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समुद्र मंथन की कथा, भागवत पुराण, अष्टम स्कंध, अध्याय 5-12

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समुद्र मंथन की कथा, भागवत पुराण, अष्टम स्कंध, अध्याय 5-12, कथा की पृष्ठभूमि, भगवान विष्णु की सलाह, समुद्र मंथन की तैयारी,समुद्र मंथन से उत्पन्न पदार्थ

 

Samudra manthan: A beautiful image
Samudra manthan: A beautiful image

समुद्र मंथन का प्राकृतिक चित्र
समुद्र मंथन का प्राकृतिक चित्र

समुद्र मंथन की कथा भागवत पुराण के अष्टम स्कंध, अध्याय 5-12 में विस्तारपूर्वक वर्णित है। यह कथा देवताओं और असुरों के बीच अमृत प्राप्त करने के लिए हुए समुद्र मंथन की है। यह कथा सिखाती है कि भगवान विष्णु की कृपा से असंभव कार्य भी सफल हो सकते हैं।

कथा की पृष्ठभूमि

देवताओं और असुरों के बीच लगातार युद्ध होते थे। एक बार असुरों ने देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। इंद्र और अन्य देवता अत्यंत दुखी होकर भगवान विष्णु की शरण में गए।

भगवान विष्णु की सलाह

भगवान विष्णु ने देवताओं से कहा कि वे असुरों के साथ मित्रता करें और अमृत पाने के लिए क्षीरसागर (दूध के समुद्र) का मंथन करें। अमृत पीने से वे अमर हो जाएँगे और अपनी शक्ति पुनः प्राप्त कर सकेंगे।

श्लोक:

मन्येऽसुराननुनयेन नृप त्रिलोक्यां।

क्रीडन्निवैष्यति सुरारिभयाद्दिवं स्वम्।

युष्माभिरात्तमनसामनुसंयमेन।

दृष्टं भविष्यति च दीर्घमवश्यमायुः।।

(भागवत पुराण 8.6.16)

भावार्थ:

भगवान विष्णु ने कहा, "देवताओं को असुरों के साथ मित्रता करके समुद्र मंथन करना चाहिए। इससे अमृत की प्राप्ति होगी, जो उन्हें अमरत्व देगा।"

समुद्र मंथन की तैयारी

मंदराचल पर्वत और वासुकी नाग

  • समुद्र मंथन के लिए मंदराचल पर्वत को मथानी और वासुकी नाग को रस्सी के रूप में उपयोग किया गया।
  • देवता और असुर दोनों ने समुद्र मंथन के लिए सहमति दी।
  • भगवान विष्णु ने मंदराचल पर्वत को समुद्र में स्थापित करने के लिए कच्छप अवतार (कछुए का रूप) धारण किया और पर्वत को अपने पीठ पर धारण किया।

श्लोक:

अधितिष्ठन्वपुर्विष्णुस्त्रैलोक्यगुरुरिष्यते।

मन्दरं वासुकिं नागं समुद्रं च समीययुः।।

(भागवत पुराण 8.7.10)

भावार्थ:

भगवान विष्णु ने मंदराचल पर्वत को स्थिर करने के लिए कच्छप रूप धारण किया, जिससे मंथन संभव हो सका।

समुद्र मंथन से उत्पन्न पदार्थ

समुद्र मंथन से अनेक अद्भुत रत्न और वस्तुएँ उत्पन्न हुईं। उनका क्रम और उपयोग इस प्रकार है:

1. कालकूट विष (हलाहल)

  • सबसे पहले समुद्र मंथन से अत्यंत घातक विष "कालकूट" उत्पन्न हुआ। इस विष के प्रभाव से तीनों लोकों में भय फैल गया।
  • सभी देवता भगवान शिव की शरण में गए।
  • शिव ने इस विष को पी लिया और अपने कंठ में धारण कर लिया, जिससे उनका कंठ नीला हो गया। इसी कारण वे नीलकंठ कहलाए।

श्लोक:

अथ कालकूटं दहनं समुद्रादुदतिष्ठत।

त्रैलोक्यभूतानां शङ्करः कृपया पपौ।।

(भागवत पुराण 8.7.44)

भावार्थ:

भगवान शिव ने अपने करुणा भाव से तीनों लोकों की रक्षा के लिए विष का पान किया।

2. कामधेनु (गाय)

  • मंथन से कामधेनु (इच्छा पूरी करने वाली गाय) उत्पन्न हुई।
  • इसे ऋषियों ने प्राप्त किया।

3. उच्चैःश्रवा अश्व (घोड़ा)

यह दिव्य घोड़ा था, जिसे असुरों ने ग्रहण किया।

4. ऐरावत हाथी

यह चार दाँतों वाला दिव्य हाथी था, जिसे इंद्र ने प्राप्त किया।

5. कौस्तुभ मणि

यह दिव्य मणि भगवान विष्णु ने धारण की।

6. कल्पवृक्ष

यह वृक्ष सभी इच्छाओं को पूरा करने वाला था।

7. अप्सराएँ

सुंदर अप्सराएँ उत्पन्न हुईं, जो स्वर्ग लोक में चली गईं।

8. श्री लक्ष्मी

  • माता लक्ष्मी प्रकट हुईं और उन्होंने भगवान विष्णु को वरमाला पहनाई।
  • लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु के चरणों में स्थान लिया।

श्लोक:

ततश्च लक्ष्मीः भगवान्प्रपन्नाः।

ववन्द वैकुण्ठपदं प्रपन्नाः।।

(भागवत पुराण 8.8.9)

भावार्थ:

माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को अपने पति के रूप में स्वीकार किया।

9. वरुण का रत्न

वरुण देव को दिव्य मदिरा प्राप्त हुई।

10. धन्वंतरि और अमृत

मंथन के अंत में भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए, जिनके हाथों में अमृत कलश था।

श्लोक:

धन्वन्तरिश्च भगवान्स्वयमेव क्षीरोदधेरुदतिष्ठन्मृतं कलशहस्तः।

अमृतं लोकानां त्रीणां सुदुराशं जनानां।।

(भागवत पुराण 8.8.22)

भावार्थ:

भगवान धन्वंतरि अमृत कलश के साथ प्रकट हुए, जो देवताओं के लिए अमरत्व का कारण बना।

असुरों और देवताओं में संघर्ष

अमृत कलश देखकर असुरों ने उसे छीनने का प्रयास किया। भगवान विष्णु ने असुरों को भ्रमित करने के लिए मोहिनी अवतार धारण किया।

मोहिनी अवतार

भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप में असुरों को आकर्षित किया और अमृत को देवताओं में वितरित कर दिया।

श्लोक:

मोहमेतं हि मोहिनीं विष्णुरात्मस्वरूपिणीम्।

अमृतं ददौ सुरेभ्यः सौम्यं स्वधाम साध्वसा।।

(भागवत पुराण 8.9.1)

भावार्थ:

मोहिनी रूप में भगवान विष्णु ने अमृत केवल देवताओं को दिया और असुरों को भ्रमित कर दिया।

कथा का संदेश

1. परिश्रम का फल:

समुद्र मंथन यह सिखाता है कि कठिन परिश्रम और धैर्य से असंभव कार्य भी संभव हो सकते हैं।

2. सामूहिक प्रयास:

देवता और असुर दोनों ने मिलकर कार्य किया, जिससे यह शिक्षा मिलती है कि कठिन कार्यों के लिए एकता आवश्यक है।

3. ईश्वर की कृपा:

भगवान विष्णु ने हर परिस्थिति में देवताओं की सहायता की, जिससे यह सिद्ध होता है कि ईश्वर अपने भक्तों की रक्षा अवश्य करते हैं।

4. धैर्य और समर्पण:

जीवन में विष (कष्ट) का सामना करने के बाद ही अमृत (सफलता) प्राप्त होती है।

निष्कर्ष

समुद्र मंथन की कथा भक्ति, परिश्रम, और भगवान की कृपा का प्रतीक है। यह सिखाती है कि जीवन में कठिनाइयों का सामना धैर्य और भगवान पर विश्वास के साथ करना चाहिए। भगवान विष्णु की दिव्य योजना से ही देवताओं को अमृत और विजय प्राप्त हुई।

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भागवत दर्शन: समुद्र मंथन की कथा, भागवत पुराण, अष्टम स्कंध, अध्याय 5-12
समुद्र मंथन की कथा, भागवत पुराण, अष्टम स्कंध, अध्याय 5-12
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