पूतना उद्धार: आध्यात्मिक चिंतन

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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यह चित्र भागवत पुराण में वर्णित पूतना उद्धार का दृश्य प्रस्तुत करता है। इसमें बालक श्रीकृष्ण को पूतना की गोद में दिखाया गया है, जो एक सुंदर महिला के रूप में प्रकट हुई है। भगवान कृष्ण अपनी दिव्य आभा के साथ पूतना के प्राणों को खींचते हुए दिखाए गए हैं, और पूतना का वास्तविक राक्षसी स्वरूप उभरने लगा है। पृष्ठभूमि में गोकुल का शांत वातावरण, गायें, झोपड़ियाँ, और हरियाली इस प्रसंग को और अधिक जीवन्त बनाते हैं। यह चित्र भगवान कृष्ण की करुणा और दिव्यता को दर्शाता है, जो पापों का अंत करके उद्धार का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

यह चित्र भागवत पुराण में वर्णित पूतना उद्धार का दृश्य प्रस्तुत करता है। इसमें बालक श्रीकृष्ण को पूतना की गोद में दिखाया गया है, जो एक सुंदर महिला के रूप में प्रकट हुई है। भगवान कृष्ण अपनी दिव्य आभा के साथ पूतना के प्राणों को खींचते हुए दिखाए गए हैं, और पूतना का वास्तविक राक्षसी स्वरूप उभरने लगा है। पृष्ठभूमि में गोकुल का शांत वातावरण, गायें, झोपड़ियाँ, और हरियाली इस प्रसंग को और अधिक जीवन्त बनाते हैं। यह चित्र भगवान कृष्ण की करुणा और दिव्यता को दर्शाता है, जो पापों का अंत करके उद्धार का मार्ग प्रशस्त करते हैं।



पूतना उद्धार: आध्यात्मिक चिंतन

प्रस्तावना
पूतना उद्धार का प्रसंग भागवत पुराण (स्कंध 10) में भगवान श्रीकृष्ण के बाल-लीलाओं के अंतर्गत आता है। पूतना, जो एक राक्षसी थी, को भगवान श्रीकृष्ण ने बाल्यावस्था में ही उसका उद्धार कर दिया। यह प्रसंग केवल पौराणिक कथा नहीं, बल्कि गहन आध्यात्मिक संदेशों से भरा हुआ है। इसमें धर्म, भक्ति, और ईश्वर की अनंत करुणा के अनेक पहलू छिपे हुए हैं। पूतना का उद्धार यह दर्शाता है कि भगवान की शरण में जाने से सबसे पापी व्यक्ति भी शुद्ध हो सकता है।


पूतना का चरित्र और प्रतीकात्मक अर्थ

  1. पूतना का चरित्र:
    पूतना एक राक्षसी थी, जिसे कंस ने भेजा था। उसका उद्देश्य बालक श्रीकृष्ण का वध करना था। वह एक सुंदर महिला का रूप धारण करके गोकुल आई और बाल कृष्ण को विष से भरा स्तनपान कराने का प्रयास किया।

  2. प्रतीकात्मक अर्थ:
    पूतना असत्य, छल, और पाप का प्रतीक है। उसके विषैले स्तन सांसारिक विकारों (जैसे काम, क्रोध, लोभ, मोह, और अहंकार) का प्रतिनिधित्व करते हैं। वह दिखने में सुंदर थी, लेकिन उसकी अंतर्निहित प्रवृत्तियाँ बुरी थीं।


भगवान श्रीकृष्ण का पूतना का उद्धार

  1. भगवान का प्रेम:
    श्रीकृष्ण ने पूतना के वास्तविक उद्देश्य को समझने के बाद भी उसे मृत्यु प्रदान नहीं की, बल्कि उसका उद्धार किया। यह भगवान की अनंत करुणा और प्रेम को दर्शाता है।

  2. पूतना का उद्धार:
    जब पूतना ने श्रीकृष्ण को विष से भरे स्तनपान कराने का प्रयास किया, तो भगवान ने उसकी सारी ऊर्जा को खींच लिया और उसे मोक्ष प्रदान कर दिया।

  3. भगवान की दयालुता:
    पूतना का उद्धार यह दर्शाता है कि भगवान अपनी शरण में आने वाले किसी भी जीव को स्वीकार करते हैं, चाहे वह कितना भी पापी क्यों न हो।


आध्यात्मिक चिंतन

  1. ईश्वर की शरण:
    पूतना उद्धार हमें यह सिखाता है कि ईश्वर की शरण में जाने से हमारे सारे पाप नष्ट हो सकते हैं। भगवान की कृपा से हमारा उद्धार संभव है।

  2. दृश्य और आंतरिक सुंदरता:
    पूतना का बाहरी रूप सुंदर था, लेकिन उसकी आंतरिक प्रवृत्ति बुरी थी। यह हमें सिखाता है कि सच्ची सुंदरता आंतरिक पवित्रता में है। बाहरी आडंबर से अधिक महत्वपूर्ण है हृदय की पवित्रता।

  3. विकारों से मुक्ति:
    पूतना का विषैले स्तन सांसारिक विकारों का प्रतीक है। भगवान श्रीकृष्ण विकारों को समाप्त करके आत्मा को शुद्ध करने वाले हैं। उनकी शरण में आने से हम विकारों से मुक्त हो सकते हैं।

  4. भगवान का अनंत प्रेम:
    श्रीकृष्ण ने पूतना को उसकी कुटिलता के बावजूद मोक्ष प्रदान किया। यह दर्शाता है कि भगवान का प्रेम और दया सीमाओं से परे है।

  5. भक्ति का मार्ग:
    पूतना उद्धार यह दर्शाता है कि सच्चा भक्ति मार्ग आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का माध्यम है। भगवान के प्रति प्रेम और समर्पण ही मोक्ष का मार्ग है।


जीवन पर प्रभाव

  1. क्षमा और दया:
    पूतना उद्धार हमें यह सिखाता है कि हमें भी दूसरों के दोषों को क्षमा करना और प्रेम और दया से व्यवहार करना चाहिए।

  2. संसारिक मोह से मुक्ति:
    पूतना की तरह, यदि हम सांसारिक विकारों और मोह से जुड़े रहते हैं, तो हमारी आत्मा शुद्ध नहीं हो सकती। भगवान की भक्ति और उनके नाम का स्मरण हमें इनसे मुक्त कर सकता है।

  3. सच्चे मार्ग पर चलना:
    यह प्रसंग हमें आडंबर और पाखंड से बचने और सच्चाई के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।


उद्धार का गूढ़ संदेश

  1. भक्ति का फल:
    भले ही पूतना राक्षसी थी, लेकिन उसने भगवान श्रीकृष्ण को अपने स्तन से दूध पिलाया। इस कृत्य को भगवान ने मातृत्व का भाव मानकर उसे मोक्ष प्रदान किया। यह दिखाता है कि भगवान अपने भक्तों के हर छोटे प्रयास को भी स्वीकार करते हैं।

  2. अहंकार का विनाश:
    पूतना का अहंकार और छल उसके विनाश का कारण बना। यह सिखाता है कि जीवन में अहंकार और छल को त्यागना ही सही मार्ग है।

  3. संपूर्ण समर्पण:
    भगवान का मोक्ष उन लोगों को मिलता है, जो पूरी तरह से समर्पित होते हैं। पूतना का उद्धार यह सिखाता है कि ईश्वर के प्रति सच्चा समर्पण सभी पापों को समाप्त कर सकता है।


उपनिषदों और गीता का संबंध

  1. गीता का संदेश:
    भगवद्गीता (9.30-31) में श्रीकृष्ण कहते हैं:
    "अपि चेत् सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक्।
    साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः।।"

    (अगर कोई सबसे बुरा व्यक्ति भी मेरी भक्ति करता है, तो वह साधु के समान है।)

  2. उपनिषदों का दृष्टिकोण:
    "सर्वं खल्विदं ब्रह्म।"
    (सभी जीव ब्रह्म के ही अंश हैं।)
    यह पूतना उद्धार के प्रसंग में लागू होता है, जहाँ भगवान ने पूतना को भी अपने रूप में स्वीकार किया।


निष्कर्ष

पूतना उद्धार केवल एक पौराणिक कथा नहीं है, बल्कि गहन आध्यात्मिक शिक्षा प्रदान करता है। यह हमें सिखाता है कि भगवान के प्रति प्रेम, समर्पण, और निष्ठा हमें संसारिक विकारों और पापों से मुक्त कर सकती है। भगवान की दया और करुणा सीमाओं से परे है, और उनका प्रेम हर जीव के लिए समान है।

पूतना उद्धार यह संदेश देता है कि यदि एक राक्षसी भी भगवान की कृपा से मोक्ष प्राप्त कर सकती है, तो एक साधारण भक्त भी उनके प्रति सच्ची भक्ति से आत्मा को शुद्ध कर सकता है।

"शरण में आने से पापी से भी भगवान भक्त बना देते हैं।"
यह प्रसंग हमें सच्ची भक्ति और ईश्वर की दया पर विश्वास रखने की प्रेरणा देता है।

विशेष

  • जीव और ईश्वर के मिलन के लिए पहले पूतना वासना का नाश होना चाहिए ।
  • अविद्या (पूतना) नष्ट होने से जीवन की गाड़ी राह पर आने लगती है ,और शकटासुर का नाश होता है ।जीवन सही रास्ते पर चलने लगता है ,तब तृणावर्त-,रजोगुण नष्ट होकर सत्त्वगुण बढ़ने लगता है ।
  • रजोगुण मिटने के बाद कन्हैया माखन-मन की चोरी करते हैं और जीवन सात्विक बनता है । जीवन सात्विक होने पर आसक्ति की मटकी फूट जाती है । दही की मटकी - संसारासक्ति की मटकी ।
  • संसारासक्ति नष्ट होने पर प्रभू जीव के पाश में बंधते हैं । यही दामोदर लीला है । प्रभू के बंधने पर दम्भ - बकासुर , और पाप-ताप -अघासुर का बध होता है ।
  • सांसारिक ताप नष्ट होने पर दावाग्नि नष्ट होती है ,शान्त होती है ।अत: इन्द्रियाँ शुद्ध हुई ,अन्त:करण की वासना का क्षय हुआ ।। यही नागदमन , और प्रलम्बासुर बध है ।
  • जीव ईश्वर से मिलने के योग्य होने पर कृष्ण की मधुर मुरली की मधु- रिमा तान सुन पाता है । वेणुगीत अर्थात् नादब्रह्म की उपासना ।
  • गोवर्धन लीला । गो - इन्द्रियों का संवर्धन , इन्द्रियों के पुष्ट होने पर भक्ति रस उत्पन्न होता है । इन्द्रियों की पुष्टि होने पर षडरस का और वरूण देव का पराभव होता है ।
  • चीरहरण लीला - बाह्यावरण , अज्ञान और वासना के नष्ट होने पर रासलीला होती है , जीव और ब्रह्म का मिलन होता है ।।

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