मन्त्र 8 (केन उपनिषद) मूल पाठ: यच्छ्रोत्रेण न शृणोति येन श्रोत्रमिदं श्रुतम्। तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते॥
मन्त्र 8 (केन उपनिषद)
मूल पाठ:
यच्छ्रोत्रेण न शृणोति येन श्रोत्रमिदं श्रुतम्।
तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते॥
शब्दार्थ:
- यत् श्रोत्रेण न शृणोति: जिसे कानों से सुना नहीं जा सकता।
- येन श्रोत्रम् इदं श्रुतम्: लेकिन जिसके द्वारा कान सुनने की शक्ति प्राप्त करते हैं।
- तत् एव ब्रह्म त्वं विद्धि: वही ब्रह्म है, इसे जानो।
- न इदं यत् इदम् उपासते: यह नहीं, जिसकी बाहरी रूप में उपासना की जाती है।
अनुवाद:
जो कानों से नहीं सुना जा सकता, लेकिन जो कानों को सुनने की शक्ति देता है, वही ब्रह्म है। इसे जानो। वह ब्रह्म नहीं है जिसकी उपासना बाहरी रूप में की जाती है।
व्याख्या:
1. श्रवण की सीमाएँ:
- यह मन्त्र बताता है कि ब्रह्म श्रवण शक्ति से परे है।
- कान केवल भौतिक ध्वनि सुन सकते हैं, लेकिन ब्रह्म को इन इंद्रियों से नहीं समझा जा सकता।
2. ब्रह्म का स्वरूप:
- ब्रह्म वह शक्ति है जो कानों को सुनने की क्षमता प्रदान करती है।
- यह इंद्रियों के कार्य का स्रोत है, लेकिन स्वयं इंद्रियों के माध्यम से अनुभव नहीं किया जा सकता।
3. आत्मज्ञान का महत्व:
- ब्रह्म को समझने के लिए साधक को इंद्रियों से परे आत्मिक चेतना में प्रवेश करना होगा।
- यह ब्रह्म केवल अनुभव और ध्यान के माध्यम से जाना जा सकता है।
4. बाहरी उपासना से परे:
- "न इदं यदिदम् उपासते" यह इंगित करता है कि ब्रह्म बाहरी प्रतीकों और मूर्त रूपों से परे है।
- यह निराकार और अदृश्य है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण:
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ध्वनि और चेतना का संबंध:
- कान ध्वनि को सुनने का माध्यम हैं, लेकिन ध्वनि को समझने के लिए मस्तिष्क और चेतना की आवश्यकता होती है।
- यह मन्त्र चेतना के उस स्रोत (ब्रह्म) की ओर इशारा करता है जो श्रवण को संभव बनाता है।
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इंद्रियों की सीमाएँ:
- आधुनिक विज्ञान भी मानता है कि हमारी इंद्रियां भौतिक जगत का केवल सीमित अनुभव कर सकती हैं।
- ब्रह्म, जैसा कि यहाँ वर्णित है, भौतिक अनुभवों से परे है।
आध्यात्मिक संदेश:
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इंद्रियों से परे सत्य:
- ब्रह्म को जानने के लिए इंद्रियों से परे आत्मा के स्तर पर चेतना को जागृत करना होगा।
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श्रवण शक्ति का स्रोत:
- ब्रह्म केवल ध्वनि का स्रोत नहीं है, बल्कि श्रवण शक्ति और चेतना का मूल है।
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आंतरिक अनुभव:
- ब्रह्म को समझने का मार्ग आंतरिक अनुभव है, न कि बाहरी उपासना।
आधुनिक संदर्भ में उपयोग:
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सीमितता का बोध:
- यह मन्त्र सिखाता है कि हमारी इंद्रियां और तर्क सीमित हैं। हमें आंतरिक ज्ञान की खोज करनी चाहिए।
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ध्यान और आत्मचिंतन:
- आत्मज्ञान के लिए ध्यान और आत्मचिंतन का अभ्यास करना आवश्यक है।
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अंतर्ज्ञान का महत्व:
- भौतिक ध्वनि और शब्दों से परे एक गहरी चेतना है, जिसे अंतर्ज्ञान और ध्यान से जाना जा सकता है।
निष्कर्ष:
मन्त्र 8 यह सिखाता है कि ब्रह्म को कानों से नहीं सुना जा सकता, लेकिन वही कानों को सुनने की शक्ति देता है। इसे जानने के लिए आत्मज्ञान और ध्यान आवश्यक है।
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