रुक्मिणी विवाह श्रीमद्भागवत महापुराण के दशम स्कंध (अध्याय 52-54)

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रुक्मिणी विवाह श्रीमद्भागवत महापुराण के दशम स्कंध (अध्याय 52-54), रुक्मिणी का श्रीकृष्ण को पत्र भेजना, रुक्मिणी की योजना, श्रीकृष्ण का विदर्भ गमन,

यह चित्र भगवान कृष्ण और रुक्मिणी के विवाह का एक जीवंत और भव्य दृश्य प्रस्तुत करता है। आप इसे और अधिक विस्तार से देख सकते हैं।
यह चित्र भगवान कृष्ण और रुक्मिणी के विवाह का एक
जीवंत और भव्य दृश्य प्रस्तुत करता है। 


 रुक्मिणी विवाह श्रीमद्भागवत महापुराण के दशम स्कंध (अध्याय 52-54) में वर्णित है। यह भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं में से एक महत्वपूर्ण प्रसंग है। यह विवाह भक्ति, प्रेम, और साहस का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करता है। रुक्मिणी विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री थीं, जो श्रीकृष्ण को मन, वचन, और कर्म से अपना पति मान चुकी थीं। हालांकि, उनके भाई रुक्मी ने उनका विवाह शिशुपाल से तय कर दिया था।

कथा का विस्तार:

1. रुक्मिणी का श्रीकृष्ण को पत्र भेजना:

रुक्मिणी ने भगवान श्रीकृष्ण की कीर्ति और लीलाओं को सुनकर उन्हें अपना पति मान लिया था। लेकिन उनके भाई रुक्मी शिशुपाल के साथ विवाह करने के लिए दबाव डाल रहे थे। रुक्मिणी ने श्रीकृष्ण को एक पत्र भेजा जिसमें अपनी भक्ति और प्रेम व्यक्त किया और उनसे मदद मांगी।

श्लोक:

श्रुत्वा गुणान् भुवनसुन्दर शृण्वतां ते

निर्विश्य कर्णविवरैः हरतोऽङ्गतापम्।

रूपं दृशां दृशिमतां अखिलार्थलाभं

त्वय्यच्युताविशति चित्तमतापहं मे॥

(श्रीमद्भागवत 10.52.37)

अर्थ: "हे श्रीकृष्ण! आपकी लीलाओं और गुणों को सुनकर मेरा हृदय आपकी ओर आकर्षित हो गया है। आपका रूप सभी सुखों का स्रोत है, और आप ही मेरे जीवन के परम लक्ष्य हैं।"

2. रुक्मिणी की योजना:

रुक्मिणी ने श्रीकृष्ण को पत्र में योजना बताई कि वे उसे अंबिका मंदिर से ले जा सकते हैं, जहां वह पूजा के लिए जाएगी।

श्लोक:

यद्यद्यं गतिमपवर्ग्य निर्गुणस्य

त्वं वै पुरुषः भगवन्नजशब्दितस्य।

प्रीत्यर्हणं न च भजन्ति नृणां भवाय

ह्यात्मानमात्मनि जगद्विलयाय नाथ॥

(श्रीमद्भागवत 10.52.41)

अर्थ: रुक्मिणी ने कहा, "हे भगवन! आप अविनाशी हैं। यदि आप मेरे प्रति करुणा करें, तो मुझे इस विवाह से बचाकर ले जाएं।"

3. श्रीकृष्ण का विदर्भ गमन:

श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी का पत्र पढ़ा और तुरंत विदर्भ जाने का निश्चय किया। उन्होंने रथ पर सवार होकर विदर्भ की ओर प्रस्थान किया।

श्लोक:

तस्यास्तदाकर्ण्य चकार कृष्णो

मनोऽभिलाषं यदनन्यवृत्तेः।

त्यक्त्वा सभा मान्यमदं च सैन्यैः

प्रयाय यत्राऽकिललोकनाथः॥

(श्रीमद्भागवत 10.53.1)

अर्थ: भगवान श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी का संदेश सुनकर तुरंत विदर्भ जाने का निर्णय लिया और अपनी सेना के साथ वहां पहुंचे।

4. रुक्मिणी का मंदिर में पूजा के लिए जाना:

रुक्मिणी अपनी योजना के अनुसार माता अंबिका (पार्वती) के मंदिर में पूजा करने गईं। वह अत्यंत सुंदर वस्त्र और आभूषणों से सजी हुई थीं।

श्लोक:

सा व्रज्य भद्रं जनकानुशिष्टं

वध्वा नृपाणामभिवीक्षितां तदा।

जगाम किञ्चिद् भृशमन्दगत्या

नारायणं चित्तमथैकमज्ञे॥

(श्रीमद्भागवत 10.53.21)

अर्थ: रुक्मिणी पार्वती के मंदिर गईं, लेकिन उनका मन केवल भगवान श्रीकृष्ण में लगा हुआ था।

5. श्रीकृष्ण द्वारा रुक्मिणी का हरण:

रुक्मिणी ने श्रीकृष्ण को मंदिर के बाहर इंतजार करते देखा। जैसे ही रुक्मिणी मंदिर से बाहर आईं, श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी को अपने रथ में बैठा लिया और तेजी से वहां से निकल गए।

श्लोक:

तामग्रतो धावमाना बलस्य

प्रयान्तमारुह्य रथं सहेन्द्रयुः।

आदाय कंचित्क्षणमारुरोह

चक्रायुधः स च तदनुगच्छत्॥

(श्रीमद्भागवत 10.53.53) 

अर्थ: भगवान श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी को अपने रथ पर बैठाया और अपनी सेना के साथ विदर्भ से प्रस्थान किया।

6. रुक्मी का विरोध और पराजय:

रुक्मिणी के भाई रुक्मी ने अपनी सेना के साथ श्रीकृष्ण का पीछा किया। लेकिन युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण ने रुक्मी को पराजित कर दिया।

श्लोक:

स वृत्रजित्प्रत्ययतोऽतिवेगं

सैन्यं स्वकं निर्ययावग्र्यवीर्यः।

संपेदिवान् युद्धमद्भुतं तदा

रुक्मिणं हरिर्वधमर्हयन्मनुः॥

(श्रीमद्भागवत 10.54.13)

अर्थ: रुक्मी ने श्रीकृष्ण पर आक्रमण किया, लेकिन श्रीकृष्ण ने उसे पराजित कर दिया और रुक्मी का घमंड चूर-चूर कर दिया।

7. द्वारका में विवाह:

श्रीकृष्ण रुक्मिणी को लेकर द्वारका पहुंचे, जहां उन्होंने विधिपूर्वक रुक्मिणी से विवाह किया। द्वारका नगरी में इस विवाह का भव्य उत्सव मनाया गया।

 श्लोक:

ततो द्वारवतीं गत्वा महेंद्रेणाभिषेचिताः।

चक्रुर्विधिवत्सर्वे यथान्यायं महोत्सवम्॥

(श्रीमद्भागवत 10.54.42)

अर्थ: द्वारका में भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी का विवाह अत्यंत विधिपूर्वक और हर्षोल्लास के साथ संपन्न हुआ।

महत्व और संदेश:

1. भक्ति और प्रेम की विजय: रुक्मिणी ने अपने प्रेम और भक्ति से यह सिद्ध किया कि भगवान केवल सच्चे हृदय से पुकारने पर अवश्य आते हैं।

2. अधर्म पर धर्म की विजय: रुक्मी और शिशुपाल जैसे अधर्मियों का पराजय यह दिखाता है कि भगवान धर्म की स्थापना के लिए सदा तत्पर रहते हैं।

3. श्रीकृष्ण का आदर्श: श्रीकृष्ण ने यह विवाह कर यह संदेश दिया कि सच्चा प्रेम और निष्ठा हर बाधा को पार कर सकता है।

4. साहस और करुणा: भगवान ने रुक्मिणी की प्रार्थना सुनकर उसे शिशुपाल के विवाह से बचाया और उसे सम्मान प्रदान किया।

निष्कर्ष:

रुक्मिणी विवाह भगवान श्रीकृष्ण की लीला का एक अद्भुत उदाहरण है, जिसमें प्रेम, भक्ति, और साहस का समन्वय है। यह कथा हमें सिखाती है कि भगवान अपने भक्तों की रक्षा के लिए किसी भी प्रकार की बाधा को पार कर सकते हैं। रुक्मिणी विवाह भक्ति मार्ग में प्रेम और समर्पण का आदर्श प्रस्तुत करता है।

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भागवत दर्शन: रुक्मिणी विवाह श्रीमद्भागवत महापुराण के दशम स्कंध (अध्याय 52-54)
रुक्मिणी विवाह श्रीमद्भागवत महापुराण के दशम स्कंध (अध्याय 52-54)
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