"चार्थेष्वभिज्ञः" का गहन विश्लेषण

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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"चार्थेष्वभिज्ञः" का गहन विश्लेषण करते समय हमें इसके शाब्दिक अर्थ, व्युत्पत्ति, और दार्शनिक गहराई पर विचार करना होगा। यह शब्द श्रीमद्भागवत महापुराण (1.1.1) के मंगलाचरण श्लोक का हिस्सा है और भगवान की सर्वज्ञता को व्यक्त करता है।


1. "चार्थेष्वभिज्ञः" का शाब्दिक विश्लेषण

  1. चार्थेषु:

    • "च" का अर्थ है "और"।
    • "अर्थेषु" का अर्थ है "सभी अर्थों में", अर्थात् सभी कार्यों, वस्तुओं, घटनाओं, और उनके उद्देश्यों में। यह भौतिक और आध्यात्मिक अर्थों दोनों को समाहित करता है।
  2. अभिज्ञः:

    • "अभि" + "ज्ञ" = "अभिज्ञ"।
      • "अभि" का अर्थ है "संपूर्णता में" या "पूर्ण रूप से"।
      • "ज्ञ" का अर्थ है "जानना"।
    • "अभिज्ञः" का अर्थ है "संपूर्ण रूप से जानने वाला" या "सर्वज्ञ"।

अर्थ:

"चार्थेष्वभिज्ञः" का अर्थ है "सभी अर्थों, वस्तुओं, घटनाओं और उनके उद्देश्यों को संपूर्णता में जानने वाला।"


2. श्लोक का संदर्भ

श्लोक:

जन्माद्यस्य यतोऽन्वयादितरतश्चार्थेष्वभिज्ञः स्वराज्।

अनुवाद:

"मैं उस परब्रह्म को नमन करता हूँ, जिससे सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय होती है; जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सभी अर्थों और कार्यों को संपूर्णता में जानने वाला है और जो पूर्ण स्वाधीन है।"


3. "चार्थेष्वभिज्ञः" का दार्शनिक अर्थ

(i) सर्वज्ञता (सभी कुछ जानने वाला):

  • भगवान "चार्थेष्वभिज्ञः" हैं, क्योंकि वे सभी वस्तुओं, कार्यों, और घटनाओं के प्रत्यक्ष (प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देने वाले) और अप्रत्यक्ष (छिपे हुए या गुप्त) अर्थों को जानते हैं।
  • वे सृष्टि, स्थिति, और प्रलय के प्रत्येक पहलू को समझते हैं, चाहे वह भौतिक हो या आध्यात्मिक।

(ii) कार्य और कारण का ज्ञान:

  • भगवान को न केवल हर घटना या वस्तु का ज्ञान है, बल्कि उसके पीछे के कारण और उद्देश्य का भी ज्ञान है।
  • उदाहरण: यदि किसी जीव को कर्मफल भुगतना पड़ता है, तो भगवान को उसके कर्मों, विचारों, और उनसे उत्पन्न परिणामों का संपूर्ण ज्ञान है।

(iii) सृष्टि का रहस्य:

  • सृष्टि कैसे उत्पन्न होती है, कैसे कार्य करती है, और अंततः कैसे लय होती है – इन सबका ज्ञान भगवान को है।
  • "चार्थेषु" यहाँ सृष्टि के चार प्रमुख पहलुओं को भी दर्शाता है: उत्पत्ति (सृजन), स्थिति (पालन), प्रलय (विनाश), और माया (अज्ञान का परदा)।

4. "चार्थेष्वभिज्ञः" का व्यावहारिक और आध्यात्मिक महत्व

(i) भगवान का सर्वज्ञ स्वरूप:

  • "अभिज्ञः" यह दिखाता है कि भगवान केवल सृष्टि के कर्ता ही नहीं हैं, बल्कि वे हर वस्तु और घटना के हर पहलू को जानते हैं। उनका ज्ञान पूर्ण और त्रिकालदर्शी है – वे भूत, वर्तमान और भविष्य को समान रूप से जानते हैं।

(ii) मानव के लिए शिक्षा:

  • यह शब्द यह सिखाता है कि भगवान को कभी भी धोखा नहीं दिया जा सकता। उनकी सर्वज्ञता का सम्मान करना चाहिए और उनके मार्ग पर चलना चाहिए।
  • हमारे कर्म, विचार, और इच्छाएं सब भगवान के सामने स्पष्ट हैं। यह मानव को नैतिकता और धर्म का पालन करने के लिए प्रेरित करता है।

(iii) सृष्टि और जीवन के उद्देश्य को समझना:

  • "चार्थेषु" यह संकेत करता है कि हर घटना या कार्य का एक उद्देश्य होता है, और भगवान इसे पूरी तरह जानते हैं।
  • यह हमें सिखाता है कि हमारे जीवन की घटनाएं ईश्वर के ज्ञान और उनकी योजना का हिस्सा हैं, जिन्हें हमें विनम्रता से स्वीकार करना चाहिए।

5. "चार्थेष्वभिज्ञः" और मानव बुद्धि का संबंध

  • सीमित बुद्धि: मानव की बुद्धि सीमित है और वह सभी कार्यों और उनके परिणामों को पूरी तरह समझने में असमर्थ है।
  • भगवान की अपौरुषेयता: भगवान का ज्ञान अपौरुषेय (मानव सीमाओं से परे) है। "चार्थेष्वभिज्ञः" हमें यह सिखाता है कि सच्चा ज्ञान केवल भगवान से प्राप्त किया जा सकता है।
  • भक्ति मार्ग: यह शब्द यह भी इंगित करता है कि भगवान को समझने का प्रयास केवल भक्ति और समर्पण के माध्यम से ही संभव है।

6. "चार्थेष्वभिज्ञः" का आधुनिक परिप्रेक्ष्य में अर्थ

(i) ज्ञान और विज्ञान का संबंध:

  • यह शब्द बताता है कि भगवान का ज्ञान पूर्ण और वैज्ञानिक है। सृष्टि के पीछे की प्रत्येक प्रक्रिया, चाहे वह भौतिक हो या आध्यात्मिक, भगवान की सर्वज्ञता में समाहित है।
  • आज के वैज्ञानिक अनुसंधान भी केवल भगवान की सृष्टि की कार्यप्रणाली को समझने का प्रयास हैं।

(ii) कारण और प्रभाव का सिद्धांत:

  • "चार्थेषु" यह दर्शाता है कि प्रत्येक घटना के पीछे एक कारण होता है। यह हमें अपनी क्रियाओं के प्रति अधिक सतर्क और जिम्मेदार बनने के लिए प्रेरित करता है।

7. शब्द की व्यापकता: आध्यात्मिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण

  1. आध्यात्मिक दृष्टिकोण:

    • भगवान हर कार्य और उद्देश्य के ज्ञाता हैं, इसलिए उनका शरण लेना और उनके मार्ग पर चलना हमें सच्चे ज्ञान और शांति की ओर ले जाता है।
  2. व्यावहारिक दृष्टिकोण:

    • यह शब्द हमें यह सिखाता है कि किसी भी कार्य को करने से पहले उसके उद्देश्य और परिणाम पर विचार करना चाहिए।
    • यह नैतिकता और जिम्मेदारी का पाठ पढ़ाता है।

8. निष्कर्ष

"चार्थेष्वभिज्ञः" भगवान के सर्वज्ञता, सर्वशक्तिमानता, और सृष्टि के हर पहलू के प्रति उनकी सूक्ष्म और गहन समझ का प्रतीक है। यह शब्द हमें यह सिखाता है कि भगवान की दृष्टि में कोई भी कार्य, उद्देश्य, या विचार छिपा हुआ नहीं है।

यह हमें भगवान की योजना में विश्वास रखने, अपने कर्मों में सतर्कता बरतने, और सच्चाई व धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। यह शब्द भगवान की पूर्णता और उनकी अचूकता को दर्शाने वाला एक महत्वपूर्ण दार्शनिक सिद्धांत है।

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