तात्पर्य और अभिधा का विस्तार:

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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यह चित्र "साहित्यदर्पण" से प्रेरित है, जिसमें एक पारंपरिक भारतीय विद्वान को प्राचीन कक्ष में ताड़पत्र पांडुलिपियों और स्याही पात्रों के साथ अध्ययन और लेखन में लीन दर्शाया गया है। पृष्ठभूमि में भारतीय स्थापत्य कला और एक सुंदर उद्यान का दृश्य दिखाई देता है, जो संस्कृति और ज्ञान की गहराई को व्यक्त करता है।

यह चित्र "साहित्यदर्पण" से प्रेरित है, जिसमें एक पारंपरिक भारतीय विद्वान को प्राचीन कक्ष में ताड़पत्र पांडुलिपियों और स्याही पात्रों के साथ अध्ययन और लेखन में लीन दर्शाया गया है। पृष्ठभूमि में भारतीय स्थापत्य कला और एक सुंदर उद्यान का दृश्य दिखाई देता है, जो संस्कृति और ज्ञान की गहराई को व्यक्त करता है।




तात्पर्य और अभिधा का विस्तार:

"तात्पर्याख्यां वृत्तिमाहुः पदार्थान्वयबोधने।
तात्पर्यार्थं तदर्थं च वाक्यं तद्वोधकं परे।।"

  • तात्पर्याख्यां (तात्पर्य नामक)
  • वृत्तिम् (क्रिया या प्रवृत्ति को)
  • आहुः (कहते हैं)
  • पदार्थ-अन्वय-बोधने (पदार्थों के परस्पर संबंध का बोध कराने में)
  • तात्पर्यार्थम् (तात्पर्य का अर्थ)
  • तदर्थम् (उसका अर्थ)
  • (भी)
  • वाक्यं (वाक्य)
  • तद्वोधकं (उसका बोध कराने वाला)
  • परे (दूसरों ने)।

अनुवाद: तात्पर्य नामक वृत्ति वह है जो पदार्थों के परस्पर संबंध का बोध कराती है। तात्पर्य का अर्थ और वाक्य, दोनों ही इस बोध को संभव बनाते हैं।


व्यंजना का गूढ़ अर्थ:

"अभिधालक्षणामूला शब्दस्य व्यञ्जना द्विधा।
अनेकार्थस्य शब्दस्य संयोगाद्यैर्नियन्त्रिते।
एकत्रार्थेऽन्यधीहेतुर्व्यञ्जना साभिधाश्रया।"

  • अभिधा-लक्षणा-मूला (अभिधा और लक्षणा पर आधारित)
  • शब्दस्य व्यञ्जना (शब्द की व्यंजना)
  • द्विधा (दो प्रकार की है)।
  • अनेक-अर्थस्य (अनेक अर्थ वाले)
  • शब्दस्य (शब्द का)
  • संयोग-आदिः (संयोग और अन्य कारकों से)
  • नियन्त्रिते (नियंत्रित)
  • एकत्र-अर्थे (एक अर्थ में)
  • अन्य-अधी-हेतु: (दूसरे अर्थ को समझाने वाली)
  • व्यञ्जना साभिधा-आश्रया। (व्यंजना अभिधा पर आधारित)।

अनुवाद: व्यंजना दो प्रकार की होती है - अभिधा पर आधारित और लक्षणा पर आधारित। जब किसी बहुआर्थक शब्द का एक अर्थ संयोग आदि से निश्चित हो और उससे दूसरा अर्थ अप्रत्यक्ष रूप से प्रकट हो, तो यह अभिधा पर आधारित व्यंजना कहलाती है।


लक्षणामूल व्यंजना:

"लक्षणोपास्यते यस्य कृते तत्तु प्रयोजनम्।
यया प्रत्याय्यते सा स्याद्व्यञ्जना लक्षणाश्रया।"

  • लक्षणा-उपास्यते (लक्षणा का उपयोग किया जाता है)
  • यस्य कृते (जिसके लिए)
  • तत् प्रयोजनम् (वह प्रयोजन)
  • यया प्रत्याय्यते (जिससे बोध कराया जाता है)
  • सा स्यात् (वह होती है)
  • व्यञ्जना लक्षणा-आश्रया। (लक्षणा पर आधारित व्यंजना)।

अनुवाद: जब किसी प्रयोजन के लिए लक्षणा का उपयोग किया जाता है और उससे गूढ़ अर्थ का बोध कराया जाता है, तो वह लक्षणा पर आधारित व्यंजना कहलाती है।


गूढ़ अर्थ का उदाहरण:

"कालो मधुः कुपित एष च पुष्पधन्वा।
धीरा वहन्ति रतिखेदहराः समीराः।।"

  • कालः (वसंत ऋतु)
  • मधुः (मधुर)
  • कुपितः (क्रोधित)
  • एषः (यह)
  • पुष्पधन्वा (कामदेव)
  • धीरा (शांत)
  • वहन्ति (चलती हैं)
  • रतिखेद-हराः (प्रेम की थकान हरने वाली)
  • समीराः (हवाएँ)।

अनुवाद: "वसंत मधुर है, कामदेव क्रोधित हैं, और प्रेम की थकान हरने वाली हवाएँ धीरे-धीरे चल रही हैं।" यह व्यंजना का उपयोग है, जिसमें गूढ़ भाव प्रकट होता है।


लक्षणा और व्यंजना का अंतर:

"अभिधादित्रयोपाधिवैशिष्ट्यात्त्रिविधो मतः।
शब्दोऽपि वाचकस्तद्वल्लक्षको व्यञ्जकस्तथा।।"

  • अभिधा-आदि-त्रय-उपाधि-वैशिष्ट्यात् (अभिधा, लक्षणा और व्यंजना की विशिष्टताओं के आधार पर)
  • त्रिविधः मतः (तीन प्रकार का माना गया है)
  • शब्दः अपि (शब्द भी)
  • वाचकः (अभिधा के माध्यम से अर्थ व्यक्त करने वाला)
  • तद्वत् (उसी प्रकार)
  • लक्षकः (लक्षणा के माध्यम से अर्थ व्यक्त करने वाला)
  • व्यञ्जकः तथा। (और व्यंजना के माध्यम से अर्थ व्यक्त करने वाला)।

अनुवाद: शब्द को तीन प्रकार का माना गया है - वाचक (अभिधा द्वारा अर्थ व्यक्त करने वाला), लक्षक (लक्षणा द्वारा अर्थ व्यक्त करने वाला), और व्यंजक (व्यंजना द्वारा अर्थ व्यक्त करने वाला)।


निष्कर्ष:

साहित्यदर्पण के इस भाग में वाक्य, पद, अभिधा, लक्षणा, और व्यंजना का गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। हर शक्ति का अपना उद्देश्य, स्वरूप और उपयोग है। इनसे भाषा की सूक्ष्मता और काव्य की समृद्धि का बोध होता है।

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