बीज और क्षेत्र: संतान प्राप्ति में ज्योतिषीय दृष्टिकोण

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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बीज और क्षेत्र: संतान प्राप्ति में ज्योतिषीय दृष्टिकोण
बीज और क्षेत्र: संतान प्राप्ति में ज्योतिषीय दृष्टिकोण


बीज और क्षेत्र: संतान प्राप्ति में ज्योतिषीय दृष्टिकोण

परिचय
ज्योतिष में संतान प्राप्ति से जुड़े कारकों का अध्ययन अत्यंत गहन और जटिल होता है। इसमें न केवल स्त्री और पुरुष की कुंडलियों का विश्लेषण आवश्यक है, बल्कि बीज और क्षेत्र सिद्धांत का भी विशेष महत्व है। यह सिद्धांत दर्शाता है कि संतान उत्पत्ति के लिए पुरुष और स्त्री दोनों की प्रजनन क्षमताओं का ज्योतिषीय मूल्यांकन कैसे किया जाए।

बीज (पुरुष) और क्षेत्र (स्त्री) की कुंडली में ग्रहों की स्थिति, उनके बल और संबंधों का विश्लेषण करके संतान के योग और उससे जुड़े संभावित दोषों की भविष्यवाणी की जाती है। यह निबंध बीज और क्षेत्र के सिद्धांत, उनके बल और दुर्बलता के कारणों, और संभावित दोषों के उपायों पर विस्तृत प्रकाश डालता है।


बीज (पुरुष की कुंडली में प्रजनन क्षमता का कारक)

बीज का निर्धारण

बीज का संबंध पुरुष की शुक्राणु उत्पादन क्षमता से है। कुंडली में बीज को सूर्य, शुक्र और गुरु के राशि अंश, कला और दशांश को जोड़कर निकाला जाता है। यह बिंदु "बीज बिंदु" कहलाता है। इस बिंदु की स्थिति और उस पर शुभ-अशुभ ग्रहों का प्रभाव संतान के योग और गुणवत्ता को प्रभावित करता है।

बीज का बल

  1. विषम राशि और विषम नवमांश:

    • यदि बीज बिंदु विषम राशि और विषम नवमांश में हो, और शुभ ग्रहों से दृष्ट या युक्त हो, तो यह बीज को बलवान बनाता है।
    • ऐसा पुरुष संतान उत्पन्न करने में सक्षम होता है और संतान से जुड़े अच्छे परिणाम देता है।
  2. विषम राशि और सम नवमांश:

    • यह स्थिति मध्यम बलवान बीज को दर्शाती है।
    • इस स्थिति में संतान प्राप्ति संभव होती है, लेकिन इसमें विलंब हो सकता है।
  3. सम राशि और सम नवमांश:

    • यह स्थिति बीज की दुर्बलता को दर्शाती है।
    • इस स्थिति में संतान प्राप्ति में बाधा आती है और चिकित्सा हस्तक्षेप या ज्योतिषीय उपाय आवश्यक हो सकते हैं।

क्षेत्र (स्त्री की कुंडली में गर्भधारण की क्षमता का कारक)

क्षेत्र का निर्धारण

क्षेत्र का निर्धारण स्त्री की कुंडली में मंगल, चंद्र और गुरु के राशि अंश और कला को जोड़कर किया जाता है। यह "क्षेत्र बिंदु" कहलाता है। यह बिंदु स्त्री की प्रजनन क्षमता, गर्भधारण और प्रसव की संभावना को दर्शाता है।

क्षेत्र का बल

  1. सम राशि और सम नवमांश:

    • यह स्थिति गर्भधारण शक्ति की उत्कृष्टता को दर्शाती है।
    • ऐसी स्त्रियां सामान्य परिस्थितियों में स्वस्थ संतान को जन्म देती हैं।
  2. सम राशि और विषम नवमांश:

    • यह स्थिति गर्भधारण में कठिनाई और बांझपन के संकेत दे सकती है।
    • चिकित्सा और ज्योतिषीय उपायों की आवश्यकता हो सकती है।
  3. विषम राशि और विषम नवमांश:

    • यह स्थिति गर्भधारण में पूरी तरह असमर्थता का संकेत देती है।
    • इस स्थिति में संतान प्राप्ति लगभग असंभव होती है।

संतान दोष के मुख्य कारण (दोष के योग)

1. दुर्बल ग्रह और भाव:

  • लग्नेश, सप्तमेश और पंचमेश का बलहीन होना।
  • पंचम भाव में पाप ग्रहों का प्रभाव और अशुभ दृष्टि।

2. पंचम भाव में पाप ग्रहों की युति:

  • मंगल, राहु, केतु, और शनि जैसे पाप ग्रह पंचम भाव में या पंचमेश पर स्थित होने से संतानहीनता या गर्भपात की संभावना बढ़ती है।

3. गुरु और शुक्र की स्थिति:

  • गुरु और शुक्र का अस्त, नीचस्थ, या अशुभ स्थिति में होना।
  • स्त्री कुंडली में शुक्र और मंगल की कमजोरी।

4. राहु-केतु का प्रभाव:

  • पंचम भाव या पंचमेश पर राहु-केतु का संबंध संतान दोष उत्पन्न करता है।

5. पाप ग्रहों की दृष्टि:

  • पंचम भाव और नवमांश में शनि, राहु, और मंगल की दृष्टि।

दोष के कारण संतान की समस्याएं

  1. बांझपन:

    • पुरुष में दुर्बल बीज और स्त्री में दुर्बल क्षेत्र की स्थिति।
    • पंचम भाव में राहु-केतु या मंगल का प्रभाव।
  2. गर्भपात:

    • स्त्री की कुंडली में मंगल, राहु और शनि का पंचम भाव पर प्रभाव।
    • अष्टम भाव में गुरु, चंद्र और शुक्र का दुर्बल होना।
  3. अल्पायु संतान:

    • पंचम भाव और पंचमेश का कमजोर होना।
    • पंचम भाव में पाप ग्रहों की स्थिति।

संतान दोष के ज्योतिषीय उपाय

1. बीज और क्षेत्र के दोष निवारण:

  • पुरुष के लिए सूर्य और शुक्र की पूजा करें।
  • स्त्री के लिए चंद्र और गुरु की पूजा करें।
  • संतान गोपाल मंत्र का जाप करें:
    • "ॐ श्रीं गोपालाय गोविंदाय बालकृष्णाय नमः।"

2. पित्र दोष निवारण:

  • श्राद्ध कर्म और पितरों की पूजा करें।

3. पंचम भाव की शांति:

  • पंचम भाव पर पाप ग्रहों के प्रभाव को कम करने के लिए हवन करें।
  • नवग्रह शांति और गुरु ग्रह की पूजा करें।

4. शुभ ग्रहों का बल बढ़ाना:

  • गुरु, शुक्र और चंद्र के मजबूत करने के लिए रत्न धारण करें (ज्योतिषी की सलाह अनुसार)।

5. दान और सेवा:

  • गरीबों और अनाथ बच्चों को अन्न, वस्त्र और शिक्षा का दान करें।
  • गौ सेवा और पक्षियों को दाना डालें।

निष्कर्ष

संतान प्राप्ति के लिए बीज और क्षेत्र का सिद्धांत ज्योतिषीय दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह सिद्धांत पुरुष और स्त्री दोनों की प्रजनन क्षमताओं का विश्लेषण करके संतान से जुड़ी समस्याओं का समाधान देता है। शुभ ग्रहों की पूजा, दोष निवारण के उपाय, और आध्यात्मिक साधनाओं के माध्यम से इन समस्याओं का समाधान संभव है।

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