आधुनिक गीतों में नकारात्मक विचारों की बढ़ती भूमिका

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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यह चित्र आधुनिक गीतों में नकारात्मक विचारों की बढ़ती भूमिका को प्रतीकात्मक रूप से दर्शाता है। इसमें हिंसा, नशे और सांस्कृतिक मूल्यों की हानि को डिजिटल स्क्रीन और टूटे हुए संगीत के प्रतीकों के माध्यम से दिखाया गया है। यह आधुनिक समाज में संगीत के प्रभाव पर गहन चिंतन को प्रेरित करता है।

यह चित्र आधुनिक गीतों में नकारात्मक विचारों की बढ़ती भूमिका को प्रतीकात्मक रूप से दर्शाता है। इसमें हिंसा, नशे और सांस्कृतिक मूल्यों की हानि को 
डिजिटल स्क्रीन और टूटे हुए संगीत के प्रतीकों के माध्यम से दिखाया गया है। यह आधुनिक समाज में संगीत के प्रभाव पर गहन चिंतन को प्रेरित करता है।


आज के गीतों में नकारात्मक विचारों की भूमिका और उनका बढ़ता प्रभाव

संगीत, मानव भावनाओं की अभिव्यक्ति का सबसे प्रभावी माध्यम है। यह न केवल मनोरंजन प्रदान करता है, बल्कि समाज पर गहरी छाप भी छोड़ता है। एक समय था जब गीत प्रेरणा, प्रेम, और सांस्कृतिक मूल्यों को बढ़ावा देते थे, लेकिन आधुनिक समय में गीतों की दिशा में एक नकारात्मक बदलाव देखा जा रहा है। यह बदलाव न केवल संगीत की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहा है, बल्कि समाज और खासकर युवाओं पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है।


1. नकारात्मक विचारों की पहचान

आज के गीतों में नकारात्मकता कई रूपों में सामने आती है:

  • अश्लीलता और वल्गरिटी:
    आधुनिक गीतों में अश्लील भाषा और आपत्तिजनक शब्दों का खुलकर प्रयोग हो रहा है। उदाहरण के लिए, कई आइटम गाने (जैसे "मुन्नी बदनाम हुई", "शीला की जवानी") श्रोताओं को अधिकतम मनोरंजन देने के लिए शालीनता की सीमा लांघते हैं।
  • हिंसा और बदले की भावना:
    कुछ गाने (जैसे "बदला लेगा", "सांड की आंख") हिंसात्मक प्रवृत्ति को बढ़ावा देते हैं, जो खासकर युवाओं में आक्रामकता को बढ़ावा दे सकते हैं।
  • नशे और गैर-जिम्मेदार व्यवहार का महिमामंडन:
    पंजाबी और बॉलीवुड गानों में अक्सर शराब, ड्रग्स, और पार्टी लाइफ को ग्लैमराइज किया जाता है। उदाहरण के लिए, "दारू देसी", "लुंगी डांस", और "सनी सनी" जैसे गाने नशे की प्रवृत्ति को सामान्य बनाते हैं।

2. समाज और युवाओं पर प्रभाव

  • मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव:
    नकारात्मक गाने युवाओं को अपने जीवन और रिश्तों के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। शोध बताते हैं कि हिंसात्मक और अश्लील गीत सुनने वाले युवाओं में आक्रामकता और अवसाद जैसी समस्याएं बढ़ जाती हैं।
  • रिश्तों पर प्रभाव:
    प्रेम और रिश्तों पर आधारित कई गीतों में विश्वासघात, बदला, और टूटन को प्रमुखता दी जाती है। यह नकारात्मकता युवाओं के प्रेम और रिश्तों के प्रति दृष्टिकोण को प्रभावित करती है।
  • सामाजिक मूल्यों का पतन:
    अश्लीलता और हिंसा को बढ़ावा देने वाले गीत समाज में गलत आदर्श स्थापित करते हैं। ये गीत युवाओं को यह संदेश देते हैं कि "ग्लैमर" और "प्रदर्शन" वास्तविक जीवन का आधार हैं।

3. सांस्कृतिक क्षरण का खतरा

  • संगीत और संस्कृति का संबंध:
    भारतीय संगीत का इतिहास प्रेम, अध्यात्म, और नैतिकता से भरा हुआ है। पुराने गानों में "प्यार हुआ इकरार हुआ" (श्री 420), "लग जा गले" (वो कौन थी), और "आनंद" का "जिंदगी कैसी है पहेली" जैसे गीत हमारे सांस्कृतिक मूल्यों को दर्शाते थे।
  • आधुनिक गीतों का प्रभाव:
    वर्तमान गीत, जैसे "चिट्टियां कलाइयां", "डोंट बी शाय" और "चोगाड़ा तारा", अधिकतर त्वरित मनोरंजन और वायरल ट्रेंड्स पर आधारित होते हैं। इनमें से कई गीत अपनी गहराई खो चुके हैं और केवल सतही भावनाओं को उजागर करते हैं।

4. गीतकारों और संगीतकारों की भूमिका

संगीत निर्माता और गीतकार, समाज के लिए एक ज़िम्मेदार भूमिका निभाते हैं। लेकिन आज के गीतों में यह ज़िम्मेदारी अक्सर केवल आर्थिक लाभ तक सीमित हो गई है। ग्लैमर और लोकप्रियता के चक्कर में, कंटेंट की गुणवत्ता गिर रही है।

5. समाधान और संभावित सुधार

  • सकारात्मक गीतों को प्राथमिकता दें:
    संगीतकारों को प्रेरणादायक और सकारात्मक संदेश देने वाले गानों का निर्माण करना चाहिए। जैसे "जय हो", "रूबरू", और "मोह मोह के धागे"
  • युवाओं को सही दिशा दिखाएं:
    अभिभावकों, शिक्षकों और मीडिया को युवाओं को इस बात के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए कि वे अपने संगीत चयन में समझदारी दिखाएं।
  • संगीत उद्योग में गुणवत्ता का नियंत्रण:
    सेंसर बोर्ड और अन्य निकायों को गीतों में आपत्तिजनक सामग्री को नियंत्रित करना चाहिए।

6. संदर्भ और उदाहरण

  • शोध:
    एक अध्ययन (2020) में पाया गया कि हिंसात्मक गाने सुनने वाले 68% युवाओं में आक्रामकता के लक्षण बढ़े।
  • फिल्मी उदाहरण:
    "दिल चाहता है", "चक दे इंडिया", और "तारे ज़मीन पर" जैसे फिल्मों के गानों ने सकारात्मक संदेश दिए, जो समाज पर गहरी छाप छोड़ते हैं।
  • प्रेरणा के स्रोत:
    पुराने गीतकार, जैसे शंकर-जयकिशन, गुलज़ार, और लता मंगेशकर, हमेशा अपने गीतों के माध्यम से समाज को प्रेरित करते थे।

निष्कर्ष

गीत केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि समाज के विचारों का प्रतिबिंब भी हैं। आज के गीतों में नकारात्मक विचारों की बढ़ती भूमिका समाज के मानसिक और सांस्कृतिक स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है। हमें यह समझना होगा कि संगीत एक सशक्त माध्यम है, जो न केवल लोगों का मूड बदलता है, बल्कि उनके विचारों और आदर्शों को भी आकार देता है। अगर संगीत सकारात्मक होगा, तो समाज भी सकारात्मक दिशा में बढ़ेगा।

संगीत को फिर से प्रेरणा, प्रेम, और सच्चाई का माध्यम बनाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। तभी यह नकारात्मकता से मुक्त होकर अपने वास्तविक उद्देश्य की ओर लौट सकेगा।

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