विधिलिङ् लकार(संभावना, विनम्र आज्ञा, इच्छा, प्रार्थना, या अनुमति)

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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विधिलिङ् लकार(संभावना, विनम्र आज्ञा, इच्छा, प्रार्थना, या अनुमति)
विधिलिङ् लकार(संभावना, विनम्र आज्ञा, इच्छा, प्रार्थना, या अनुमति)

विधिलिङ् लकार का विस्तृत परिचय

विधिलिङ् लकार संस्कृत व्याकरण में संभावना, विनम्र आज्ञा, इच्छा, प्रार्थना, या अनुमति जैसे भावों को व्यक्त करने के लिए प्रयुक्त होता है। इसे संस्कृत में आशिषर्थक लकार भी कहा जाता है। इसका प्रयोग तब होता है, जब कार्य को करने की संभावना हो, या जब किसी को आदेश, विनती, या सुझाव दिया जाए।


लक्षण और उपयोग

  1. संभावना और अपेक्षा:

    • किसी कार्य के होने की संभावना।
    • उदाहरण: सः पाठं पठेत्। (वह पाठ पढ़ेगा/पढ़ सकता है।)
  2. विनम्र आज्ञा:

    • क्रिया करने की विनम्र आज्ञा।
    • उदाहरण: भवान् जलं पिबेत्। (आप जल पिएँ।)
  3. इच्छा और प्रार्थना:

    • किसी कार्य की प्रार्थना या इच्छा।
    • उदाहरण: अहम् विद्यालयं गच्छेयम्। (मैं विद्यालय जाना चाहूँ।)
  4. अनुमति:

    • क्रिया के लिए अनुमति देना।
    • उदाहरण: त्वं वनं गच्छेत्। (तुम वन जा सकते हो।)

विधिलिङ् लकार के प्रत्यय

परस्मैपद:

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष -ेत् -एताम् -एयुः
मध्यम पुरुष -एः -एतम् -एत
उत्तम पुरुष -एयम् -एव -एम

आत्मनेपद:

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष -एत -एताम् -एरण्
मध्यम पुरुष -एथाः -एथाम् -एध्वम्
उत्तम पुरुष -एय -एवहि -एमहि

गम् और पठ् धातु के रूप: विधिलिङ् लकार

1. गम् धातु (जाना)

परस्मैपद:
पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष गच्छेत् गच्छेताम् गच्छेयुः
मध्यम पुरुष गच्छेः गच्छेतम् गच्छेत
उत्तम पुरुष गच्छेयम् गच्छेव गच्छेम
आत्मनेपद:
पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष गच्छेत गच्छेताम् गच्छेरन्
मध्यम पुरुष गच्छेथाः गच्छेथाम् गच्छेध्वम्
उत्तम पुरुष गच्छेय गच्छेवहि गच्छेमहि

2. पठ् धातु (पढ़ना)

परस्मैपद:
पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष पठेत् पठेताम् पठेयुः
मध्यम पुरुष पठेः पठेतम् पठेत
उत्तम पुरुष पठेयम् पठेव पठेम्
आत्मनेपद:
पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष पठेत पठेताम् पठेरन्
मध्यम पुरुष पठेथाः पठेथाम् पठेध्वम्
उत्तम पुरुष पठेय पठेवहि पठेमहि

वाक्य प्रयोग

  1. गम् धातु:

    • प्रथम पुरुष:
      • रामः ग्रामं गच्छेत्।
        (राम गाँव जा सकता है।)
    • मध्यम पुरुष:
      • त्वं ग्रामं गच्छेः।
        (तुम गाँव जा सकते हो।)
    • उत्तम पुरुष:
      • अहम् ग्रामं गच्छेयम्।
        (मैं गाँव जाना चाहूँ।)
  2. पठ् धातु:

    • प्रथम पुरुष:
      • रामः पाठं पठेत्।
        (राम पाठ पढ़े।)
    • मध्यम पुरुष:
      • त्वं पाठं पठेः।
        (तुम पाठ पढ़ सकते हो।)
    • उत्तम पुरुष:
      • वयं पाठं पठेम।
        (हम पाठ पढ़ें।)

विशेषताएँ

  1. संकोच और विनम्रता:
    विधिलिङ् लकार विनम्र आज्ञा या आदेश को व्यक्त करता है।

    • उदाहरण: भवान् जलं पिबेत्। (आप जल पिएँ।)
  2. भाव और प्रार्थना:
    यह प्रार्थना और भावना को व्यक्त करने का एक प्रमुख माध्यम है।

    • उदाहरण: मम पुत्रः सफलः भवेत्। (मेरा पुत्र सफल हो।)
  3. साहित्यिक उपयोग:
    महाकाव्य, कथा साहित्य, और धार्मिक ग्रंथों में विधिलिङ् लकार का व्यापक उपयोग होता है।


सारांश

विधिलिङ् लकार संस्कृत व्याकरण में संभावना, विनम्र आज्ञा, प्रार्थना, और इच्छा को व्यक्त करने के लिए प्रयोग होता है।

गम् धातु (जाना):

  • परस्मैपद: गच्छेत्, गच्छेताम्, गच्छेयुः।
  • आत्मनेपद: गच्छेत, गच्छेताम्, गच्छेरन्।

पठ् धातु (पढ़ना):

  • परस्मैपद: पठेत्, पठेताम्, पठेयुः।
  • आत्मनेपद: पठेत, पठेताम्, पठेरन्।

यह लकार संस्कृत के साहित्य और धार्मिक अनुष्ठानों में भावपूर्ण और विनम्र अभिव्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण है।

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