यह भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार का चित्रण है, जैसा कि भागवत पुराण, अष्टम स्कंध के अध्याय 9 और 12 में वर्णित है। |
भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार की कथा भागवत पुराण के अष्टम स्कंध, अध्याय 9 और 12 में वर्णित है। यह कथा समुद्र मंथन के समय की है, जब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर अमृत को असुरों के हाथों से बचाकर देवताओं में वितरित किया। इस अवतार का उद्देश्य धर्म की रक्षा और असुरों के छल को रोकना था।
कथा की पृष्ठभूमि
देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन किया ताकि अमृत (अमरत्व का रस) प्राप्त किया जा सके। जब अमृत उत्पन्न हुआ, तो असुरों ने उसे छीन लिया। अमृत को लेकर देवता असुरों के छल के कारण भयभीत हो गए। वे भगवान विष्णु की शरण में गए।
देवताओं की प्रार्थना
देवताओं ने भगवान विष्णु से अमृत प्राप्ति की प्रार्थना की।
श्लोक:
सुरासुराणां अमृतार्थिनां सदा।
विष्णुं प्रपन्ना हरिं त्राहि देव!।
त्रैलोक्यनाथं जनतारणं प्रभो।
श्रुत्वा सुराणां प्रहसं स्तोत्रमादिशत।।
(भागवत पुराण 8.9.5)
भावार्थ:
देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की, "हे प्रभु, आप ही त्रैलोक्य के रक्षक हैं। कृपया हमारी रक्षा कीजिए और हमें अमृत प्राप्त करने में सहायता करें।"
मोहिनी अवतार का प्रकट होना
भगवान विष्णु ने देवताओं की प्रार्थना सुनी और मोहिनी अवतार धारण किया। इस रूप में वे अत्यंत मोहक और सुंदर स्त्री के रूप में प्रकट हुए, जिनकी छवि देखकर असुर मोहित हो गए।
श्लोक:
स कामरूपिणीं मोहिनीं नारायणः स्वयम्।
सृष्ट्वा सुराणां स प्रियं मोहयामास दानवान्।।
(भागवत पुराण 8.9.8)
भावार्थ:
भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप में असुरों को मोहित किया और अमृत को सुरक्षित रखने के लिए योजना बनाई।
मोहिनी अवतार और असुरों का छलावा
असुरों ने अमृत के बंटवारे की जिम्मेदारी मोहिनी रूपी स्त्री को सौंप दी। उन्होंने कहा, "आप निष्पक्षता से अमृत का वितरण करें।" मोहिनी ने अपनी दिव्य माया से असुरों को भ्रमित कर दिया।
अमृत का वितरण
मोहिनी ने अमृत को इस प्रकार बाँटा कि देवताओं को अमृत पिला दिया और असुरों को कुछ भी नहीं मिला।
श्लोक:
मोहिन्या मोहिता दैत्या।
दृष्ट्वा स्त्रीरूपमद्भुतम्।
अमृतं ददौ सुरेभ्यः।
मायया च पराभवम्।।
(भागवत पुराण 8.9.22)
भावार्थ:
मोहिनी रूप में भगवान ने असुरों को मोहित कर दिया और अपनी माया से अमृत केवल देवताओं को वितरित कर दिया।
राहु का छल और उसका वध
- जब मोहिनी अमृत वितरित कर रही थीं, तो असुरों में से एक राहु ने देवताओं का रूप धारण कर अमृत पीने का प्रयास किया। सूर्य और चंद्रमा ने उसकी पहचान कर ली और मोहिनी को सूचित किया।
- भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से राहु का सिर काट दिया।
- राहु का सिर अमर हो गया क्योंकि उसने अमृत पी लिया था।
- इस घटना के कारण राहु सूर्य और चंद्रमा से शत्रुता रखता है और ग्रहण करता है।
श्लोक:
स च राहुस्ततः स्वस्य।
चन्द्रादित्ययोः स्मृतः।
ग्रहणं प्राप्यते क्रोधात्।
विष्णुचक्रेण च प्रजः।।
(भागवत पुराण 8.9.26)
भावार्थ:
राहु ने अमृत पीने का प्रयास किया, लेकिन भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उसका वध किया।
मोहिनी अवतार का उद्देश्य पूर्ण
अमृत वितरण के बाद, भगवान मोहिनी रूप से गायब हो गए और देवताओं ने अमरत्व प्राप्त किया। असुर यह समझ गए कि उनके साथ छल हुआ है, लेकिन तब तक अमृत समाप्त हो चुका था।
श्लोक:
अमृतं पीतं सुरेभ्यः।
देवमायाविनिर्मितम्।
दैत्यास्ततोऽज्ञाय दुःखं।
हरिं स्वं नाभ्यजानते।।
(भागवत पुराण 8.9.30)
भावार्थ:
असुरों को जब यह ज्ञात हुआ कि उन्हें छल से वंचित कर दिया गया है, तो वे अत्यंत क्रोधित हुए। लेकिन तब तक अमृत देवताओं को मिल चुका था।
मोहिनी अवतार की शिक्षा
1. धर्म की रक्षा:
भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार के माध्यम से धर्म की स्थापना और देवताओं की रक्षा की।
2. मोह का परिणाम:
असुर मोह और छल के कारण अमृत प्राप्त करने में असफल रहे।
3. भगवान की माया:
भगवान की माया अपरिहार्य है। असुर अपनी शक्ति और बल से भगवान की माया को नहीं समझ सके।
4. समर्पण का महत्व:
देवताओं ने भगवान विष्णु की शरण लेकर अमृत प्राप्त किया, जो यह सिखाता है कि भगवान की शरणागति से हर समस्या का समाधान होता है।
निष्कर्ष
मोहिनी अवतार भगवान विष्णु की अद्भुत लीला और उनकी माया का प्रतीक है। यह कथा सिखाती है कि भगवान अपने भक्तों की रक्षा के लिए किसी भी रूप में प्रकट हो सकते हैं। मोहिनी अवतार में भगवान ने असुरों के अहंकार और छल को परास्त कर देवताओं को अमृत प्रदान किया। यह कथा धर्म, समर्पण और भक्ति का गूढ़ संदेश देती है।
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