रघुवंश महाकाव्य के द्वितीय सर्ग का सारांश

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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Mahakavi kalidas praneetam raghuvansh -mahakavyam - chapter 2
Mahakavi kalidas praneetam
raghuvansh -mahakavyam - chapter 2

 महाकवि कालिदास के रघुवंश महाकाव्य के द्वितीय सर्ग में राजा दिलीप की जीवनशैली, उनके चरित्र, और उनके धर्माचरण का विस्तारपूर्वक वर्णन मिलता है। यह अध्याय उनके गुरुभक्ति, त्याग, और गौसेवा की भावना को अद्भुत ढंग से प्रस्तुत करता है। आइए इस सर्ग को विस्तृत रूप से समझते हैं:


कथा का आरंभ: गौ सेवा का व्रत

राजा दिलीप अपने गुरु वसिष्ठ के आदेश का पालन करते हुए उनकी दिव्य गाय, नंदिनी, की सेवा का व्रत लेते हैं। यह व्रत राजा के धर्म और कर्तव्य की परीक्षा है।

  • राजा नंदिनी के हर क्रियाकलाप में उसकी सेवा में समर्पित रहते हैं।
  • जब नंदिनी चरने के लिए जाती है, राजा उसकी सुरक्षा के लिए साथ चलते हैं।
  • राजा नंदिनी को एक माता के समान आदर और स्नेह देते हैं। उनका प्रत्येक कार्य नंदिनी की सेवा में ही संलग्न है।
  • यह गौ-सेवा उनकी प्रजा के प्रति उत्तरदायित्व का प्रतीक है, क्योंकि नंदिनी जैसी गायें कृषि और जीवनयापन का आधार मानी जाती थीं।

नंदिनी पर संकट का आगमन

एक दिन नंदिनी जंगल में एक गुफा के पास जाती है। वहां अचानक एक भूखा सिंह प्रकट होता है और नंदिनी पर आक्रमण करता है।

  • राजा दिलीप तुरंत नंदिनी की रक्षा के लिए आगे बढ़ते हैं।
  • वे अपने धनुष से सिंह पर बाण चलाने का प्रयास करते हैं, लेकिन बाण निष्प्रभावी हो जाता है।
  • सिंह राजा से संवाद करता है और बताता है कि वह भगवान शिव का सेवक कुम्भोदर है। यह घटना नंदिनी और राजा दिलीप की परीक्षा है।

सिंह और राजा का संवाद

सिंह राजा से कहता है कि नंदिनी को उसका आहार बनने दो। वह कहता है कि यह ईश्वर की इच्छा है।

  • राजा दिलीप दृढ़तापूर्वक उत्तर देते हैं कि वे किसी भी कीमत पर नंदिनी की रक्षा करेंगे।
  • राजा सिंह से प्रार्थना करते हैं कि वह नंदिनी को छोड़ दे और उसके स्थान पर उनके प्राण ले ले।
  • यह राजा दिलीप की प्रजा और धर्म के प्रति गहरी निष्ठा को दिखाता है।

सिंह उनके इस निःस्वार्थ भाव से चकित हो जाता है और राजा से कहता है कि वे अपने गुरु के प्रति सच्चे शिष्य हैं।


नंदिनी का प्रकट होना और वरदान देना

राजा की परीक्षा पूरी हो जाती है। नंदिनी गाय के रूप में प्रकट होती है और सिंह गायब हो जाता है।

  • नंदिनी राजा दिलीप के त्याग और भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद देती है।
  • वह कहती है कि उनके वंश में एक पराक्रमी और धर्मपरायण पुत्र का जन्म होगा।
  • नंदिनी, राजा की प्रजा के कल्याण और वंश की समृद्धि का वरदान देती है।

वसिष्ठ का आशीर्वाद और राजधानी वापसी

राजा दिलीप अपने गुरु वसिष्ठ के पास लौटते हैं। गुरु वसिष्ठ उन्हें उनके तप और सेवा का फल बताते हैं।

  • राजा और रानी सुदक्षिणा अपने नगर लौटते हैं।
  • प्रजा राजा का भव्य स्वागत करती है।
  • नंदिनी के आशीर्वाद से रानी सुदक्षिणा गर्भवती होती हैं और उनके पुत्र रघु का जन्म होता है। रघु एक पराक्रमी राजा और रघुवंश की महिमा को बढ़ाने वाले पात्र बनते हैं।

प्राकृतिक सौंदर्य और राजा का चरित्र

महाकवि कालिदास ने इस सर्ग में राजा दिलीप के चरित्र को प्रकृति और धार्मिकता के साथ जोड़ा है।

  • जंगल का वर्णन: नंदिनी जहां-जहां जाती है, वहां के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन मिलता है। जंगल में बहती नदियां, हरे-भरे पेड़, और पक्षियों का कलरव एक आध्यात्मिक वातावरण का निर्माण करते हैं।
  • राजा का समर्पण: राजा हर पल नंदिनी की रक्षा के लिए तत्पर रहते हैं। चाहे वह चरते समय हो, जल पीते समय हो, या विश्राम करते समय, राजा का हर कार्य नंदिनी की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।

धर्म और राजा का कर्तव्य

यह सर्ग राजा के आदर्श कर्तव्य का परिचायक है।

  1. गुरुभक्ति: राजा दिलीप गुरु वसिष्ठ के आदेश का पालन पूर्ण निष्ठा और श्रद्धा से करते हैं। यह दर्शाता है कि शिष्य को अपने गुरु के आदेश का पालन हर स्थिति में करना चाहिए।
  2. गौसेवा: गाय भारतीय संस्कृति में माता के समान पूज्य मानी गई है। नंदिनी की सेवा राजा की प्रजा के प्रति उनके दायित्व का प्रतीक है।
  3. त्याग और समर्पण: राजा दिलीप नंदिनी की रक्षा के लिए अपने प्राण देने को भी तैयार रहते हैं। उनका यह त्याग आदर्श राजा की पहचान है।
  4. धर्म का पालन: राजा दिलीप का हर कार्य धर्म के प्रति उनकी निष्ठा को दर्शाता है।

मुख्य संदेश

यह सर्ग हमें सिखाता है कि:

  • धर्म और कर्तव्य का पालन निःस्वार्थ भाव से करना चाहिए।
  • त्याग और सेवा का भाव व्यक्ति को महान बनाता है।
  • सच्चा राजा वह है, जो प्रजा, धर्म, और गुरु के प्रति निष्ठावान हो।

कालिदास ने राजा दिलीप को एक आदर्श राजा के रूप में प्रस्तुत किया है, जिनकी निष्ठा, भक्ति, और सेवा के गुण आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा हैं।


यह अध्याय न केवल राजा दिलीप की कथा है, बल्कि यह धर्म, त्याग, और सेवा का आदर्श उदाहरण है। कालिदास की काव्य शैली इस सर्ग को अत्यधिक प्रभावशाली और आकर्षक बनाती है।

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