"अर्शआदिभ्योऽच्" इत्यच्प्रत्ययः एक संस्कृत व्याकरणिक सूत्र है, जो पाणिनि के अष्टाध्यायी में वर्णित है। इसका अर्थ और व्याख्या इस प्रकार है:
शब्दार्थ और सूत्र का व्याख्या:
- अर्शआदिभ्यः: "अर्श" आदि शब्दों के समूह से।
- अच्: प्रत्यय का नाम (अच् प्रत्यय)।
- इति: ऐसा।
- प्रत्ययः: जो किसी शब्द के अंत में जुड़ता है और उसका अर्थ विशेष करता है।
अर्थ:
यह सूत्र बताता है कि "अर्श" आदि शब्दों से अच् प्रत्यय लगाया जाता है। यह प्रत्यय उन शब्दों में जोड़ा जाता है, जिनका संबंध पीने या खाने से है।
उदाहरण:
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पीतः (पीत + अच्):
- "पीत" का अर्थ है "पिया गया"।
- "अच्" प्रत्यय जुड़ने के बाद यह क्रिया विशेषण (past participle) बन जाता है।
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गावः पीताः (गायें चर चुकी हैं):
- "पीताः" = पी (धातु) + अच् प्रत्यय।
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भुक्तः (भुज् + अच्):
- "भुज्" (खाने) से "भुक्तः" (खाया गया)।
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दृष्टः (दृश् + अच्):
- "दृश्" (देखना) से "दृष्टः" (देखा गया)।
संदर्भ में उपयोग:
श्लोक में "पीतः" शब्द का प्रयोग हुआ है, जो "पी" धातु से अच् प्रत्यय लगाकर बना है।
- "पीतः" = पिया हुआ, जो नंदिनी के बछड़े द्वारा दूध पीने की क्रिया को व्यक्त करता है।
सारांश:
"अर्शआदिभ्योऽच्" एक व्याकरणिक नियम है, जो क्रिया या घटना के संपन्न होने का सूचक है। संस्कृत में इस प्रकार के प्रत्यय शब्दों को संक्षिप्त, अर्थपूर्ण और व्याकरणिक रूप से समृद्ध बनाते हैं।
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