लोट् लकार (आज्ञा, निवेदन, प्रार्थना) का परिचय
लोट् लकार (आज्ञा, निवेदन, प्रार्थना) का परिचय
लोट् लकार संस्कृत व्याकरण में उन क्रियाओं को व्यक्त करने के लिए प्रयुक्त होता है, जो किसी कार्य के लिए आज्ञा, निवेदन, प्रार्थना, या शुभकामना का भाव प्रकट करते हैं। यह लकार आदेशात्मक या इच्छावाचक रूप को व्यक्त करता है।
लोट् लकार के मुख्य उपयोग
- आज्ञा: कार्य करने का आदेश।
- उदाहरण: गच्छतु। (जाए।)
- निवेदन: कार्य करने का अनुरोध।
- उदाहरण: पठाव। (हम पढ़ें।)
- प्रार्थना: किसी उच्च शक्ति या देवता से अनुरोध।
- उदाहरण: प्रसादं ददातु। (प्रसाद दें।)
- शुभकामना: आशीर्वाद या शुभभावना।
- उदाहरण: सर्वे सुखिनः सन्तु। (सभी सुखी हों।)
लोट् लकार के प्रत्यय
परस्मैपद प्रत्यय:
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | -तु | -ताम् | -न्तु |
मध्यम पुरुष | -हि | -तम् | -त |
उत्तम पुरुष | -आनि | -आव | -आम |
आत्मनेपद प्रत्यय:
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | -ताम् | -आताम् | -अन्ताम् |
मध्यम पुरुष | -स्व | -थाम् | -ध्वम् |
उत्तम पुरुष | -इ | -वहै | -महै |
लोट् लकार में आत्मनेपद के रूप
गम् धातु (जाना) आत्मनेपद:
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | गम्यताम् | गम्येताम् | गम्यन्ताम् |
मध्यम पुरुष | गम्यस्व | गम्येथाम् | गम्यध्वम् |
उत्तम पुरुष | गम्यै | गम्यावहै | गम्यामहै |
पठ् धातु (पढ़ना) आत्मनेपद:
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | पठ्यताम् | पठ्येताम् | पठ्यन्ताम् |
मध्यम पुरुष | पठ्यस्व | पठ्येथाम् | पठ्यध्वम् |
उत्तम पुरुष | पठ्यै | पठ्यावहै | पठ्यामहै |
लोट् लकार में परस्मैपद के रूप
गम् धातु (जाना) परस्मैपद:
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | गच्छतु | गच्छताम् | गच्छन्तु |
मध्यम पुरुष | गच्छ | गच्छतम् | गच्छत |
उत्तम पुरुष | गच्छानि | गच्छाव | गच्छाम |
पठ् धातु (पढ़ना) परस्मैपद:
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | पठतु | पठताम् | पठन्तु |
मध्यम पुरुष | पठहि | पठतम् | पठत |
उत्तम पुरुष | पठानि | पठाव | पठाम |
लोट् लकार के वाक्य प्रयोग
आज्ञा (परस्मैपद):
- रामः गच्छतु।
(राम जाए।) - गुरुः पठतु।
(गुरु पढ़े।)
निवेदन (आत्मनेपद):
- त्वं गम्यस्व।
(तुम जाओ।) - वयं पठ्यामहै।
(हम पढ़ें।)
प्रार्थना:
- देवः प्रसन्नः भवतु।
(भगवान प्रसन्न हों।) - सर्वे सन्तु निरामयाः।
(सभी स्वस्थ रहें।)
शुभकामना:
- सुखी भवतु।
(सुखी रहें।) - सर्वे भवन्तु सुखिनः।
(सभी सुखी हों।)
विशेषताएँ
-
साहित्यिक प्रयोग:
संस्कृत के काव्य, वेदों, और मंत्रों में लोट् लकार का बहुत अधिक उपयोग होता है। -
व्यक्तित्व निर्माण:
आदेश, प्रार्थना, और निवेदन के माध्यम से इसे संवाद में कुशलता से प्रयोग किया जाता है। -
भाव व्यक्त करना:
- आज्ञा: गुरुजनों से।
- निवेदन: मित्रों से।
- प्रार्थना: ईश्वर या देवताओं से।
- शुभकामना: सभी के लिए।
सारांश
लोट् लकार संस्कृत व्याकरण का महत्वपूर्ण भाग है, जो आदेश, प्रार्थना, और शुभकामनाओं को व्यक्त करता है। इसका उपयोग संवाद, शिक्षण, और आध्यात्मिक साहित्य में अत्यंत महत्वपूर्ण है।
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