मन्त्र 8 (ईशावास्य उपनिषद) मूल पाठ स पर्यगाच्छुक्रमकायमव्रणमस्नाविरं शुद्धमपापविद्धम्। कविर्मनीषी परिभूः स्वयम्भूर्यथातथ्यतोऽर्थान् व्यदधाच्छाश्वतीभ्य
मन्त्र 8 (ईशावास्य उपनिषद) |
मन्त्र 8 (ईशावास्य उपनिषद)
मूल पाठ
शब्दार्थ
- स: वह (परमात्मा)।
- पर्यगात्: सब ओर व्याप्त है।
- शुक्रम्: पवित्र, दिव्य प्रकाश।
- अकायम्: निराकार।
- अव्रणम्: बिना दोष के।
- अस्नाविरम्: बिना मांसपेशियों के (भौतिक शरीर के बिना)।
- शुद्धम्: पवित्र।
- अपापविद्धम्: पाप से अछूता।
- कविः: सर्वज्ञ।
- मनीषी: सर्वव्यापी बुद्धिमान।
- परिभूः: सब कुछ पर विजय पाने वाला।
- स्वयम्भूः: स्वयंभू (स्वतः प्रकट)।
- यथातथ्यतः: सत्य के अनुसार।
- अर्थान् व्यदधात्: सभी वस्तुओं को व्यवस्थित किया।
- शाश्वतीभ्यः समाभ्यः: शाश्वत नियमों और कालचक्रों के अनुसार।
अनुवाद
वह परमात्मा सर्वत्र व्याप्त है, पवित्र है, निराकार है, बिना दोष के है, बिना मांसपेशियों और अंगों के है। वह शुद्ध और पाप से रहित है। वह सर्वज्ञ, सर्वबुद्धिमान, और सब कुछ पर अधिकार रखने वाला है। वह स्वयंभू है और उसने सभी वस्तुओं को शाश्वत सत्य और नियमों के अनुसार व्यवस्थित किया है।
व्याख्या
यह मन्त्र परमात्मा के गुणों और उसकी सार्वभौमिकता का गहन वर्णन करता है।
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परमात्मा की सर्वव्यापकता:परमात्मा केवल एक स्थान तक सीमित नहीं है। वह सब ओर व्याप्त है और सबकुछ में मौजूद है।
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निराकार और दोषरहित:परमात्मा का कोई भौतिक शरीर नहीं है, इसलिए वह दोषरहित, पवित्र और शुद्ध है। वह न तो जन्म लेता है और न ही मृत्यु का सामना करता है।
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पाप से परे:परमात्मा किसी भी प्रकार के पाप से अछूता है। वह पूर्ण शुद्धता और दिव्यता का प्रतीक है।
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सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान:वह सर्वज्ञ (सबकुछ जानने वाला) और मनीषी (सर्वश्रेष्ठ बुद्धिमान) है। वह सृष्टि के सभी रहस्यों को जानता है और हर वस्तु को नियंत्रित करता है।
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स्वयम्भू:वह स्वयंभू है, अर्थात वह किसी के द्वारा बनाया नहीं गया। वह स्वभाव से ही अस्तित्व में है।
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सृष्टि की व्यवस्था:परमात्मा ने सृष्टि को शाश्वत नियमों (प्राकृतिक और आध्यात्मिक नियमों) के अनुसार व्यवस्थित किया है। हर वस्तु और हर घटना उसकी बुद्धिमत्ता और योजना का परिणाम है।
आध्यात्मिक संदेश
- परमात्मा की दिव्यता: इस मन्त्र में परमात्मा को अद्वितीय, शुद्ध और सर्वव्यापक बताया गया है।
- सृष्टि का संचालन: यह सिखाता है कि सृष्टि की हर गतिविधि, हर नियम, और हर तत्व परमात्मा के नियंत्रण में है।
- निर्दोषता और पूर्णता: परमात्मा हर प्रकार के दोष, अशुद्धि और पाप से मुक्त है।
आधुनिक संदर्भ में उपयोग
- यह मन्त्र हमें यह सिखाता है कि सृष्टि की हर गतिविधि के पीछे दिव्य योजना और नियम काम कर रहे हैं।
- हमें जीवन में शुद्धता और दोषरहितता के लिए प्रयास करना चाहिए।
- परमात्मा की सर्वव्यापकता को पहचानकर हमें समर्पण और आस्था के साथ जीना चाहिए।
विशेष बात
यह मन्त्र परमात्मा की सार्वभौमिक सत्ता और उसके गहन गुणों का वर्णन करता है। यह हमें प्रेरित करता है कि हम अपनी आत्मा को शुद्ध करें और सृष्टि की दिव्यता को पहचानें।
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