नृसिंह अवतार की कथा, भागवत पुराण, सप्तम स्कंध, अध्याय 8

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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नृसिंह अवतार की कथा, भागवत पुराण, सप्तम स्कंध, अध्याय 8
नृसिंह अवतार की कथा, भागवत पुराण, सप्तम स्कंध, अध्याय 8


 नृसिंह अवतार की कथा भागवत पुराण के सप्तम स्कंध, अध्याय 8 में विस्तार से वर्णित है। यह कथा भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद की रक्षा और अधर्मी हिरण्यकशिपु के वध के लिए भगवान के नरसिंह रूप में अवतार लेने की है। यह कथा भगवान की दया, भक्त की रक्षा और धर्म की स्थापना का प्रतीक है।

हिरण्यकशिपु का तप और वरदान

हिरण्यकशिपु, असुरराज और हिरण्याक्ष का भाई था। अपने भाई के वध का बदला लेने के लिए, उसने ब्रह्माजी की तपस्या की और अमरत्व जैसा वरदान मांगा। ब्रह्माजी ने उसे यह वरदान दिया:

1. न वह दिन में मरेगा, न रात में।

2. न उसे कोई मनुष्य, देवता, या पशु मार सकेगा।

3. न वह किसी शस्त्र से मरेगा।

4. न वह आकाश, पृथ्वी, या जल में मरेगा।

श्लोक:

नाहं प्रेतः न देवानां न मनुष्यादयः परः।

नास्त्रं न शस्त्रं न दिवं न भूमौ।।

(भागवत पुराण 7.3.38)

हिरण्यकशिपु का अधर्म और प्रह्लाद की भक्ति

वरदान प्राप्त करने के बाद, हिरण्यकशिपु ने खुद को भगवान मान लिया और विष्णु की उपासना करने वालों को दंडित करना शुरू कर दिया। लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था।

प्रह्लाद की भक्ति

प्रह्लाद ने बचपन से ही विष्णु भक्ति को अपना धर्म बना लिया। उसने अपने पिता को बताया कि भगवान विष्णु सर्वत्र हैं। यह सुनकर हिरण्यकशिपु ने उसे मारने के अनेक प्रयास किए, लेकिन हर बार भगवान विष्णु ने प्रह्लाद की रक्षा की।

श्लोक:

श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्।

अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम्।।

(भागवत पुराण 7.5.23)

भावार्थ:

प्रह्लाद ने कहा, "भगवान विष्णु की भक्ति के नौ अंग हैं: श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, अर्चन, वंदन, दास्य, सख्य, और आत्मनिवेदन।"

हिरण्यकशिपु का क्रोध और भगवान नृसिंह का प्रकट होना

  • एक दिन हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद से पूछा, "क्या तुम्हारा भगवान हर जगह है?"
  • प्रह्लाद ने उत्तर दिया, "हाँ, भगवान सर्वत्र हैं।"
  • हिरण्यकशिपु ने क्रोधित होकर पूछा, "क्या वह इस स्तंभ में भी है?"
  • प्रह्लाद ने उत्तर दिया, "हाँ।"
  • हिरण्यकशिपु ने क्रोध में स्तंभ को तोड़ दिया। तभी स्तंभ से भगवान नृसिंह प्रकट हुए। यह भगवान का एक अद्भुत रूप था: आधा मनुष्य और आधा सिंह।

श्लोक:
सत्यं विधातुं निजभृत्यभाषितं।
व्याप्तिं च भूतेष्वखिलेषु चात्मनः।
अदृष्ट रूपं उदितः तथाऽव्ययं।
स्तंभे सभायां न मृगं न मानुषम्।।
(भागवत पुराण 7.8.17)

भावार्थ:

भगवान ने प्रह्लाद के वचनों को सत्य सिद्ध करने के लिए स्तंभ से प्रकट होकर हिरण्यकशिपु का वध करने का निश्चय किया।

हिरण्यकशिपु का वध

भगवान नृसिंह ने हिरण्यकशिपु को संध्या के समय, अपने घुटनों पर रखकर, नखों से मार डाला। यह ब्रह्मा के वरदान की शर्तों के अनुसार था:

  • न वह दिन था, न रात (संध्या का समय)।
  • न वह आकाश था, न पृथ्वी (भगवान ने अपनी जांघ पर रखकर मारा)।
  • न वह मनुष्य था, न पशु (अर्ध-मनुष्य, अर्ध-सिंह)।
  • न किसी शस्त्र का उपयोग हुआ (नखों से मारा गया)।

श्लोक:

नाहं मनुष्यं न च देवराक्षसं।

नास्त्रं न शस्त्रं न च जल भुवौ।

सायं प्रभाते न च वक्त्रनासिकं।

ततोऽसुरं नाकपृष्ठेऽधिशायये।।

(भागवत पुराण 7.8.34)

प्रह्लाद की रक्षा और भगवान की कृपा

हिरण्यकशिपु के वध के बाद, भगवान नृसिंह ने प्रह्लाद को दर्शन दिए। प्रह्लाद ने भगवान से कोई भौतिक वरदान नहीं मांगा, बल्कि केवल उनकी भक्ति की याचना की।

श्लोक:

न नाकपृष्ठं न च पारमेष्ठ्यं।

न सार्वभौमं न रसाधिपत्यम्।

न योगसिद्धीरपुनर्भवं वा।

स्वयंवरं वा विरहय्य काङ्क्षे।।

(भागवत पुराण 7.9.25)

भावार्थ:

प्रह्लाद ने कहा, "हे भगवान! मुझे स्वर्ग, योगसिद्धि, या मोक्ष कुछ नहीं चाहिए। मैं केवल आपकी भक्ति चाहता हूँ।"

कथा का संदेश

1. भगवान की सर्वव्यापकता:

भगवान हर स्थान पर उपस्थित हैं। उनका स्मरण और भक्ति किसी भी परिस्थिति में उन्हें हमारे पास ले आती है।

2. भक्त की रक्षा:

भगवान अपने भक्तों की रक्षा के लिए हर नियम और परिस्थिति को बदल सकते हैं।

3. अधर्म का नाश:

अधर्म और अहंकार का अंत सुनिश्चित है, चाहे वह कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो।

4. भक्ति का महत्व:

प्रह्लाद की भक्ति यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति में उम्र, जाति, या परिस्थिति का कोई बंधन नहीं है।

निष्कर्ष

नृसिंह अवतार की कथा यह सिखाती है कि भगवान अपने भक्तों की रक्षा के लिए किसी भी रूप में प्रकट हो सकते हैं। प्रह्लाद का अटूट विश्वास और भगवान नृसिंह का प्राकट्य यह दर्शाता है कि सच्चा धर्म और भक्ति हमेशा विजयी होते हैं। यह कथा भक्ति, समर्पण, और भगवान की दया का अनुपम उदाहरण है।

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