**तमसा और मुरला** दोनों **उत्तररामचरितम्** के तृतीय अंक के पात्र हैं और इनका विशेष महत्व कथा में सांकेतिक रूप से है। ये पात्र राम और सीता के वियोग के
तमसा और मुरला |
तमसा और मुरला दोनों उत्तररामचरितम् के तृतीय अंक के पात्र हैं और इनका विशेष महत्व कथा में सांकेतिक रूप से है। ये पात्र राम और सीता के वियोग के करुण प्रसंग में गहराई जोड़ते हैं।
तमसा कौन हैं?
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परिचय:
- तमसा एक नदी देवी हैं। उनका व्यक्तित्व करुणा, संवेदना और स्नेह से परिपूर्ण है।
- वे सीता की सांत्वना देने और उनके दुःख को कम करने में सहायक भूमिका निभाती हैं।
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महत्त्व:
- तमसा, महर्षि अगस्त्य की पत्नी लोपामुद्रा के निर्देश पर सीता की सहायता करती हैं।
- वे सीता के वियोग और राम के शोक से उत्पन्न परिस्थितियों को समझती हैं और उन्हें सांत्वना देती हैं।
- तमसा को सीता के प्रति गहरी करुणा है और वे उनकी कठिनाइयों को साझा करती हैं।
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भूमिका:
- तमसा का मुख्य कार्य सीता को सहारा देना और उनके वियोग के समय मानसिक बल प्रदान करना है।
- उनका नाम तमसा नदी से प्रेरित है, जो सांकेतिक रूप से शीतलता और शांत रस का प्रतीक है।
मुरला कौन हैं?
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परिचय:
- मुरला भी एक नदी देवी हैं।
- वे तमसा की सखी हैं और घटनाओं के बीच संवाद और संदर्भ जोड़ने में भूमिका निभाती हैं।
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महत्त्व:
- मुरला तमसा की सहायता करती हैं और संवादों के माध्यम से राम और सीता की स्थिति पर प्रकाश डालती हैं।
- मुरला का संवाद कथा को आगे बढ़ाने में मदद करता है, विशेष रूप से सीता और राम के बीच के भावनात्मक संघर्ष को व्यक्त करने में।
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भूमिका:
- मुरला गोदावरी नदी का प्रतीक हैं, जो राम और सीता के वनवास का साक्षी रही है।
- वे गोदावरी की स्थिति का वर्णन करती हैं और राम के शोक को समझने का प्रयास करती हैं।
संकेतात्मक भूमिका:
- तमसा और मुरला दोनों प्राकृतिक शक्तियों के मानवीकरण हैं।
- ये पात्र कथा में न केवल सजीवता और गहराई लाते हैं, बल्कि प्रेम, वियोग, करुणा, और सांत्वना जैसे भावों को भी प्रकट करते हैं।
- तमसा का स्वभाव शांत और स्नेहमय है, जबकि मुरला संवादों में अधिक स्पष्टता और व्याख्या करती हैं।
सार:
तमसा और मुरला क्रमशः तमसा नदी और गोदावरी नदी की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति हैं। वे न केवल सीता के वियोग और राम के शोक को समझती हैं, बल्कि सांत्वना, सहयोग, और करुणा का माध्यम बनती हैं।
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