"अर्शआदिभ्योऽच्" इत्यच्प्रत्ययः

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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Here is the artistic depiction of the concept of Ashtadhyayi, showcasing the ancient scholar, Panini, and elements representing the eight chapters of his grammatical work. Let me know if you'd like any modifications!

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 "अर्शआदिभ्योऽच्" इत्यच्प्रत्ययः एक संस्कृत व्याकरणिक सूत्र है, जो पाणिनि के अष्टाध्यायी में वर्णित है। इसका अर्थ और व्याख्या इस प्रकार है:


शब्दार्थ और सूत्र का व्याख्या:

  • अर्शआदिभ्यः: "अर्श" आदि शब्दों के समूह से।
  • अच्: प्रत्यय का नाम (अच् प्रत्यय)।
  • इति: ऐसा।
  • प्रत्ययः: जो किसी शब्द के अंत में जुड़ता है और उसका अर्थ विशेष करता है।

अर्थ:

यह सूत्र बताता है कि "अर्श" आदि शब्दों से अच् प्रत्यय लगाया जाता है। यह प्रत्यय उन शब्दों में जोड़ा जाता है, जिनका संबंध पीने या खाने से है।


उदाहरण:

  1. पीतः (पीत + अच्):

    • "पीत" का अर्थ है "पिया गया"।
    • "अच्" प्रत्यय जुड़ने के बाद यह क्रिया विशेषण (past participle) बन जाता है।
  2. गावः पीताः (गायें चर चुकी हैं):

    • "पीताः" = पी (धातु) + अच् प्रत्यय।
  3. भुक्तः (भुज् + अच्):

    • "भुज्" (खाने) से "भुक्तः" (खाया गया)।
  4. दृष्टः (दृश् + अच्):

    • "दृश्" (देखना) से "दृष्टः" (देखा गया)।

संदर्भ में उपयोग:

श्लोक में "पीतः" शब्द का प्रयोग हुआ है, जो "पी" धातु से अच् प्रत्यय लगाकर बना है।

  • "पीतः" = पिया हुआ, जो नंदिनी के बछड़े द्वारा दूध पीने की क्रिया को व्यक्त करता है।

सारांश:

"अर्शआदिभ्योऽच्" एक व्याकरणिक नियम है, जो क्रिया या घटना के संपन्न होने का सूचक है। संस्कृत में इस प्रकार के प्रत्यय शब्दों को संक्षिप्त, अर्थपूर्ण और व्याकरणिक रूप से समृद्ध बनाते हैं।

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