शब्द और अर्थ की सहकारिता (सहायकता):
"शब्दबोध्यो व्यनक्त्यर्थः शब्दोऽप्यर्थान्तराश्रयः।
एकस्य व्यञ्जकत्वे तदन्यस्य सहकारिता।।"
- शब्द-बोध्यः (शब्द से समझाया गया)
- व्यानक्ति-अर्थः (अर्थ को प्रकट करता है)
- शब्दः-अपि (शब्द भी)
- अर्थ-अन्तर-आश्रयः (दूसरे अर्थ पर आधारित)
- एकस्य (एक के)
- व्यञ्जकत्वे (व्यंजक होने में)
- तदन्यस्य (दूसरे का)
- सहकारिता (सहायता)।
अनुवाद: शब्द अर्थ को प्रकट करता है, और अर्थ भी दूसरे शब्द पर आधारित होता है। एक के व्यंजक होने में दूसरे की सहायकता अनिवार्य है।
शब्द की तीन शक्तियाँ:
"अभिधादित्रयोपाधिवैशिष्ट्यात्त्रिविधो मतः।
शब्दोऽपि वाचकस्तद्वल्लक्षको व्यञ्जकस्तथा।।"
- अभिधा-आदि-त्रय-उपाधि-वैशिष्ट्यात् (अभिधा, लक्षणा और व्यंजना की तीन विशिष्ट शक्तियों के कारण)
- त्रिविधः मतः (तीन प्रकार का माना गया है)
- शब्दः-अपि (शब्द भी)
- वाचकः (अभिधा का उपयोग करने वाला)
- तद्वत् (उसी प्रकार)
- लक्षकः (लक्षणा का उपयोग करने वाला)
- व्यञ्जकः (व्यंजना का उपयोग करने वाला)
- तथा (और)।
अनुवाद: अभिधा, लक्षणा और व्यंजना की विशेषताओं के आधार पर, शब्द को तीन प्रकार का माना गया है - वाचक (अभिधा से), लक्षक (लक्षणा से), और व्यंजक (व्यंजना से)।
तात्पर्य की परिभाषा:
"तात्पर्याख्यां वृत्तिमाहुः पदार्थान्वयबोधने।
तात्पर्यार्थं तदर्थं च वाक्यं तद्वोधकं परे।।"
- तात्पर्य-आख्यां वृत्तिम् (तात्पर्य नामक वृत्ति)
- आहुः (कहा गया है)
- पदार्थ-अन्वय-बोधने (पदार्थों के संबंध को समझाने में)
- तात्पर्यार्थं (तात्पर्य का अर्थ)
- तदर्थं च (और उसका अर्थ भी)
- वाक्यं (वाक्य)
- तत्-वोधकं (उसका बोध कराने वाला)
- परे (दूसरे)।
अनुवाद: पदार्थों के संबंध को समझाने वाली वृत्ति को तात्पर्य कहते हैं। तात्पर्य का अर्थ वाक्य द्वारा प्रकट किया जाता है।
वाक्य और तात्पर्य का संबंध:
"अभिधाया एकैकपदार्थबोधनविरामाद्वाक्यार्थरूपस्य पदार्थान्वयस्य बोधिका तात्पर्य नाम वृत्तिः।"
- अभिधाया (अभिधा के द्वारा)
- एकैक-पदार्थ-बोधन-विरामात् (प्रत्येक शब्द के अर्थ को समझाने के बाद)
- वाक्यार्थ-रूपस्य (वाक्य के स्वरूप के)
- पदार्थ-अन्वयस्य (पदार्थों के संबंध के)
- बोधिका (जो बोध कराती है)
- तात्पर्य नाम वृत्तिः (वह तात्पर्य नामक वृत्ति है)।
अनुवाद: अभिधा द्वारा प्रत्येक शब्द के अर्थ को समझाने के बाद, पदार्थों के संबंध का बोध कराने वाली वृत्ति तात्पर्य कहलाती है।
शब्द, अर्थ, और व्यंजना का समन्वय:
"वक्तृबोद्धव्यवाक्यानामन्यसंनिधिवाच्ययोः।
प्रस्तावदेशकालानां काकोश्चेष्टादिकस्य च।।"
- वक्तृ-बोद्धव्य-वाक्यानाम् (वक्ता, श्रोता, और वाक्य)
- अन्य-संनिधि-वाच्ययोः (अन्य उपस्थित शब्दों या अर्थों के)
- प्रस्ताव-देश-कालानाम् (प्रस्ताव, स्थान, और समय के)
- काक-उच्चेष्ट-आदिकस्य च (कौवे की गतिविधियों आदि के)।
अनुवाद: व्यंजना वक्ता, श्रोता, वाक्य, अन्य उपस्थित शब्दों, स्थान, समय, और कौवे की गतिविधियों आदि से भी उत्पन्न हो सकती है।
उदाहरण:
"कालो मधुः कुपित एष च पुष्पधन्वा।
धीरा वहन्ति रतिखेदहराः समीराः।।"
- कालः (वसंत ऋतु)
- मधुः (मधुर है)
- कुपितः (क्रोधित है)
- एषः (यह)
- पुष्पधन्वा (कामदेव)
- धीरा (शांत)
- वहन्ति (चलती हैं)
- रतिखेद-हराः (प्रेम की थकान को हरने वाली)
- समीराः (हवाएँ)।
अनुवाद: "वसंत मधुर है, कामदेव क्रोधित है, और प्रेम की थकान हरने वाली हवाएँ धीरे-धीरे चल रही हैं।"
यह पाठ व्यंजना, तात्पर्य, और शब्द के विभिन्न उपयोगों के गहन विश्लेषण को प्रस्तुत करता है।
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