लक्षणा का विस्तार

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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लक्षणा का विस्तार
लक्षणा का विस्तार



लक्षणा का विस्तार:

"सा शब्दस्यार्पिता स्वाभाविकेतरा ईश्वरानुद्भाविता वा शक्तिर्लक्षणा नाम।"

  • सा (वह)
  • शब्दस्य (शब्द की)
  • अर्पिता (आरोपित)
  • स्वाभाविक-एतराः (स्वाभाविक या भिन्न)
  • ईश्वर-अनुद्भाविता (ईश्वर द्वारा उत्पन्न)
  • वा (या)
  • शक्तिः (शक्ति)
  • लक्षणा नाम (लक्षणा कहलाती है)।

अनुवाद: वह शक्ति, जो स्वाभाविक, भिन्न या ईश्वर द्वारा उत्पन्न हो, उसे लक्षणा कहा जाता है।


"पूर्वत्र हेतुः रूढिः प्रसिद्धिरेव। उत्तरत्र 'गङ्गातटे घोषः' इति प्रतिपादनालभ्यस्य शीतत्वपावनत्वातिशयस्य बोधनरूपं प्रयोजनं।"

  • पूर्वत्र (पहले)
  • हेतुः (कारण)
  • रूढिः (रूढ़ि)
  • प्रसिद्धिः (प्रसिद्धि)
  • एव (ही)।
  • उत्तरत्र (बाद में)
  • 'गङ्गातटे घोषः' (गंगा के तट पर गांव)
  • इति (इस प्रकार)
  • प्रतिपादन-अलभ्यस्य (प्रतिपादन से प्राप्त)
  • शीतत्व-पावनत्व-आतिशयस्य (शीतलता और पवित्रता की अधिकता)
  • बोधन-रूपं (बोध कराने का स्वरूप)
  • प्रयोजनं (उद्देश्य)।

अनुवाद: पहले, इसका कारण रूढ़ि (प्रसिद्धि) है। बाद में, "गङ्गातटे घोषः" में गंगा के तट की शीतलता और पवित्रता का बोध कराने का प्रयोजन है।


लक्षणा के उदाहरण:

"केचित्तु 'कर्मणि कुशलः' इति रूढावुदाहरन्ति।"

  • केचित् (कुछ लोग)
  • तु (किन्तु)
  • 'कर्मणि कुशलः' ("कर्म में निपुण")
  • इति (इस प्रकार)
  • रूढौ (रूढ़ि में)
  • उदाहरन्ति (उदाहरण देते हैं)।

अनुवाद: कुछ लोग "कर्मणि कुशलः" (कर्म में निपुण) को रूढ़ि का उदाहरण मानते हैं।

"तत्र 'कुशां लाती' इति व्युत्पत्तिलभ्यः कुशग्राहिरूपो मुख्योऽर्थः।"

  • तत्र (वहाँ)
  • 'कुशां लाती' ("कुश लाता है")
  • इति (इस प्रकार)
  • व्युत्पत्ति-लभ्यः (व्युत्पत्ति से प्राप्त)
  • कुश-ग्राहि-रूपः (कुश पकड़ने वाले के रूप में)
  • मुख्यः अर्थः (मुख्य अर्थ)।

अनुवाद: यहाँ "कुशां लाती" (कुश लाता है) का व्युत्पत्तिगत अर्थ "कुश पकड़ने वाला" मुख्य अर्थ है।


गौण लक्षणा (उपचालन से युक्त लक्षणा):

"मुख्यार्थस्येतराक्षेपो वाक्यार्थेऽन्वयसिद्धये। स्यादात्मनोऽप्युपादानादेषोपादानलक्षणा।।" (सूत्र 2.6)

  • मुख्यार्थस्य (मुख्यार्थ का)
  • इतर-आक्षेपः (दूसरे को ग्रहण करना)
  • वाक्यार्थे (वाक्यार्थ में)
  • अन्वय-सिद्धये (संबंध सिद्धि के लिए)
  • स्यात् (होता है)
  • आत्मनः-अपि (स्वयं का भी)
  • उपादानात् (ग्रहण के कारण)
  • एषः (यह)
  • उपादान-लक्षणा (उपादान-लक्षणा)।

अनुवाद: मुख्यार्थ को छोड़कर दूसरे अर्थ को ग्रहण करना, वाक्यार्थ में संबंध सिद्ध करने के लिए होता है। यदि यह आत्म (मुख्यार्थ) को भी ग्रहण करता है, तो इसे उपादान-लक्षणा कहते हैं।


लक्षणा के अन्य प्रकार:

"अर्पणं स्वस्य वाक्यार्थे परस्यान्वयसिद्धये। उपलक्षणहेतुत्वादेषा लक्षणलक्षणा।।" (सूत्र 2.7)

  • अर्पणं (त्याग करना)
  • स्वस्य (अपना)
  • वाक्यार्थे (वाक्यार्थ में)
  • परस्य (दूसरे का)
  • अन्वय-सिद्धये (संबंध सिद्धि के लिए)
  • उपलक्षण-हेतुत्वात् (उपलक्षण का कारण होने के कारण)
  • एषा (यह)
  • लक्षण-लक्षणा (लक्षण-लक्षणा)।

अनुवाद: स्वयं का त्याग कर, दूसरे के अर्थ में वाक्यार्थ सिद्ध करने की प्रक्रिया लक्षण-लक्षणा कहलाती है।


लक्षणा का वर्गीकरण (सारूप्य और अन्य संबंध):

"सारोपाध्यवसानाभ्यां प्रत्येकं ता अपि द्विधा।"

  • सारूप-अध्यवसानाभ्यां (समानता और निश्चितता के आधार पर)
  • प्रत्येकं (प्रत्येक को)
  • ता अपि (वे भी)
  • द्विधा (दो भागों में)।

अनुवाद: समानता और निश्चितता के आधार पर, लक्षणा को भी दो भागों में विभाजित किया जाता है।


गौण लक्षणा का उदाहरण:

"गौर्जल्पति।"

  • गौर् (गाय)
  • जल्पति (बोलती है)।

अनुवाद: "गाय बोलती है।" (यह गौण लक्षणा का उदाहरण है)।

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