मूल पाठ यस्मिन्सर्वाणि भूतान्यात्मैवाभूद्विजानतः। तत्र को मोहः कः शोक एकत्वमनुपश्यतः।
मन्त्र 7 (ईशावास्य उपनिषद) |
मन्त्र 7 (ईशावास्य उपनिषद)
मूल पाठ
शब्दार्थ
- यस्मिन: जिसमें (परमात्मा में)।
- सर्वाणि भूतानि: सभी प्राणी।
- आत्मा एव अभूत्: आत्मा ही बन गए।
- विजानतः: जो इसे जानता है।
- तत्र: वहाँ।
- कः मोहः: कौन सा भ्रम।
- कः शोकः: कौन सा शोक।
- एकत्वम्: एकता (अद्वैत)।
- अनुपश्यतः: जो इसे देखता है।
अनुवाद
जिस व्यक्ति ने यह जान लिया कि सभी प्राणी उसी एक आत्मा के रूप हैं और वह आत्मा ही सबमें व्याप्त है, उस व्यक्ति के लिए न तो कोई मोह है और न ही कोई शोक।
व्याख्या
यह मन्त्र आत्मा और परमात्मा की एकता का अनुभव करने वाले व्यक्ति के मनोभाव और स्थिति को दर्शाता है।
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सर्वभूतात्मभाव:वह व्यक्ति जिसने यह समझ लिया कि सभी प्राणी उसी आत्मा का विस्तार हैं, वह जानता है कि कोई भिन्नता नहीं है। सभी में एक ही चेतना है।
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मोह और शोक का अंत:
- मोह: अज्ञान का परिणाम है। जब व्यक्ति समझता है कि संसार की वस्तुएं और प्राणी अलग-अलग हैं, तो वह मोह में फंसता है।
- शोक: मोह से उत्पन्न होता है। जब कोई व्यक्ति किसी वस्तु या व्यक्ति को खो देता है, तो उसे शोक होता है।
अद्वैत ज्ञान से व्यक्ति समझता है कि आत्मा नष्ट नहीं होती और सबकुछ एक ही है। इससे मोह और शोक का अंत हो जाता है।
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अद्वैत का अनुभव:"एकत्वमनुपश्यतः" का अर्थ है एकत्व (अद्वैत) को प्रत्यक्ष रूप से अनुभव करना। यह व्यक्ति के भीतर शांति और समरसता लाता है।
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जीवन में स्थिरता:जो व्यक्ति इस ज्ञान को प्राप्त करता है, वह जीवन की कठिनाइयों और अस्थिरताओं से प्रभावित नहीं होता। वह हर परिस्थिति में स्थिर और शांत रहता है।
आध्यात्मिक संदेश
- सभी में एकता का भाव: संसार की भिन्नताओं के पीछे एकता को देखना ही सच्चा ज्ञान है।
- मोह और शोक से मुक्ति: जब व्यक्ति आत्मा की अमरता और सार्वभौमिकता को समझता है, तो वह मोह और शोक से मुक्त हो जाता है।
- आत्मा और परमात्मा की एकता: यह मन्त्र सिखाता है कि आत्मा और परमात्मा अलग नहीं हैं। यह अद्वैत वेदांत का मूल सिद्धांत है।
आधुनिक संदर्भ में उपयोग
- यह मन्त्र हमें सिखाता है कि भौतिक भिन्नताओं से ऊपर उठकर सभी को समान दृष्टि से देखना चाहिए।
- संसार के दुखों और मोह से मुक्ति पाने के लिए हमें आत्मा की सच्चाई और उसकी सर्वव्यापकता को समझना चाहिए।
- जीवन की चुनौतियों में स्थिरता और शांति बनाए रखने के लिए आत्मज्ञान आवश्यक है।
विशेष बात
यह मन्त्र आत्मा और परमात्मा की अद्वितीय एकता को समझने का मार्गदर्शन करता है। यह मोह और शोक जैसे मानसिक बंधनों से मुक्त होकर जीवन को दिव्यता और शांति से जीने की प्रेरणा देता है।
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