आशीर्लिङ् लकार (आशीर्वचन/आशीर्वाद और श्राप)

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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आशीर्लिङ् लकार (आशीर्वचन/आशीर्वाद और श्राप)
आशीर्लिङ् लकार (आशीर्वचन/आशीर्वाद और श्राप)

आशीर्लिङ् लकार का विस्तृत परिचय

आशीर्लिङ् लकार संस्कृत व्याकरण में आशीर्वचन (आशीर्वाद) और श्राप जैसे भावों को व्यक्त करने के लिए प्रयुक्त होता है। इसका उपयोग मुख्यतः धार्मिक और वैदिक साहित्य में किया जाता है। इसे आशीर्वचनात्मक लकार भी कहते हैं।


लक्षण और उपयोग

  1. आशीर्वचन:

    • किसी के प्रति शुभकामनाएँ या आशीर्वाद व्यक्त करना।
    • उदाहरण: अयम् बालः दीर्घायुर्भवेत्। (यह बालक दीर्घायु हो।)
  2. श्राप:

    • किसी के प्रति श्राप या अनुचित फल की अभिव्यक्ति।
    • उदाहरण: सः वनं न प्राप्नुयात्। (वह वन में न पहुँचे।)
  3. भावना और अपेक्षा:

    • यह कर्ता की इच्छा या भावना को भी व्यक्त कर सकता है।
  4. विनम्र आदेश:

    • यह विनम्र आदेश के लिए भी प्रयुक्त हो सकता है।

आशीर्लिङ् लकार के प्रत्यय

परस्मैपद:

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष -यात् -याताम् -युः
मध्यम पुरुष -याः -यातम् -यात
उत्तम पुरुष -याम् -याव -याम

आत्मनेपद:

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष -यात -याताम् -यन्त
मध्यम पुरुष -याः -याथाम् -यध्वम्
उत्तम पुरुष -यै -यावहि -यामहि

पठ् धातु के रूप: आशीर्लिङ् लकार

1. पठ् धातु (पढ़ना)

परस्मैपद:
पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष पठ्यात् पठ्याताम् पठ्युः
मध्यम पुरुष पठ्याः पठ्यातम् पठ्यात
उत्तम पुरुष पठ्याम् पठ्याव पठ्याम्
आत्मनेपद:
पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष पठ्यात पठ्याताम् पठ्यन्त
मध्यम पुरुष पठ्याः पठ्याथाम् पठ्यध्वम्
उत्तम पुरुष पठ्यै पठ्यावहि पठ्यामहि



लक्षण और उपयोग

  1. आशीर्वचन और शुभकामना:

    • किसी को शुभकामना देते समय।
    • उदाहरण: रामः वनं गम्यात्। (राम वन जाए।)
  2. श्राप:

    • किसी को दंड या नकारात्मक फल व्यक्त करते समय।
    • उदाहरण: सः ग्रामं न गम्यात्। (वह गाँव न जाए।)
  3. भाव और प्रार्थना:

    • किसी के प्रति भावना या प्रार्थना व्यक्त करने के लिए।
    • उदाहरण: जनाः सफलाः गम्यासुः। (लोग सफल हों।)

आशीर्लिङ् लकार (परस्मैपद) के प्रत्यय

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष -यात् -यास्ताम् -यासुः
मध्यम पुरुष -याः -यास्तम् -यास्त
उत्तम पुरुष -यासम् -यास्व -यास्म

गम् धातु (जाना) के परस्मैपद रूप: आशीर्लिङ् लकार

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष गम्यात् / गम्याद् गम्यास्ताम् गम्यासुः
मध्यम पुरुष गम्याः गम्यास्तम् गम्यास्त
उत्तम पुरुष गम्यासम् गम्यास्व गम्यास्म

रूपों का विश्लेषण

1. प्रथम पुरुष (Third Person):

  1. एकवचन: गम्यात् / गम्याद्

    • अर्थ: वह जाए।
    • उदाहरण: रामः वनं गम्यात्। (राम वन जाए।)
  2. द्विवचन: गम्यास्ताम्

    • अर्थ: वे दोनों जाएँ।
    • उदाहरण: रामः लक्ष्मणः च वनं गम्यास्ताम्। (राम और लक्ष्मण वन जाएँ।)
  3. बहुवचन: गम्यासुः

    • अर्थ: वे जाएँ।
    • उदाहरण: जनाः ग्रामं गम्यासुः। (लोग गाँव जाएँ।)

2. मध्यम पुरुष (Second Person):

  1. एकवचन: गम्याः

    • अर्थ: तुम जाओ।
    • उदाहरण: त्वं वनं गम्याः। (तुम वन जाओ।)
  2. द्विवचन: गम्यास्तम्

    • अर्थ: तुम दोनों जाओ।
    • उदाहरण: युवाम् वनं गम्यास्तम्। (तुम दोनों वन जाओ।)
  3. बहुवचन: गम्यास्त

    • अर्थ: तुम सब जाओ।
    • उदाहरण: यूयं ग्रामं गम्यास्त। (तुम सब गाँव जाओ।)

3. उत्तम पुरुष (First Person):

  1. एकवचन: गम्यासम्

    • अर्थ: मैं जाऊँ।
    • उदाहरण: अहम् वनं गम्यासम्। (मैं वन जाऊँ।)
  2. द्विवचन: गम्यास्व

    • अर्थ: हम दोनों जाएँ।
    • उदाहरण: आवाम् ग्रामं गम्यास्व। (हम दोनों गाँव जाएँ।)
  3. बहुवचन: गम्यास्म

    • अर्थ: हम सब जाएँ।
    • उदाहरण: वयम् वनं गम्यास्म। (हम सब वन जाएँ।)

अन्य उदाहरण:

  1. पठ् धातु (पढ़ना):

    • प्रथम पुरुष (एकवचन):
      • रामः पाठं पठ्यात्।
        (राम पाठ पढ़े।)
    • मध्यम पुरुष (बहुवचन):
      • यूयं पाठं पठ्यास्त।
        (तुम सब पाठ पढ़ो।)
    • उत्तम पुरुष (द्विवचन):
      • आवाम् पाठं पठ्यास्व।
        (हम दोनों पाठ पढ़ें।)
  2. भव् धातु (होना):

    • प्रथम पुरुष (बहुवचन):
      • जनाः सुखिनः भवन्यासुः।
        (लोग सुखी हों।)
    • मध्यम पुरुष (एकवचन):
      • त्वं सफलः भवन्याः।
        (तुम सफल हो।)

विशेषताएँ

  1. शुभकामना और श्राप:

    • आशीर्लिङ् लकार का मुख्य उपयोग शुभकामना और श्राप व्यक्त करने के लिए होता है।
  2. धार्मिक और साहित्यिक उपयोग:

    • इसका उपयोग वैदिक मंत्रों, अनुष्ठानों, और संस्कृत साहित्य में होता है।
  3. भावनात्मक अभिव्यक्ति:

    • यह लकार गहराई और भावना को व्यक्त करता है।

सारांश

गम् धातु (परस्मैपद):

  • प्रथम पुरुष: गम्यात् / गम्याद्, गम्यास्ताम्, गम्यासुः।
  • मध्यम पुरुष: गम्याः, गम्यास्तम्, गम्यास्त।
  • उत्तम पुरुष: गम्यासम्, गम्यास्व, गम्यास्म।

पठ् धातु (परस्मैपद):

  • प्रथम पुरुष: पठ्यात्, पठ्याताम्, पठ्युः।
  • मध्यम पुरुष: पठ्याः, पठ्यातम्, पठ्यात।
  • उत्तम पुरुष: पठ्यासम्, पठ्यास्व, पठ्यास्म।

आशीर्लिङ् लकार संस्कृत में शुभकामना, श्राप, और विनम्र प्रार्थना के लिए अत्यंत उपयोगी है।

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