यह चित्र महाराज युवनाश्व को यज्ञ का जल पीते हुए दर्शाता है, जिसमें यज्ञशाला की दिव्यता और वातावरण को भी सम्मिलित किया गया है। |
महाराज युवनाश्व की कथा भागवत पुराण के नौवें स्कंध, अध्याय 6-7 में वर्णित है। यह कथा उनकी तपस्या, संतान प्राप्ति के अनूठे तरीके, और उनके पुत्र मंधाता के चक्रवर्ती सम्राट बनने की है। यह कथा यह सिखाती है कि भगवान की कृपा और धर्मपालन से असंभव भी संभव हो सकता है।
युवनाश्व का परिचय
- युवनाश्व एक धर्मनिष्ठ और प्रजापालक राजा थे।
- वे इक्ष्वाकु वंश के महान राजाओं में से एक थे।
- उन्होंने अपनी प्रजा के कल्याण के लिए कठिन परिश्रम किया, लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी।
श्लोक:
युवनाश्व इक्ष्वाकुवंशजो धर्मनिष्ठः प्रजापालकः।
अपुत्रः सन्न्यपि तपो धर्मेण वर्ततेऽन्वहम्।।
(भागवत पुराण 9.6.18)
भावार्थ:
युवनाश्व धर्मनिष्ठ और प्रजापालक राजा थे, लेकिन संतानहीन होने के कारण वे दुखी थे।
संतान प्राप्ति के लिए तपस्या
- युवनाश्व ने पुत्र प्राप्ति के लिए वन में जाकर तपस्या की।
- उन्होंने कई ऋषि-मुनियों से परामर्श लिया और उनके मार्गदर्शन में यज्ञ करना शुरू किया।
- यज्ञ के लिए ऋषियों ने एक विशेष जल पात्र तैयार किया, जिसे प्रसाद रूप में ग्रहण करने से उन्हें पुत्र प्राप्ति हो सकती थी।
युवनाश्व द्वारा यज्ञ जल का पीना
- यज्ञ की रात, राजा युवनाश्व को प्यास लगी।
- उन्होंने अज्ञानवश ऋषियों द्वारा तैयार यज्ञ का जल पी लिया, जो उनकी पत्नी के लिए संतान प्राप्ति हेतु था।
- ऋषियों ने जब यह देखा, तो वे चिंतित हो गए, लेकिन यह भगवान की लीला थी।
श्लोक:
काचित्पिपासां प्रहरन्यज्ञगृहं विवेश सः।
जलं तदगृह्णात्सुचिरं यदर्थं देवसन्निधौ।।
(भागवत पुराण 9.6.22)
भावार्थ:
राजा युवनाश्व ने प्यास के कारण यज्ञ का जल पी लिया, जो उनकी पत्नी के लिए संतान उत्पन्न करने के लिए था।
मान्धाता का जन्म
- जल पीने के कारण राजा युवनाश्व के गर्भ से एक पुत्र उत्पन्न हुआ।
- यह चमत्कारिक घटना देखकर ऋषि और देवता अचंभित रह गए।
- भगवान इंद्र ने बालक को आशीर्वाद दिया और कहा, "मां धाता," जिसका अर्थ है, "यह मेरी देखभाल करेगा।" इसी से उसका नाम मान्धाता पड़ा।
श्लोक:
इन्द्र उवाच-
मम पाययिता माता मां धाता त्वं च पालय।
इत्युक्तः स च बालस्ते मान्धाता लोकविश्रुतः।।
(भागवत पुराण 9.6.24)
भावार्थ:
इंद्र ने बालक को आशीर्वाद दिया और कहा कि वह स्वयं उसकी रक्षा करेगा। बालक का नाम मान्धाता पड़ा।
मान्धाता का राज्याभिषेक
- युवनाश्व ने मान्धाता को राज्य का उत्तराधिकारी बनाया।
- मान्धाता ने धर्म, सत्य, और न्याय से राज्य किया।
- वह एक चक्रवर्ती सम्राट बने और तीनों लोकों पर विजय प्राप्त की।
श्लोक:
त्रैलोक्यं विजयेनाजौ धर्मेण च समर्पितम्।
मान्धाता इति ख्यातो राजा चक्रेण चक्रमान्।।
(भागवत पुराण 9.7.6)
भावार्थ:
मान्धाता ने धर्म और विजय से तीनों लोकों पर शासन किया और चक्रवर्ती सम्राट बने।
युवनाश्व का अंत
- राजा युवनाश्व ने अंत में राजपद छोड़कर वन में तपस्या की।
- वे भगवान की भक्ति में लीन हो गए और अपना जीवन मोक्ष की प्राप्ति के लिए समर्पित कर दिया।
श्लोक:
ततः स राजा धर्मिष्ठो वनं गत्वा तपस्तपेत्।
मुक्तिं प्राप्य गतो विष्णुं सर्वलोकाधिपं प्रभुम्।।
(भागवत पुराण 9.7.11)
भावार्थ:
राजा युवनाश्व ने तपस्या करके मोक्ष प्राप्त किया और भगवान विष्णु के परमधाम को प्राप्त हुए।
मान्धाता के योगदान
1. धर्मपरायण शासन:
मान्धाता ने सत्य और धर्म का पालन करते हुए आदर्श राज्य स्थापित किया।
2. त्रैलोक्य विजय:
मान्धाता ने तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर अपने पराक्रम का परिचय दिया।
3. वेद और धर्म का संरक्षण:
उन्होंने वेदों और धर्मग्रंथों का संरक्षण किया और प्रजा को धार्मिक जीवन की प्रेरणा दी।
कथा का संदेश
1. भगवान की लीला:
भगवान अपनी कृपा से असंभव को संभव बना सकते हैं।
2. धर्म का पालन:
युवनाश्व और मान्धाता दोनों ने धर्म और सत्य का पालन कर आदर्श प्रस्तुत किया।
3. प्रजा का कल्याण:
राजा का मुख्य कर्तव्य प्रजा का कल्याण और धर्म की रक्षा करना है।
4. भगवान की शरण:
कठिन परिस्थितियों में भगवान की शरण लेने से जीवन का मार्ग प्रशस्त होता है।
निष्कर्ष
महाराज युवनाश्व की कथा धर्म, भक्ति, और भगवान की कृपा का अद्भुत उदाहरण है। उनके पुत्र मान्धाता ने सूर्यवंश की महिमा को और ऊँचाई दी। यह कथा हमें सिखाती है कि सच्चे धर्मपालन और भगवान की भक्ति से असंभव कार्य भी सफल हो सकते हैं।
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