काव्य का स्वरूप और उसके अंग:
"काव्यस्य शब्दार्थौ शरीरम्।"
- काव्यस्य (काव्य का)
- शब्द-अर्थौ (शब्द और अर्थ)
- शरीरम्। (शरीर हैं)।
अनुवाद: काव्य के लिए शब्द और अर्थ उसके शरीर हैं।
"रस आत्मा, गुणाः शौर्यादिवत्।"
- रसः (रस)
- आत्मा (आत्मा है)
- गुणाः (गुण)
- शौर्य-आदिवत्। (शौर्य आदि गुणों के समान)।
अनुवाद: रस काव्य की आत्मा है, और गुण उसके शौर्य आदि विशेषताओं के समान हैं।
"दोषाः काणत्वादिवत्।"
- दोषाः (दोष)
- काणत्व-आदिवत्। (काणापन आदि दोषों के समान)।
अनुवाद: दोष काव्य के लिए वैसे ही हैं जैसे किसी शरीर में काणापन आदि दोष।
"रीतयः अवयवसंस्थानविशेषवत्।"
- रीतयः (रीतियाँ)
- अवयव-संस्थान-विशेषवत्। (अवयवों की रचना के विशेष स्वरूप के समान)।
अनुवाद: रीतियाँ काव्य में अवयवों (शब्द और अर्थ) की रचना के विशेष स्वरूप के समान होती हैं।
"अलंकाराः कटककुण्डलादिवत्।"
- अलंकाराः (अलंकार)
- कटक-कुण्डल-आदि-वत्त्। (कंगन और कुंडल जैसे आभूषणों के समान)।
अनुवाद: अलंकार काव्य के लिए वैसे ही हैं जैसे कंगन और कुंडल शरीर के लिए आभूषण हैं।
दोष, गुण, और अलंकार की भूमिका:
"दोषास्तस्यापकर्षकाः।"
- दोषाः (दोष)
- तस्य (काव्य के)
- अपकर्षकाः। (गुणों को घटाने वाले)।
अनुवाद: दोष काव्य के गुणों को घटाते हैं।
"उत्कर्षहेतवः प्रोक्ता गुणालंकाररीतयः।"
- उत्कर्ष-हेतवः (उन्नति के कारण)
- प्रोक्ता (कहे गए हैं)
- गुण-अलंकार-रीतयः। (गुण, अलंकार, और रीतियाँ)।
अनुवाद: गुण, अलंकार, और रीतियाँ काव्य की उन्नति के कारण हैं।
रीतियों का महत्व:
"रीतिरात्मा काव्यस्य।"
- रीतिः (रीति)
- आत्मा (आत्मा है)
- काव्यस्य। (काव्य की)।
अनुवाद: रीति काव्य की आत्मा है।
व्यंजना और रस का संबंध:
"वाग्वैदग्ध्यप्रधानेऽपि रस एवात्र जीवितम्।"
- वाग्वैदग्ध्य-प्रधानेऽपि (भाषा की चतुराई मुख्य होने पर भी)
- रसः एव (रस ही)
- अत्र (यहाँ)
- जीवितम्। (जीवन है)।
अनुवाद: भले ही भाषा की चतुराई काव्य में मुख्य हो, लेकिन रस ही काव्य का जीवन है।
ध्वनि और रस की परिभाषा:
"काव्यस्य आत्मा ध्वनिः।"
- काव्यस्य (काव्य का)
- आत्मा (आत्मा)
- ध्वनिः। (ध्वनि है)।
अनुवाद: काव्य की आत्मा ध्वनि है।
"रसस्य विना काव्यं निरर्थकम्।"
- रसस्य विना (रस के बिना)
- काव्यं (काव्य)
- निरर्थकम्। (निरर्थक है)।
अनुवाद: रस के बिना काव्य निरर्थक है।
काव्य में रस और व्यंजना का स्थान:
"वाक्यार्थे तात्पर्यं निहितं।"
- वाक्यार्थे (वाक्य के अर्थ में)
- तात्पर्यं (तात्पर्य)
- निहितम्। (अंतर्निहित है)।
अनुवाद: वाक्य के अर्थ में तात्पर्य अंतर्निहित होता है।
निष्कर्ष:
साहित्यदर्पण का यह भाग काव्य के प्रमुख तत्वों—रस, अलंकार, गुण, दोष, रीति, और ध्वनि—का गहन विश्लेषण करता है। इसमें यह स्पष्ट किया गया है कि काव्य का उद्देश्य रस की अभिव्यक्ति है और व्यंजना के माध्यम से काव्य अपने चरम को प्राप्त करता है।
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