नागासाधू

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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A historical and symbolic artistic depiction featuring a Naga Sadhu and Ahmad Shah Abdali in a dramatic setting. The Naga Sadhu is portrayed with trad.
 A historical and symbolic artistic depiction featuring a Naga Sadhu and Ahmad Shah Abdali in
a dramatic setting. The Naga Sadhu is portrayed with trad.


जब अहमद शाह अब्दाली दिल्ली और मथुरा में मार काट करता गोकुल तक आ गया और लोगों को बर्बरतापूर्वक
काटता जा रहा था। महिलाओं के साथ बलात्कार हो रहे थे, तब गोकुल में अहमदशाह अब्दाली का सामना नागा साधुओं से हो गया।  कुछ 5 हजार चिमटाधारी पूज्य नागा साधु तत्काल सेना में तब्दील होकर लाखों की हबसी,जाहिल जेहादी सेना से भिड गए। पहले तो अब्दाली साधुओं को मजाक में ले रहा था किन्तु कुछ देर में ही अपने सैनिकों के चिथड़े उड़ते देख अब्दाली को एहसास हो गया कि ये साधू तो अपनी धरती की अस्मिता के लिए साक्षात महाकाल बन रण में उतर गए।

 तोप तलवारों के सम्मुख चिमटा त्रिशूल लेकर पहाड़ बनकर खड़े 2000 नागा साधू इस भीषण संग्राम में वीरगति को प्राप्त हो गए लेकिन सबसे बड़ी बात ये रही कि दुश्मनों की सेना चार कदम भी आगे नहीं बढ़ा पाई,जो जहाँ था वहीं ढेर
कर दिया गया या फिर पीछे हटकर भाग गया..। इसके बाद से ऐसा आतंक उठा कि अगर किसी जिहादी आक्रांता को यह पता चलता कि युद्ध में नागा साधू भाग ले रहे हैं तो वह आक्रांता लड़ता ही नहीं था। डर कर दुम दबा कर भाग जाता था। हमारा इससे बड़ा दुर्भाग्य कुछ नहीं है कि आज हम औरंगजेब,तैमूर,अकबर जैसे बर्बर लुटेरो को तो याद रखते हैं, पर इन भारतीय वीर योद्धाओं के बारें में कुछ नहीं जानते जिन्होंने पग पग पर देश धर्म के लिए अपने बलिदान दिए हैं....।

गोकुल में नागा साधुओं और अहमद शाह अब्दाली का उल्लेख 1757 के आसपास की घटनाओं से जुड़ा है। यह घटना उस समय की है जब अहमद शाह अब्दाली ने मथुरा, वृंदावन और गोकुल जैसे पवित्र हिंदू तीर्थ स्थलों पर हमला किया था। इस संदर्भ में नागा साधुओं ने अहमद शाह अब्दाली की सेना के खिलाफ प्रतिरोध दिखाया। आइए इसे विस्तार से समझते हैं:


गोकुल पर हमला

  1. अहमद शाह अब्दाली का उद्देश्य:

    • 1757 में अब्दाली ने भारत पर चौथा आक्रमण किया। उसका मुख्य उद्देश्य भारत की धन-संपत्ति को लूटना और मुगल साम्राज्य को मजबूत करना था।
    • उसने मथुरा, वृंदावन और गोकुल जैसे तीर्थ स्थलों पर हमला किया, क्योंकि ये क्षेत्र हिंदू धर्म के लिए विशेष महत्व रखते थे और सांस्कृतिक केंद्र माने जाते थे।
  2. गोकुल का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व:

    • गोकुल भगवान कृष्ण से जुड़ा हुआ है और वैष्णव परंपरा का एक पवित्र स्थल है।
    • यहाँ बड़ी संख्या में साधु-संत और वैष्णव अनुयायी रहते थे।

नागा साधुओं की भूमिका

  1. नागा साधुओं का प्रतिरोध:

    • जब अब्दाली की सेना मथुरा और वृंदावन में लूटपाट और विध्वंस कर रही थी, तो नागा साधुओं ने गोकुल में उनकी सेना का सामना किया।
    • नागा साधु, जो अपने योगिक तप और सैन्य कौशल के लिए जाने जाते थे, युद्ध में शामिल हुए। वे तलवार, भाला और अन्य पारंपरिक हथियारों का उपयोग करते थे।
  2. साधुओं की वीरता:

    • नागा साधु गोकुल की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने के लिए तैयार थे। उन्होंने अब्दाली की सेना को रोकने का प्रयास किया।
    • उनकी संख्या सीमित थी, लेकिन उन्होंने अपने अदम्य साहस और युद्ध कौशल से अफगान सेना को कुछ हद तक रोकने में सफलता पाई।

अब्दाली की क्रूरता

  1. हमले का परिणाम:

    • अब्दाली की सेना ने मथुरा और वृंदावन में बड़े पैमाने पर नरसंहार और मंदिरों का विध्वंस किया। हजारों निर्दोष लोग मारे गए और मंदिरों को लूटा गया।
    • गोकुल में नागा साधुओं के प्रतिरोध के बावजूद, अब्दाली की सेना ने इस क्षेत्र को भी काफी नुकसान पहुंचाया। साधुओं और स्थानीय लोगों ने भारी नुकसान सहा।
  2. धार्मिक स्थलों पर हमला:

    • अब्दाली का यह आक्रमण सांस्कृतिक और धार्मिक रूप से विनाशकारी था। मथुरा और वृंदावन के पवित्र मंदिरों को अपवित्र किया गया।
    • लेकिन नागा साधुओं ने गोकुल और आसपास के क्षेत्रों में यह संदेश दिया कि धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए बलिदान देने का साहस हमेशा रहेगा।

नागा साधुओं का महत्व

  1. सांस्कृतिक योद्धा:

    • नागा साधु न केवल धार्मिक तपस्वी थे, बल्कि धर्म की रक्षा के लिए वे युद्ध भी करते थे। उनके साहस और बलिदान ने भारतीय समाज में उन्हें विशेष स्थान दिलाया।
    • गोकुल में उनका प्रतिरोध यह दर्शाता है कि उन्होंने धर्म और संस्कृति की रक्षा में अपने प्राणों की परवाह नहीं की।
  2. प्रेरणा का स्रोत:

    • गोकुल में नागा साधुओं की वीरता आज भी भारतीय इतिहास और समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनकी बलिदानी भावना ने यह दिखाया कि जब भी धर्म संकट में होता है, कोई न कोई उसकी रक्षा के लिए खड़ा होता है।

निष्कर्ष

1757 में गोकुल में अहमद शाह अब्दाली की सेना के हमले के दौरान नागा साधुओं ने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए वीरता का परिचय दिया। यद्यपि अब्दाली की सेना बड़ी और अधिक संगठित थी, नागा साधुओं ने अपने साहस, त्याग और बलिदान से यह सिद्ध किया कि धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं। यह घटना भारतीय इतिहास में नागा साधुओं की वीरता और धर्मनिष्ठा को उजागर करती है।


नागा साधू और अहमद शाह अब्दाली के विषय को विस्तार से समझने के लिए, हमें उनके ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक संदर्भों को गहराई से देखना होगा। आइए इसे क्रमबद्ध तरीके से समझते हैं:


नागा साधु: इतिहास और भूमिका

1. नागा साधुओं का उद्भव:

  • नागा साधु वैदिक और पौराणिक परंपराओं से जुड़े हैं। ये हिंदू धर्म में तपस्वी और योद्धा संन्यासियों के रूप में उभरे। उनकी परंपरा आदिगुरु शंकराचार्य के समय से चली आ रही है।
  • शंकराचार्य ने इन साधुओं को धर्म की रक्षा के लिए संगठित किया। उन्होंने इन्हें अखाड़ों में विभाजित किया, जो हिंदू मठों और सेनाओं के रूप में काम करते थे।

2. विशेषताएं:

  • नागा साधु नग्न (नग्न रहने का अर्थ है भौतिक मोह से स्वतंत्रता) रहते हैं और योग, ध्यान, और आत्मसंयम का पालन करते हैं।
  • ये तपस्वी होने के साथ-साथ योद्धा भी होते हैं। उनके पास तलवार, भाला और अन्य हथियार चलाने का प्रशिक्षण होता है।
  • ये शैव परंपरा (शिव के भक्त) या वैष्णव परंपरा (विष्णु के भक्त) से संबंध रखते हैं।

3. धर्म और योद्धा भूमिका:

  • नागा साधुओं का मुख्य उद्देश्य धर्म और समाज की रक्षा करना था। जब विदेशी आक्रमणकारी भारत आए और धर्म, संस्कृति और सामाजिक ढांचे को खतरा हुआ, तो नागा साधुओं ने हथियार उठाए।
  • उन्होंने मुगलों और अन्य आक्रमणकारियों के खिलाफ लड़ाइयों में भाग लिया।

अहमद शाह अब्दाली: इतिहास और आक्रमण

1. अब्दाली का परिचय:

  • अहमद शाह अब्दाली (1722-1772), जिसे अहमद शाह दुर्रानी भी कहा जाता है, अफगानिस्तान का संस्थापक और दुर्रानी साम्राज्य का पहला शासक था।
  • उसने भारत पर 9 बार आक्रमण किए। इन आक्रमणों का उद्देश्य लूटपाट करना और अपनी शक्ति का विस्तार करना था।

2. पानीपत की तीसरी लड़ाई (1761):

  • यह लड़ाई अहमद शाह अब्दाली और मराठा साम्राज्य के बीच लड़ी गई। यह भारतीय इतिहास की सबसे विनाशकारी लड़ाइयों में से एक थी।
  • मराठा सेना ने दिल्ली और उत्तर भारत में मुगल साम्राज्य के क्षीण हो जाने के बाद शक्ति हासिल की थी। अब्दाली ने मराठों को हराकर दिल्ली पर नियंत्रण पाया।

नागा साधु और अहमद शाह अब्दाली: संघर्ष और योगदान

1. 1761 के पहले का संदर्भ:

  • अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण से पहले नागा साधु कई बार मुगलों और अन्य मुस्लिम आक्रमणकारियों के खिलाफ हिंदू समाज की रक्षा के लिए खड़े हुए थे।
  • जब अब्दाली ने भारत पर आक्रमण किया, तो नागा साधुओं का ध्यान इस बात पर था कि वे अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा करें।

2. पानीपत की तीसरी लड़ाई में नागा साधु:

  • यह माना जाता है कि नागा साधु, जो एक सैन्य साधु वर्ग थे, ने मराठा सेना के लिए रणनीतिक रूप से कुछ क्षेत्रों की रक्षा की।
  • नागा साधुओं की संख्या बड़ी नहीं थी, लेकिन उनके उत्साह और बलिदान ने भारतीय योद्धाओं को प्रेरणा दी।
  • कई नागा साधुओं ने इस लड़ाई में अपनी जान गंवाई।

नागा साधुओं का धार्मिक और सामाजिक प्रभाव

  • नागा साधुओं की भूमिका केवल सैन्य संघर्ष तक सीमित नहीं थी। वे हिंदू धर्म और संस्कृति के प्रचार-प्रसार में भी लगे रहे।
  • कुम्भ मेले में इनका विशेष महत्व है, जहां वे अपनी धार्मिक एकता और शक्ति का प्रदर्शन करते हैं।

अब्दाली का प्रभाव और नागा साधुओं का प्रतिरोध

  • अब्दाली की सेना विशाल और शक्तिशाली थी। उसके पास घुड़सवार सेना और तोपखाने का मजबूत नेटवर्क था, जो मराठा और नागा साधुओं के लिए एक बड़ी चुनौती था।
  • नागा साधुओं का प्रतिरोध प्रतीकात्मक था। हालांकि उन्होंने अपने सीमित साधनों के साथ लड़ाई लड़ी, लेकिन अब्दाली की विजय को रोकना संभव नहीं था।

निष्कर्ष:

  • नागा साधु भारतीय संस्कृति और धर्म की रक्षा के प्रतीक थे। उन्होंने विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ धार्मिक और सैन्य योगदान दिया।
  • अहमद शाह अब्दाली एक शक्तिशाली आक्रमणकारी था, जिसने भारत पर भारी तबाही मचाई, लेकिन नागा साधुओं जैसे योद्धाओं की वीरता और बलिदान ने उन्हें भारत में स्थायी शासन स्थापित करने से रोका।

यह संघर्ष हमें यह सिखाता है कि कठिन परिस्थितियों में भी धर्म, संस्कृति और आत्मसम्मान की रक्षा के लिए कैसे खड़ा होना चाहिए।

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