राजा प्रियव्रत की कथा भागवत पुराण के पंचम स्कंध में विस्तार से वर्णित है। प्रियव्रत स्वायंभुव मनु के ज्येष्ठ पुत्र और सृष्टि के प्रमुख प्रजापालक थे।
राजा प्रियव्रत की कथा भागवत पुराण के पंचम स्कंध में विस्तार से वर्णित है। प्रियव्रत स्वायंभुव मनु के ज्येष्ठ पुत्र और सृष्टि के प्रमुख प्रजापालक थे। उनकी कथा में भक्ति, वैराग्य और धर्मपालन का संदेश निहित है।
प्रियव्रत का परिचय
- प्रियव्रत स्वायंभुव मनु और शतरूपा के पुत्र थे। वे भगवान नारायण के परम भक्त थे और जीवन में वैराग्य अपनाकर तपस्या करना चाहते थे।
- जब उनके पिता ने उन्हें सृष्टि की व्यवस्था और लोकपालन का कार्य सौंपना चाहा, तो उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया, क्योंकि वे संसार के मोह से दूर होकर तपस्या में लीन रहना चाहते थे।
ब्रह्माजी का उपदेश
- प्रियव्रत के वैराग्य को देखकर स्वयं ब्रह्माजी ने उन्हें समझाया कि संसार में जन्म लेने के बाद हर व्यक्ति का धर्म है कि वह अपने कर्तव्यों का पालन करे।
श्लोक:
तं तु प्रतिनिवर्त्याथ ब्रह्मा लोकपितामहः।
उपदेशैर्महाभागं व्यजहार शुभां गतिम्।।
(भागवत पुराण 5.1.4)
भावार्थ:
- ब्रह्माजी ने प्रियव्रत को लोककल्याण के लिए राजधर्म स्वीकारने का आदेश दिया और यह भी कहा कि अपने कर्तव्य का पालन करते हुए भी वे ईश्वर भक्ति कर सकते हैं।
- प्रियव्रत ने ब्रह्माजी के उपदेश को स्वीकार किया और संसार के पालन के लिए राजा बन गए।
प्रियव्रत का राज्यकाल
- राजा प्रियव्रत ने बड़ी निष्ठा और धर्म के साथ अपने राज्य का पालन किया। उनकी शासन व्यवस्था अत्यंत सुचारु और न्यायपूर्ण थी। उनके राज्य में प्रजा सुखी और समृद्ध थी।
- प्रियव्रत के राज्यकाल की एक अद्भुत घटना यह है कि उन्होंने सूर्य के प्रकाश की कमी को दूर करने के लिए सात बार पृथ्वी की परिक्रमा की। इससे सात अलग-अलग महासागर और सात द्वीप बने।
श्लोक:
सप्तद्वीपवतां पृथ्वीं सप्तवारं महाप्रभुः।
प्राचरत्क्रमशो रथ्या रथेन दिवसं विभुः।।
(भागवत पुराण 5.1.16)
भावार्थ:
- प्रियव्रत ने अपने दिव्य रथ से पृथ्वी की सात बार परिक्रमा की, जिससे सात द्वीप (सप्तद्वीप) और सात महासागर बने।
प्रियव्रत का परिवार और वंश
- राजा प्रियव्रत ने विवाह किया और उनके दस पुत्र और एक पुत्री उत्पन्न हुए।
- उनके दस पुत्रों के नाम थे: आग्नीध्र, इध्मजिह्व, यज्ञबाहु, महावीर, हिरण्यरेता, घृतप्रस्था, सवन, मेदातिथि, वीतराग, और नभि।
- उनकी एक पुत्री उरजा थी।
- उनके पुत्रों में तीन ने वैराग्य धारण कर तपस्या का मार्ग अपनाया, जबकि सात पुत्रों ने उनके राज्य को संभाला।
श्लोक:
दश पुत्रा महाभागा प्रियव्रतसुताः स्मृताः।
तेषां त्रयस्तपःशीला सप्त भुवं व्यशोभयन्।।
(भागवत पुराण 5.1.29)
भावार्थ:
- प्रियव्रत के दस पुत्रों में तीन ने तपस्या का मार्ग अपनाया और सात ने राज्य का विभाजन कर उसे संभाला।
प्रियव्रत का वैराग्य और मोक्ष
- अपने कर्तव्यों को पूर्ण करने के बाद प्रियव्रत ने राजपाट अपने पुत्रों को सौंप दिया और तपस्या करने चले गए। उन्होंने अपना शेष जीवन भगवान विष्णु की भक्ति और आत्मसाक्षात्कार में बिताया।
श्लोक:
स वै सर्वमिदं साक्षाद् भगवान् विश्वरूपधृक्।
महाह्नाय प्रणमति यस्तस्मै भूरिदक्षिणम्।।
(भागवत पुराण 5.1.36)
भावार्थ:
- प्रियव्रत ने भगवान विष्णु को समर्पित होकर अपना जीवन व्यतीत किया और अंत में मोक्ष प्राप्त किया।
प्रियव्रत की कथा का संदेश
1. कर्तव्य पालन का महत्व: जीवन में अपने कर्तव्यों का पालन करना सबसे बड़ा धर्म है।
2. ईश्वर भक्ति का मार्ग: संसार के कार्य करते हुए भी भक्ति और वैराग्य संभव है।
3. संसार और आध्यात्म का संतुलन: प्रियव्रत की कथा यह सिखाती है कि संसार में रहकर भी ईश्वर की शरण में जाकर मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।
राजा प्रियव्रत की कथा से यह स्पष्ट होता है कि अपने कर्तव्य को निभाते हुए भी आध्यात्मिकता को प्राप्त करना संभव है।
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