-अन्वय-बोधने (पदार्थों के परस्पर संबंध को समझाने में)
- तात्पर्यार्थम् (तात्पर्य का अर्थ)
- तदर्थम् च (और उसका अर्थ भी)
- वाक्यम् (वाक्य)
- तद्वोधकं (उसका बोध कराने वाला)
- परे। (दूसरों के अनुसार)।
अनुवाद: तात्पर्य नामक वृत्ति वह है जो पदार्थों के परस्पर संबंध को स्पष्ट करती है। तात्पर्य का अर्थ वाक्य के माध्यम से ही समझाया जाता है।
तात्पर्य का विवरण:
"अभिधाया एकैकपदार्थबोधनविरामाद्वाक्यार्थरूपस्य पदार्थान्वयस्य बोधिका तात्पर्य नाम वृत्तिः।"
- अभिधाया (अभिधा के माध्यम से)
- एकैक-पदार्थ-बोधन-विरामात् (प्रत्येक शब्द का अर्थ समझाने के बाद)
- वाक्यार्थ-रूपस्य (वाक्य के स्वरूप के)
- पदार्थ-अन्वयस्य (पदार्थों के परस्पर संबंध का)
- बोधिका (जो बोध कराती है)
- तात्पर्य नाम वृत्तिः। (उसे तात्पर्य नामक वृत्ति कहते हैं)।
अनुवाद: अभिधा के माध्यम से प्रत्येक शब्द का अर्थ स्पष्ट होने के बाद, वाक्य के स्वरूप में पदार्थों के संबंध को स्पष्ट करने वाली प्रक्रिया को तात्पर्य कहते हैं।
तात्पर्य के अन्य दृष्टिकोण:
"वक्तृबुद्ध्युपरूढा तात्पर्याख्या वृत्तिर्वाक्यार्थबोधिका।"
- वक्तृ-बुद्धि-उपरूढा (वक्ता की बुद्धि पर आधारित)
- तात्पर्याख्या वृत्तिः (तात्पर्य नामक वृत्ति)
- वाक्यार्थ-बोधिका। (वाक्य का अर्थ समझाने वाली)।
अनुवाद: वक्ता की बुद्धि पर आधारित तात्पर्य नामक वृत्ति वाक्य के अर्थ को स्पष्ट करती है।
व्यंजना की व्याख्या:
"व्यञ्जना नाम वृत्तिर्मुख्यार्थे पर्यवसितायां लक्षणायां वा विरतायामुपजातगूढार्थबोधिका।"
- व्यञ्जना नाम वृत्तिः (व्यंजना नामक वृत्ति)
- मुख्यार्थे (मुख्य अर्थ में)
- पर्यवसितायाम् (समाप्त होने पर)
- लक्षणायां वा विरतायाम् (या लक्षणा समाप्त होने पर)
- उपजात-गूढ-अर्थ-बोधिका। (गूढ़ अर्थ को प्रकट करने वाली)।
अनुवाद: जब मुख्य अर्थ या लक्षणा समाप्त हो जाती है, तब व्यंजना नामक वृत्ति गूढ़ अर्थ को प्रकट करती है।
व्यंजना के आधार और प्रकार:
"व्यञ्जना द्विधा साभिधामूलालक्षणामूलत्वे।"
- व्यञ्जना द्विधा (व्यंजना दो प्रकार की है)
- साभिधा-मूल (अभिधा पर आधारित)
- अलक्षणा-मूलत्वे। (लक्षणा पर आधारित)।
अनुवाद: व्यंजना दो प्रकार की होती है - अभिधा पर आधारित और लक्षणा पर आधारित।
व्यञ्जना का उदाहरण:
"कालो मधुः कुपित एष च पुष्पधन्वा।
धीरा वहन्ति रतिखेदहराः समीराः।।"
- कालः (वसंत ऋतु)
- मधुः (मधुर)
- कुपितः (क्रोधित)
- एषः (यह)
- पुष्पधन्वा (कामदेव)
- धीरा (शांत)
- वहन्ति (चलती हैं)
- रतिखेदहराः (प्रेम की थकान हरने वाली)
- समीराः। (हवाएँ)।
अनुवाद: "वसंत मधुर है, कामदेव क्रोधित हैं, और प्रेम की थकान हरने वाली हवाएँ धीरे-धीरे बह रही हैं।" इसमें व्यंजना के माध्यम से गूढ़ भाव प्रकट किया गया है।
निष्कर्ष:
साहित्यदर्पण के इस खंड में अभिधा, लक्षणा, और व्यंजना की प्रकृति और उपयोग का विश्लेषण किया गया है। तात्पर्य और व्यंजना की गहराई से व्याख्या करते हुए यह काव्य और भाषा की सूक्ष्मताओं को उजागर करता है।
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