महाभारत में भूगोल और भुवन कोष का विवेचन,भुवन कोष का परिचय,महाभारत में भारत का भूगोल,महाभारत में सप्त द्वीपों का उल्लेख,भारत के बाहर के देशों का वर्णन।
महाभारत में भूगोल और भुवन कोष का विवेचन
भूमिका
महाभारत भारतीय सभ्यता का एक अद्वितीय ग्रंथ है, जो न केवल हमारे इतिहास, संस्कृति और परंपरा का दर्पण है, बल्कि भौगोलिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। महाभारत में भूगोल को "भुवन कोष" नाम से संबोधित किया गया है। यह नाम इस बात को स्पष्ट करता है कि यह केवल स्थानीय भूगोल तक सीमित नहीं था, बल्कि इसका दायरा वैश्विक था। यह निबंध महाभारत में भूगोल के विविध पहलुओं का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करता है, जिसमें प्राचीन भारतीय भूगोल, विश्व भूगोल, और आर्थिक तथा सांस्कृतिक प्रभावों का उल्लेख है।
भुवन कोष का परिचय
महाभारत में भूगोल को "भुवन कोष" के रूप में वर्णित किया गया है, जो विश्व भूगोल का प्रतीक है। (संदर्भ: महाभारत, भीष्म पर्व, अध्याय 6)। प्राचीन भारतीय दृष्टिकोण में भूगोल केवल भौतिक भूभाग का अध्ययन नहीं था, बल्कि इसमें सांस्कृतिक, धार्मिक और आर्थिक पहलू भी सम्मिलित थे। महाभारत में भीष्म पर्व और सभा पर्व में विशेष रूप से भूगोल का वर्णन मिलता है।
महाभारत में भारत का भूगोल
महाभारत में भारतवर्ष का व्यापक और सजीव वर्णन मिलता है। इसमें हिमालय, गंगा, यमुना, सरस्वती, और विन्ध्याचल जैसे प्रमुख पर्वतों और नदियों का उल्लेख है। सरस्वती के बारे में महाभारत में कहा गया है कि वह कुछ स्थानों पर दृश्य और अदृश्य होती है। (संदर्भ: महाभारत, भीष्म पर्व, अध्याय 9)।
विष्णु पर्व के अध्याय 1 से 11 तक भारत के भूगोल का विशद वर्णन किया गया है। इसमें जम्बू खंड, हिमालय पर्वत, और दक्षिण में स्थित कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों का वर्णन है। उदाहरण के लिए:
- हिमालय और कैलाश पर्वत – हिमालय को भारत की धरोहर और उसके सांस्कृतिक जीवन का आधार बताया गया है। कैलाश पर्वत को धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना गया है।
- नदियां – गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का उल्लेख उनके पवित्र और आर्थिक महत्व के लिए किया गया है। सरस्वती के अदृश्य और दृश्य स्वरूप को विशेष रूप से वर्णित किया गया है।
महाभारत में सप्त द्वीपों का उल्लेख
महाभारत में पृथ्वी को सप्त द्वीपों में विभाजित किया गया है। जम्बू द्वीप, जो भारत का प्रतीक है, इसका सबसे महत्वपूर्ण भाग है। (संदर्भ: महाभारत, भीष्म पर्व, अध्याय 6)। सप्त द्वीपों की यह धारणा भारतीय भूगोल की प्राचीन अवधारणा को दर्शाती है।
भारत के बाहर के देशों का वर्णन
महाभारत में भारत के बाहर के देशों का भी वर्णन मिलता है। इनमें यवन (ग्रीस), रोम, अंता (सीरिया का अंतियोक नगर), और चीन प्रमुख हैं। (संदर्भ: महाभारत, सभा पर्व, अध्याय 28)।
- यवन देश (ग्रीस) – सभा पर्व में सहदेव की दिग्विजय यात्रा के दौरान यवन देश का उल्लेख है। इसे यूनान या ग्रीस के रूप में पहचाना गया है।
- रोम – रोम साम्राज्य का उल्लेख "रोमा" नाम से किया गया है।
- अंता (सीरिया) – अंता को सीरिया के अंतियोक नगर के रूप में पहचाना गया है। यह सिकंदर के उत्तराधिकारी द्वारा बसाया गया था।
सभा पर्व में राजसूय यज्ञ का विवरण
सभा पर्व में युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के अवसर पर विभिन्न देशों के राजाओं और उनके उपहारों का वर्णन है। यह विवरण भारत के अन्य देशों के साथ संबंधों को दर्शाता है। उदाहरण के लिए:
- शक और यवन जातियों ने राजसूय यज्ञ के लिए उपहार भेजे।
- काबुल, गजनी और बल्ख जैसे क्षेत्रों के राजा उपहार स्वरूप दुर्लभ वस्तुएं लेकर आए। (संदर्भ: महाभारत, सभा पर्व, अध्याय 45-48)।
उत्तर कुरु का वर्णन
उत्तर कुरु महाभारत में कई बार वर्णित हुआ है। इसे मेरु पर्वत के उत्तर में स्थित क्षेत्र कहा गया है। वासुदेव शरण अग्रवाल के अनुसार, उत्तर कुरु का क्षेत्र चीनी तुर्किस्तान के विशाल भूभाग तक विस्तारित था। (संदर्भ: महाभारत, सभा पर्व, अध्याय 24)।
अफगानिस्तान और बलूचिस्तान का उल्लेख
सभा पर्व में नकुल की दिग्विजय यात्रा के दौरान अफगानिस्तान और बलूचिस्तान का भी वर्णन मिलता है। इनमें कंधार, गजनी और बल्ख के क्षेत्रों का उल्लेख है।
महाभारत में भौगोलिक और आर्थिक दृष्टि
वासुदेव शरण अग्रवाल ने महाभारत में भूगोल को आर्थिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण बताया है। उनके अनुसार, युधिष्ठिर के राज्य को एक आर्थिक और भौगोलिक इकाई के रूप में प्रस्तुत किया गया है। राजसूय यज्ञ के माध्यम से युधिष्ठिर ने पूरे विश्व के राजाओं से आर्थिक और सांस्कृतिक संबंध स्थापित किए। (संदर्भ: वासुदेव शरण अग्रवाल, महाभारत में भूगोल)।
महाभारत का वैश्विक दृष्टिकोण
महाभारत केवल भारत तक सीमित नहीं था, बल्कि इसमें विश्व भूगोल का भी उल्लेख है। सभा पर्व में चीन, शक, यवन और अन्य विदेशी जातियों का वर्णन है।
- चीन और शक जातियां – चीन का उल्लेख स्पष्ट रूप से "चीन प्रदेश" के रूप में किया गया है।
- उत्तर कुरु और तुर्किस्तान – उत्तर कुरु को चीनी तुर्किस्तान के रूप में पहचाना गया है।
निष्कर्ष
महाभारत में भूगोल केवल स्थानों का विवरण नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा दृष्टिकोण है, जो सांस्कृतिक, धार्मिक, और आर्थिक पक्षों को भी समाहित करता है। भुवन कोष के रूप में वर्णित भूगोल, प्राचीन भारतीय ज्ञान और उसकी वैश्विक समझ का प्रतीक है। महाभारत का भूगोल भारत के भीतर और बाहर के क्षेत्रों की अद्भुत जानकारी प्रदान करता है, जो आज भी अनुसंधान का विषय है।
संदर्भ:
- महाभारत, भीष्म पर्व (अध्याय 6-9)
- महाभारत, सभा पर्व (अध्याय 28, 45-48)
- वासुदेव शरण अग्रवाल, महाभारत में भूगोल का विवेचन
- प्राचीन भारतीय भूगोल पर आधारित साहित्यिक अध्ययन
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