प्रह्लाद की कथा भागवत पुराण के सातवें स्कंध, अध्याय 5-10 में विस्तार से वर्णित है। यह कथा धर्म, भक्ति,और भगवान विष्णु की अनन्य शरणागति का अनुपम उदाहरण
प्रह्लाद की कथा भागवत पुराण के सातवें स्कंध, अध्याय 5-10 में विस्तार से वर्णित है। यह कथा धर्म, भक्ति, और भगवान विष्णु की अनन्य शरणागति का अनुपम उदाहरण है। प्रह्लाद, असुरराज हिरण्यकशिपु के पुत्र थे, लेकिन वे भगवान विष्णु के परम भक्त थे। उनकी कथा यह सिखाती है कि भगवान की भक्ति किसी जाति, परिस्थिति, या उम्र की मोहताज नहीं होती।
हिरण्यकशिपु का तप और वरदान
- हिरण्यकशिपु, हिरण्याक्ष का भाई और असुरों का राजा था। अपने भाई हिरण्याक्ष की भगवान विष्णु द्वारा वध के कारण वह विष्णु का घोर शत्रु बन गया।
- हिरण्यकशिपु ने अमरत्व प्राप्त करने के लिए कठोर तप किया। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उन्हें वरदान दिया कि:
1. वे न दिन में मरेंगे, न रात में।
2. न उन्हें कोई देवता, असुर, मानव या पशु मार सकेगा।
3. न वे किसी शस्त्र से मारे जाएंगे।
4. न वे आकाश, पृथ्वी या जल में मारे जाएंगे।
श्लोक:
नाहं प्रेतः न देवानां न मनुष्यादयः परः।
नास्त्रं न शस्त्रं न दिवं न भूमौ।।
(भागवत पुराण 7.3.38)
भावार्थ:
ब्रह्माजी ने हिरण्यकशिपु को ऐसा वरदान दिया जिससे उसे अमरता का अनुभव हुआ।
प्रह्लाद का जन्म और भगवान विष्णु के प्रति भक्ति
हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद माता कयाधु के गर्भ से उत्पन्न हुआ। जब कयाधु गर्भवती थीं, तब हिरण्यकशिपु भगवान विष्णु से युद्ध करने गया था। उस समय देवताओं ने कयाधु को बंदी बना लिया।
नारद मुनि का उपदेश
नारद मुनि ने कयाधु को भगवान विष्णु की महिमा का उपदेश दिया। गर्भ में रहते हुए प्रह्लाद ने नारद मुनि के उपदेशों को सुना और वह विष्णु का परम भक्त बन गया।
श्लोक:
श्रीनारद उवाच-
धर्मं भगवतं शुद्धं निश्चलं निरहङ्कृतम्।
प्रीत्युत्पन्नं सुतं माता नारायणपरं स्मरेत्।।
(भागवत पुराण 7.4.8)
भावार्थ:
नारद मुनि ने कयाधु को भगवान नारायण की भक्ति का उपदेश दिया, जिसे गर्भ में प्रह्लाद ने आत्मसात किया।
प्रह्लाद की भक्ति और हिरण्यकशिपु का क्रोध
प्रह्लाद बचपन से ही भगवान विष्णु के नाम का जाप करता था। वह अपने सहपाठियों को भी भगवान के गुण सुनाता और भक्ति का मार्ग दिखाता था।
हिरण्यकशिपु द्वारा प्रह्लाद का परीक्षा लेना
हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद से पूछा कि उसे यह ज्ञान किसने दिया है। प्रह्लाद ने उत्तर दिया:
श्लोक:
श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्।
अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम्।।
(भागवत पुराण 7.5.23)
भावार्थ:
"भगवान विष्णु की भक्ति के नौ मार्ग हैं: श्रवण (सुनना), कीर्तन (गाना), स्मरण (स्मरण), पादसेवन (सेवा), अर्चन (पूजा), वंदन (नमन), दास्य (सेवक बनना), सख्य (मित्रता), और आत्मनिवेदन (आत्मसमर्पण)।"
- हिरण्यकशिपु यह सुनकर क्रोधित हो गया और प्रह्लाद को मारने के लिए अनेक प्रयास किए।
प्रह्लाद पर अत्याचार
- हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को मारने के कई प्रयास किए, लेकिन हर बार भगवान विष्णु ने प्रह्लाद की रक्षा की:
1. पहाड़ से गिराना: प्रह्लाद को ऊँचे पहाड़ से गिराया गया, लेकिन भगवान ने उसे बचा लिया।
2. जहरीले साँप: विषैले साँपों को प्रह्लाद को डसने के लिए छोड़ा गया, लेकिन वे कुछ नहीं कर सके।
3. अग्नि में डालना: प्रह्लाद को होलिका (हिरण्यकशिपु की बहन) के साथ अग्नि में बिठाया गया। होलिका जल गई, लेकिन प्रह्लाद सुरक्षित रहा।
श्लोक:
सद्भिरासीद्विशुद्धात्मा त्रैलोक्यस्थेऽपि दुःखिनि।
अपारं यदुपाश्रित्य परं सुखमविन्दत।।
(भागवत पुराण 7.5.45)
भावार्थ:
भगवान विष्णु की शरण में रहने से प्रह्लाद ने तीनों लोकों के कष्टों से परे परम आनंद प्राप्त किया।
हिरण्यकशिपु का वध और भगवान नृसिंह का प्रकट होना
एक दिन हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद से पूछा, "क्या तुम्हारा भगवान हर जगह है?"
प्रह्लाद ने उत्तर दिया, "हाँ, भगवान हर जगह हैं।"
हिरण्यकशिपु ने स्तंभ की ओर इशारा करते हुए पूछा, "क्या वह यहाँ भी है?"
प्रह्लाद ने कहा, "हाँ।"
भगवान नृसिंह का प्रकट होना
हिरण्यकशिपु ने क्रोध में स्तंभ को तोड़ा, और उसी समय भगवान नृसिंह (अर्ध-मनुष्य, अर्ध-सिंह) प्रकट हुए।
श्लोक:
सत्यं विधातुं निजभृत्यभाषितं।
व्याप्तिं च भूतेष्वखिलेषु चात्मनः।
अदृष्ट रूपं उदितः तथाऽव्ययं।
स्तंभे सभायां न मृगं न मानुषम्।।
(भागवत पुराण 7.8.17)
भावार्थ:
भगवान नृसिंह ने अपने भक्त प्रह्लाद के वचनों को सत्य सिद्ध करने के लिए स्तंभ से प्रकट होकर हिरण्यकशिपु का वध किया।
हिरण्यकशिपु का वध
भगवान नृसिंह ने हिरण्यकशिपु को न दिन, न रात, न आकाश, न पृथ्वी पर, और न किसी शस्त्र से मारा। उन्होंने अपने नखों से उसे संध्या के समय अपनी जांघ पर रखकर मारा।
श्लोक:
न खं न भूमिं न नभो विलंबितं।
नायं न मारः स मृगं च साजम्।
यथोपरिष्टान्न ततः प्रमाणं।
चकार तं दैत्यं विभज्य देहम्।।
(भागवत पुराण 7.8.29)
भावार्थ:
भगवान ने हिरण्यकशिपु का वध उन शर्तों के अंतर्गत किया, जो ब्रह्मा जी ने उसे वरदान में दी थीं।
प्रह्लाद को आशीर्वाद
- भगवान नृसिंह ने प्रह्लाद को दर्शन दिए और उनसे वरदान माँगने के लिए कहा।
- प्रह्लाद ने विनम्रता से कहा कि उन्हें भगवान से कोई भौतिक वरदान नहीं चाहिए।
श्लोक:
नाहं कामये राज्यं न स्वर्गं न पुनर्भवम्।
कामये दुःखतप्तानां प्राणिनामार्तिनाशनम्।।
(भागवत पुराण 7.9.45)
भावार्थ:
प्रह्लाद ने कहा, "मुझे न तो राज्य चाहिए, न स्वर्ग, और न मोक्ष। मैं केवल दूसरों के दुःख को दूर करना चाहता हूँ।"
भगवान नृसिंह ने प्रह्लाद को धर्म और भक्ति का प्रचार करने का आशीर्वाद दिया।
कथा का संदेश
1. भक्ति की शक्ति: प्रह्लाद की भक्ति यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति व्यक्ति को हर बाधा से बचा सकती है।
2. धर्म का पालन: भगवान का भक्त सदा धर्म और सत्य का पक्षधर होता है।
3. माया पर विजय: संसार की माया और भौतिक सुखों से ऊपर उठकर भगवान की भक्ति ही सच्चा सुख है
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