सर्वप्रथम भौतिक लाभ के लिए भगवान से माँगना ही नहीं चाहिए और यदि माँगना ही है तो हमें ये मालूम होना चाहिए कि उनसे क्या माँगना है। प्रहलाद महाराज ने भगवान से क्या माँगा:- हे प्रभु! मैं यह माँगता हूँ कि मेरी माँगने की इच्छा ही समाप्त हो जाये। महारानी कुंती ने भगवान से क्या माँगा:- हे प्रभु मुझे बार बार विपत्ति दो ताकि आपका स्मरण होता रहे। महाराज पृथु ने भगवान से क्या माँगा :- हे प्रभु! मुझे दस हज़ार कान दीजिये ताकि मैं आपकी पावन लीला की महिमा का अधिक से अधिक रसास्वादन कर सकूँ। और सुग्रीवजी तो सुंदर ढंग से कहते है:- भगवान दुख दिजिए पर सहने की शक्ति भी दिजिये भगवान का नाम जपते जपते दुख की घड़ी कट जाये।
नोट-
- प्रह्लाद महाराज ने भगवान के बार बार आग्रह करने पर एक ही वस्तु माँगी थी और वो भी क्या “भगवदभक्ति का प्रचार” था। उन्होंने प्रार्थना किया था कि प्रभु मुझे कुछ नहीं चाहिए मैं तो अंधकूप में पड़ा हुआ था किंतु मेरे गुरु, नारद मुनि की अहैतुकी कृपा से मैं भौतिकता से मुक्त हो गया हूँ। किंतु हे भगवान आपके आग्रह करने से एक ही माँग कर रहा हूँ। उन्होंने भगवान नरसिंहदेव से प्रार्थना किया कि अभी तक जितने भी लोग आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त हुए वे सभी अपने तक ही सीमित रखे थे और जंगल में चले गए किसी को कुछ नहीं दिया। लेकिन प्रभु मैं इसी गृहस्थ आश्रम में रहते हुए आप की भक्ति का लाभ (भगवद्भक्ति का प्रचार) सभी को देना चाहता हूँ बस यही कृपा दीजिए। ये होता है भक्तों का भाव उनके हर एक कार्य में परमार्थ अर्थात् सबका कल्याण छुपा होता है।
- भगवान से माँगने में कोई दोष नहीं है किंतु साथ में ये भी ज़रूरी है कि हमें क्या माँगना है इस बात की जागरूकता हमें अवश्य होनी चाहिए। ये तभी सम्भव है जब हम प्रामाणिक गुरु के निर्देशन में रहकर भक्ति करेंगे और उनकी कृपा से ही हमारे हृदय में ऐसी चेतना विकसित होगी। वरना मंथरा जैसे लोगों के संग में रहकर महारानी कैकेयी के जैसा वरदान माँगकर सिर्फ़ विनाश की तरफ़ जाएँगे। जो देखने में अति प्रिय प्रतीत होता है किंतु वास्तव में अति दुखदायी होता है।
- हमें प्रामाणिक गुरु, साधु और शास्त्र के निर्देशन में रहकर भगवान के नाम, रूप, गुण तथा लीलाओं की महिमा का श्रवण, कीर्तन और स्मरण करना चाहिए। “परम विजयते श्रीकृष्ण संकीर्तनम” कलियुग में यह संकीर्तन आंदोलन (भगवान के नाम का जप और कीर्तन) मानवता के लिए परम वरदान है और यह भगवान से सीधे जुड़कर भगवदप्रेम विकसित करने की सर्वोत्तम सरल विधि है। इसीलिए सदा ही भगवान के नाम का जप करिए और ख़ुश रहिए।
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