अभिधा का विस्तार

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
0
अभिधा का विस्तार
अभिधा का विस्तार



अभिधा का विस्तार:

"उत्तमवृद्धेन मध्यमवृद्धमुद्दिश्य 'गामानय' इत्युक्ते तं गवानयनप्रवृत्तमुपलभ्य बालोऽस्य वाक्यस्य 'सास्नादिमत्पिण्डानयनमर्थः' इति प्रथमं प्रतिपद्यते।"

  • उत्तम-वृद्धेन (श्रेष्ठ ज्ञानी द्वारा)
  • मध्यम-वृद्धम् (मध्यम ज्ञान वाले को)
  • उद्दिश्य (संदर्भित करते हुए)
  • 'गामानय' (गाय लाओ)
  • इति (इस प्रकार)
  • उक्ते (कहा)
  • तं (उसे)
  • गवा-आनयन-प्रवृत्तम् (गाय लाने में प्रवृत्त)
  • उपलभ्य (देखकर)
  • बालः (अल्पज्ञ)
  • अस्य (इस)
  • वाक्यस्य (वाक्य का)
  • 'सास्ना-दिमत्पिण्ड-आनयनम्-अर्थः' (सास्ना आदि वाले पदार्थ लाने का अर्थ)
  • इति (इस प्रकार)
  • प्रथमम् (पहले)
  • प्रतिपद्यते (समझता है)।

अनुवाद: जब श्रेष्ठ ज्ञानी मध्यम ज्ञान वाले से कहता है, "गामानय" (गाय लाओ), और वह गाय लाने में प्रवृत्त होता है, तो बालक (अल्पज्ञ) इसे देखकर समझता है कि इस वाक्य का अर्थ "सास्ना आदि वाला पदार्थ लाना" है।


अभिधा के संकेतानुसार अर्थ ग्रहण:

"अनन्तरं च 'गां बधान' 'अश्वमानय' इत्यादावावापोद्वापाभ्यां गोशब्दस्य 'सास्नादिमानर्थः' आनयनपदस्य च 'आहरणमर्थः' इति संकेतमवधारयति।"

  • अनन्तरं च (इसके बाद)
  • 'गां बधान' ("गाय को बांधो")
  • 'अश्वमानय' ("घोड़ा लाओ")
  • इत्यादौ (आदि में)
  • आवाप-उद्वाप-अभ्यां (संदर्भ और अपवाद द्वारा)
  • गो-शब्दस्य (गाय शब्द का)
  • 'सास्ना-आदि-मान-अर्थः' (सास्ना आदि युक्त अर्थ)
  • आनयन-पदस्य (आनयन शब्द का)
  • (भी)
  • 'आहरणम्-अर्थः' (लाने का अर्थ)
  • इति (इस प्रकार)
  • संकेतम्-अवधारयति (संकेत के रूप में निश्चित करता है)।

अनुवाद: बाद में, "गां बधान" (गाय को बांधो) और "अश्वमानय" (घोड़ा लाओ) जैसे वाक्यों में, संदर्भ और अपवाद के आधार पर, वह समझता है कि गो शब्द का अर्थ "सास्ना आदि युक्त" और आनयन शब्द का अर्थ "लाना" है।


अभिधा का उत्पत्ति स्रोत:

"क्वचिच्च प्रसीद्धपदसमभिव्याहरात्, यथा-- 'इह प्रभिन्नकमलोदरे मधूनि मधुकरः पिबति' इत्यत्र।"

  • क्वचित् (कहीं-कहीं)
  • प्रसीद्ध-पद-समभिव्याहरात् (प्रसिद्ध शब्दों के साथ कहने से)
  • यथा (जैसे)
  • 'इह प्रभिन्न-कमल-उदरे मधूनि मधुकरः पिबति' ("यहाँ फटे हुए कमल के अंदर भौंरा मधु पीता है")
  • इत्यत्र (इसमें)।

अनुवाद: कहीं-कहीं प्रसिद्ध शब्दों के साथ बोले जाने पर अर्थ स्पष्ट होता है, जैसे - "यहाँ फटे हुए कमल के अंदर भौंरा मधु पीता है।"


अभिधा का प्रयोग:

"क्वचिदाप्तोपदेशात्, यथा-- 'अयमश्वशब्दवाच्यः' इत्यत्र।"

  • क्वचित् (कहीं-कहीं)
  • आप्त-उपदेशात् (विश्वसनीय व्यक्ति के उपदेश से)
  • यथा (जैसे)
  • 'अयम्-अश्व-शब्द-वाच्यः' ("यह अश्व शब्द से व्यक्त है")
  • इत्यत्र (इसमें)।

अनुवाद: कहीं-कहीं विश्वसनीय व्यक्ति के उपदेश से अर्थ स्पष्ट होता है, जैसे - "यह अश्व शब्द से व्यक्त है।"


लक्षणा की परिभाषा:

"मुख्यार्थबाधे तद्युक्तो ययान्योऽर्थः प्रतीयते।
रूढेः प्रयोजनाद्वासौ लक्षणा शक्तिरर्पिता।।"

  • मुख्यार्थ-बाधे (मुख्यार्थ के बाधित होने पर)
  • तद्-युक्तः (उससे युक्त)
  • यया (जिससे)
  • अन्यः-अर्थः (दूसरा अर्थ)
  • प्रतीयते (ग्रहण किया जाता है)
  • रूढेः (रूढ़ि से)
  • प्रयोजनात्-वा (या प्रयोजन से)
  • असौ (वह)
  • लक्षणा (लक्षणा)
  • शक्तिः-अर्पिता (शक्ति आरोपित है)।

अनुवाद: जब मुख्यार्थ बाधित हो, और रूढ़ि या प्रयोजन से दूसरा अर्थ ग्रहण किया जाए, तो वह शक्ति लक्षणा कहलाती है।


लक्षणा का उदाहरण:

"यथा-- 'गङ्गायां घोषः' इत्यादौ गङ्गादिशब्दो जलमयादिरूपार्थवाचकत्वात्प्रकृतेऽसंभवन्स्वस्य सामीप्यादिसंबन्धसंबन्धिनं तटादिं बोधयति।"

  • यथा (जैसे)
  • 'गङ्गायां घोषः' ("गंगा में गांव")
  • इत्यादौ (जैसे)
  • गङ्गादि-शब्दः (गंगा आदि शब्द)
  • जलमय-आदि-रूप-अर्थ-वाचकत्वात् (जल से संबंधित अर्थ को व्यक्त करने के कारण)
  • प्रकृते-असंभवन् (सामान्य अर्थ असंभव होने पर)
  • स्वस्य (अपने)
  • सामीप्य-आदि-संबंध-संबंधिनं (निकटता आदि से संबंधित)
  • तट-आदि (तट आदि)
  • बोधयति (ग्रहण कराता है)।

अनुवाद: जैसे "गङ्गायां घोषः" (गंगा में गांव) में गंगा शब्द, जलमय अर्थ व्यक्त करने के कारण, तट आदि का बोध कराता है, क्योंकि सामान्य अर्थ असंभव है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

thanks for a lovly feedback

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top