लक्षणा के अन्य भेद और उनके उदाहरण तथा व्यंजना की प्रकृतिऔर भेद

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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यह चित्र संस्कृत काव्यशास्त्र (साहित्य और अलंकारशास्त्र) से प्रेरित है। इसमें प्राचीन भारतीय विद्वानों को एक वट वृक्ष के नीचे बैठकर काव्य और सौंदर्यशास्त्र पर चर्चा करते हुए दर्शाया गया है। ताड़पत्र की पांडुलिपियों, प्राकृतिक वातावरण, और बहती नदी के साथ यह दृश्य संस्कृत काव्य की गहराई और सांस्कृतिक समृद्धि को प्रदर्शित करता है।

यह चित्र संस्कृत काव्यशास्त्र (साहित्य और अलंकारशास्त्र) से प्रेरित है। इसमें प्राचीन भारतीय विद्वानों को एक वट वृक्ष के नीचे बैठकर काव्य और सौंदर्यशास्त्र पर चर्चा करते हुए दर्शाया गया है। ताड़पत्र की पांडुलिपियों, प्राकृतिक वातावरण, और बहती नदी के साथ यह दृश्य संस्कृत काव्य की गहराई और सांस्कृतिक समृद्धि को प्रदर्शित करता है।



लक्षणा के अन्य भेद और उनके उदाहरण:

"आरोपाध्यवसानाभ्यां प्रत्येकं ता अपि द्विधा।"

  • आरोप-अध्यवसानाभ्यां (आरोप और समाधान के आधार पर)
  • प्रत्येकं (प्रत्येक को)
  • ता अपि (वे भी)
  • द्विधा (दो प्रकार)।

अनुवाद: लक्षणा को आरोप (किसी अन्य अर्थ का आरोपण) और अध्यवसान (अर्थ की निश्चितता) के आधार पर भी दो प्रकार में विभाजित किया जाता है।


सारूप्य और निगीर्ण अर्थ:

"विषयस्यानिगीर्णस्यान्यतादात्म्यप्रतीतिकृत। सारोपा स्यान्निगीर्णस्य मता साध्यवसानिका।"

  • विषयस्य-अनिगीर्णस्य (जिस अर्थ को पूरी तरह नहीं अपनाया गया है)
  • अन्य-तादात्म्य-प्रतीतिकृत (दूसरे अर्थ की समानता का बोध कराना)
  • सारोपा (सारूप्य लक्षणा)
  • स्यात् (होती है)
  • निगीर्णस्य (जिस अर्थ को पूरी तरह अपनाया गया हो)
  • मता (मानी जाती है)
  • साध्यवसानिका (सिद्धांत रूप)।

अनुवाद: जब विषय का अर्थ पूर्ण रूप से ग्रहण न किया गया हो और उसमें अन्य अर्थ की समानता का बोध कराया जाए, तो उसे सारूप्य लक्षणा कहते हैं। जब विषय का अर्थ पूर्ण रूप से ग्रहण किया गया हो, तो वह साध्यवसानिका कहलाती है।


सारूप्य लक्षणा का उदाहरण:

"रूढावुपादानलक्षणा सारोपा यथा-- 'अश्वः श्वेतो धावति'।"

  • रूढौ-उपादान-लक्षणा (रूढ़ि पर आधारित उपादान लक्षणा)
  • सारोपा (समानता वाली)
  • यथा (जैसे)
  • 'अश्वः श्वेतः धावति' ("सफेद घोड़ा दौड़ता है")।

अनुवाद: "सफेद घोड़ा दौड़ता है" में सफेद का गुण घोड़े से जोड़कर सारूप्य लक्षणा का उपयोग किया गया है।


गौण लक्षणा का विस्तृत उदाहरण:

"प्रयोजने यथा-- 'एते कुन्ताः प्रविशन्ति'।"

  • प्रयोजने (प्रयोजन के आधार पर)
  • यथा (जैसे)
  • 'एते कुन्ताः प्रविशन्ति' ("ये भाले प्रवेश कर रहे हैं")।

अनुवाद: "ये भाले प्रवेश कर रहे हैं" में 'कुन्त' (भाला) का उपयोग उसके धारक (योद्धा) को सूचित करने के लिए किया गया है।


लक्षणा और व्यंजना का संयोजन:

"लक्षणामूलामाह-- लक्षणोपास्यते यस्य कृते तत्तु प्रयोजनम्। यया प्रत्याय्यते सा स्याद्व्यञ्जना लक्षणाश्रया।"

  • लक्षणा-मूलामाह (लक्षणा पर आधारित व्यंजना बताई गई)
  • लक्षणा-उपास्यते (लक्षणा का उपयोग किया जाता है)
  • यस्य (जिसके लिए)
  • कृते (कारण से)
  • तत्-प्रयोजनम् (वह प्रयोजन)
  • यया (जिससे)
  • प्रत्याय्यते (बोध कराया जाता है)
  • सा (वह)
  • स्यात् (होती है)
  • व्यञ्जना-लक्षणाश्रया (लक्षणा पर आधारित व्यंजना)।

अनुवाद: जब किसी प्रयोजन के लिए लक्षणा का उपयोग किया जाए और उससे गूढ़ अर्थ का बोध हो, तो वह लक्षणा पर आधारित व्यंजना कहलाती है।


व्यंजना की प्रकृति:

"विरतास्वभिधाद्यासु ययार्ऽथो बोध्यते परः। सा वृत्तिर्व्यञ्जना नाम शब्दस्यार्थादिकस्य च।"

  • विरता-अभिधा-आद्याः (अभिधा आदि से रहित)
  • यया (जिससे)
  • अर्थः (अर्थ)
  • बोध्यते (समझाया जाता है)
  • परः (गूढ़)
  • सा वृत्तिः (वह प्रवृत्ति)
  • व्यञ्जना नाम (व्यंजना कहलाती है)
  • शब्दस्य (शब्द की)
  • अर्थादिकस्य च (और अर्थ की)।

अनुवाद: जब अभिधा, लक्षणा आदि के माध्यम से न समझाया जाए, लेकिन गूढ़ अर्थ का बोध हो, तो वह व्यंजना कहलाती है। यह शब्द और अर्थ दोनों से उत्पन्न हो सकती है।


व्यंजना के भेद:

"अभिधालक्षणामूला शब्दस्य व्यञ्जना द्विधा।"

  • अभिधा-लक्षणा-मूला (अभिधा और लक्षणा पर आधारित)
  • शब्दस्य (शब्द की)
  • व्यञ्जना (व्यंजना)
  • द्विधा (दो प्रकार)।

अनुवाद: व्यंजना के दो प्रकार हैं - अभिधा पर आधारित और लक्षणा पर आधारित।


अभिधामूल व्यंजना का उदाहरण:

"अनेकार्थस्य शब्दस्य संयोगाद्यैर्नियन्त्रिते। एकत्रार्थेऽन्यधीहेतुर्व्यञ्जना साभिधाश्रया।"

  • अनेक-अर्थस्य (जिसके कई अर्थ हों)
  • शब्दस्य (शब्द का)
  • संयोग-आद्यैः (संयोग आदि से)
  • नियन्त्रिते (नियंत्रित)
  • एकत्र-अर्थे (एक अर्थ में)
  • अन्य-अधी-हेतु: (दूसरे अर्थ को समझाने वाली)
  • व्यञ्जना (व्यंजना)
  • साभिधा-आश्रया (अभिधा पर आधारित)।

अनुवाद: जब किसी बहुआर्थक शब्द का एक अर्थ संयोग आदि से निर्धारित हो और दूसरा अर्थ अप्रत्यक्ष रूप से प्रकट हो, तो वह अभिधा पर आधारित व्यंजना होती है।

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