शिक्षा मंत्रालय ने किया ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ को समाप्त

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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यह चित्र शिक्षा सुधार और नो डिटेंशन पॉलिसी के अंत का प्रतीक है। इसमें एक तरफ शिक्षक कक्षा में छात्रों को समझा रहे हैं, जबकि दूसरी तरफ सरकारी अधिकारी पॉलिसी पर चर्चा कर रहे हैं। यह प्रशासनिक निर्णय और शैक्षणिक प्रभाव का तालमेल दर्शाता है।

यह चित्र शिक्षा सुधार और नो डिटेंशन पॉलिसी के अंत का प्रतीक है। इसमें एक तरफ शिक्षक कक्षा में छात्रों को समझा रहे हैं, जबकि दूसरी तरफ सरकारी अधिकारी पॉलिसी पर चर्चा कर रहे हैं। यह प्रशासनिक निर्णय और शैक्षणिक प्रभाव का तालमेल दर्शाता है।



 शिक्षा मंत्रालय ने ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ को समाप्त करने का निर्णय लिया है। यह पॉलिसी राष्ट्रीय शिक्षा नीति (2009) के तहत लागू की गई थी, जिसके अनुसार कक्षा 1 से 8 तक के छात्रों को किसी भी कक्षा में फेल नहीं किया जा सकता था। इसका उद्देश्य छात्रों पर परीक्षा का दबाव कम करना और उन्हें शिक्षा का आनंद लेने का मौका देना था।

पॉलिसी समाप्ति का निर्णय क्यों लिया गया?

  1. सीखने के स्तर में गिरावट:

    • कई अध्ययनों में पाया गया कि छात्रों के सीखने के स्तर में गिरावट हो रही है।
    • छात्रों के पास अगली कक्षा में प्रमोट होने की गारंटी थी, जिससे वे पढ़ाई के प्रति गंभीर नहीं थे।
  2. गुणवत्ता सुधार की आवश्यकता:

    • यह देखा गया कि शिक्षक और स्कूल भी छात्रों के प्रदर्शन को लेकर कम जिम्मेदार हो गए थे।
    • परिणामस्वरूप, शिक्षा प्रणाली में गिरावट आई।
  3. शैक्षिक असमानता:

    • कमजोर पृष्ठभूमि के छात्रों पर इस नीति का नकारात्मक प्रभाव पड़ा, क्योंकि वे सही तरीके से पढ़ाई नहीं कर पा रहे थे।

नई व्यवस्था में क्या बदलाव होगा?

  1. परीक्षाओं का महत्व:

    • अब कक्षा 5वीं और 8वीं में वार्षिक परीक्षाएं अनिवार्य होंगी।
    • इन परीक्षाओं में फेल होने वाले छात्रों को दो महीने बाद पुनर्परीक्षा का मौका दिया जाएगा।
  2. फेल होने पर दोबारा पढ़ाई:

    • यदि छात्र पुनर्परीक्षा में भी असफल रहते हैं, तो उन्हें उसी कक्षा में पुनः पढ़ाई करनी होगी।
  3. शिक्षकों की जिम्मेदारी बढ़ेगी:

    • अब शिक्षक छात्रों की पढ़ाई और उनके प्रदर्शन पर अधिक ध्यान देंगे।

फायदे:

  1. छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों में शिक्षा के प्रति गंभीरता आएगी।
  2. शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा।
  3. कमजोर छात्रों को समय रहते पुनः सुधारने का मौका मिलेगा।

चुनौतियां:

  1. स्कूल छोड़ने की दर में वृद्धि:

    • कई छात्र, विशेषकर गरीब पृष्ठभूमि के, फेल होने के डर से स्कूल छोड़ सकते हैं।
  2. अभिभावकों का दबाव:

    • छात्रों पर अत्यधिक दबाव हो सकता है, जिससे मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  3. शिक्षकों की तैयारी:

    • शिक्षकों को छात्रों को पास कराने की जिम्मेदारी दी गई है, लेकिन प्रशिक्षण और संसाधनों की कमी समस्या बन सकती है।

समस्या समाधान के उपाय:

  1. छात्रों के लिए अतिरिक्त सहायता कार्यक्रम चलाना चाहिए।
  2. शिक्षकों का प्रशिक्षण सुनिश्चित किया जाए।
  3. परामर्श सेवाएं शुरू की जाएं, ताकि छात्रों और अभिभावकों को मानसिक दबाव से राहत मिले।

इस नीति में बदलाव से शिक्षा प्रणाली में सुधार की उम्मीद है, लेकिन इसे लागू करते समय हर वर्ग के छात्रों के लिए सहयोगात्मक वातावरण बनाना जरूरी होगा।

नो डिटेंशन पॉलिसी को समाप्त करने का निर्णय शिक्षा का अधिकार अधिनियम (Right to Education Act), 2009 में संशोधन के तहत लिया गया है।

शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE), 2009

  • यह अधिनियम 6 से 14 वर्ष के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्रदान करता है।
  • इसके तहत नो डिटेंशन पॉलिसी लागू की गई थी, जिसमें कक्षा 1 से 8 तक के छात्रों को किसी भी कारण से फेल नहीं किया जा सकता था।
  • इस अधिनियम का उद्देश्य सभी बच्चों को शिक्षा प्रदान करना और स्कूल छोड़ने की दर को कम करना था।

संशोधन का प्रावधान:

2019 में, शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) में संशोधन किया गया, जिससे राज्यों को यह अधिकार दिया गया कि वे नो डिटेंशन पॉलिसी को लागू करने या समाप्त करने का निर्णय ले सकते हैं।

संशोधित प्रावधान:

  1. कक्षा 5 और 8 में परीक्षाएं अनिवार्य होंगी।
  2. फेल होने की स्थिति में:
    • छात्रों को दोबारा परीक्षा का अवसर मिलेगा।
    • यदि वे पुनर्परीक्षा में भी असफल होते हैं, तो उन्हें उसी कक्षा में रोक दिया जाएगा।
  3. राज्यों को यह अधिकार है कि वे अपने अनुसार इस नीति को लागू करें।

संशोधन का कारण:

  • छात्रों में सीखने की गिरावट और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की आवश्यकता।
  • शिक्षकों और अभिभावकों में जवाबदेही बढ़ाने का उद्देश्य।

नियम की मौजूदा स्थिति:

शिक्षा मंत्रालय ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को इस नीति को लागू करने की सिफारिश की है। इसे लागू करने के लिए राज्य सरकारों को अपने स्तर पर नियम बनाने होंगे।

निष्कर्ष:
नो डिटेंशन पॉलिसी का अंत शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने का प्रयास है, लेकिन इसे प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए सभी पक्षों को जिम्मेदारी से कार्य करना होगा।

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