मूल पाठ यस्तु सर्वाणि भूतान्यात्मन्येवानुपश्यति। सर्वभूतेषु चात्मानं ततो न विजुगुप्सते।
मन्त्र 6 (ईशावास्य उपनिषद) |
मन्त्र 6 (ईशावास्य उपनिषद)
मूल पाठ
यस्तु सर्वाणि भूतान्यात्मन्येवानुपश्यति।
सर्वभूतेषु चात्मानं ततो न विजुगुप्सते।
शब्दार्थ
- यः: जो व्यक्ति।
- तु: लेकिन।
- सर्वाणि भूतानि: सभी प्राणी (सजीव और निर्जीव)।
- आत्मनि: आत्मा में।
- एव: ही।
- अनुपश्यति: देखता है या अनुभव करता है।
- सर्वभूतेषु: सभी प्राणियों में।
- च: और।
- आत्मानम्: आत्मा (स्वयं को)।
- ततः: तब।
- न विजुगुप्सते: घृणा नहीं करता।
अनुवाद
जो व्यक्ति सभी प्राणियों को अपने आत्मा में देखता है और अपने आत्मा को सभी प्राणियों में देखता है, वह किसी से भी घृणा नहीं करता।
व्याख्या
यह मन्त्र अद्वैत वेदांत के मूल सिद्धांत का वर्णन करता है।
-
आत्मा की सार्वभौमिकता:यह मन्त्र कहता है कि आत्मा केवल व्यक्तिगत सत्ता तक सीमित नहीं है। आत्मा सर्वव्यापक है और हर प्राणी में निवास करती है।
-
सर्वभूतात्मभाव:जो व्यक्ति यह अनुभव करता है कि सभी प्राणी उसी एक आत्मा के विभिन्न रूप हैं, वह द्वेष, घृणा, और भेदभाव से ऊपर उठ जाता है।
-
आत्मा और ब्रह्म की एकता:जब व्यक्ति यह समझ लेता है कि आत्मा और परमात्मा अलग नहीं हैं, तो उसके भीतर दूसरों के प्रति कोई असुरक्षा या द्वेष नहीं रहता।
-
व्यवहारिक शिक्षा:सभी प्राणियों में आत्मा के समान अनुभव से व्यक्ति करुणा, प्रेम और सहिष्णुता के साथ व्यवहार करता है। यह आचरण समाज और व्यक्तिगत जीवन में शांति और समृद्धि लाता है।
आध्यात्मिक संदेश
- अद्वैत दृष्टिकोण: आत्मा और परमात्मा की एकता का अनुभव ही मोक्ष का मार्ग है।
- समानता का भाव: सभी में एक ही आत्मा को देखने से व्यक्ति किसी से द्वेष नहीं करता।
- संसार का संबंध: हर प्राणी और वस्तु में एक ही चेतना व्याप्त है, इसलिए सभी का सम्मान करना चाहिए।
आधुनिक संदर्भ में उपयोग
- यह मन्त्र सिखाता है कि हमें जाति, धर्म, रंग, और भौतिक स्थिति के भेदभाव से ऊपर उठकर सभी को समान दृष्टि से देखना चाहिए।
- आत्मा को पहचानने वाला व्यक्ति किसी भी प्रकार के वैमनस्य, हिंसा, और असमानता में विश्वास नहीं करता।
विशेष बात
यह मन्त्र करुणा, प्रेम, और सार्वभौमिक भाईचारे का सिद्धांत प्रस्तुत करता है। यह जीवन के हर पहलू में आध्यात्मिकता लाने का मार्गदर्शन करता है।
COMMENTS