मन्त्र 4 (केन उपनिषद) मूल पाठ: अन्यदेव तद्विदितादथो अविदितादधि। इति शुश्रुम पूर्वेषां ये नस्तद्व्याचचक्षिरे॥
मन्त्र 4 (केन उपनिषद)
मूल पाठ:
अन्यदेव तद्विदितादथो अविदितादधि।
इति शुश्रुम पूर्वेषां ये नस्तद्व्याचचक्षिरे॥
शब्दार्थ:
- अन्यत्: भिन्न।
- देव: है।
- तत्: वह (ब्रह्म)।
- विदितात्: जो जाना हुआ है।
- अथ: और।
- अविदितात्: जो अज्ञात है।
- अधि: परे।
- इति: इस प्रकार।
- शुश्रुम: सुना।
- पूर्वेषां: पूर्वजों से।
- ये: जिन्होंने।
- नः: हमें।
- तत्: वह।
- व्याचचक्षिरे: स्पष्ट रूप से बताया।
अनुवाद:
वह (ब्रह्म) ज्ञात से भिन्न है और अज्ञात से भी परे है। हमने यह बात पूर्वजों और ज्ञानीजनों से सुनी है, जिन्होंने इसे स्पष्ट किया है।
व्याख्या:
1. ब्रह्म की परिभाषा:
- यह मन्त्र स्पष्ट करता है कि ब्रह्म "ज्ञात" (वह जो हमारी इंद्रियों और मन से समझा जा सकता है) और "अज्ञात" (वह जो हमारी पहुँच से परे है) दोनों से भिन्न है।
- ब्रह्म को किसी भी भौतिक या मानसिक श्रेणी में बाँधना संभव नहीं है।
2. ब्रह्म का अनुभव:
- ब्रह्म को केवल आत्मज्ञान और ध्यान के माध्यम से अनुभव किया जा सकता है। यह तर्क और ज्ञान के पार है।
- यह "ज्ञेय" और "अज्ञेय" के सभी भेदों से परे है।
3. पूर्वजों का ज्ञान:
- यह मन्त्र यह स्वीकार करता है कि ब्रह्म का सत्य कोई नया ज्ञान नहीं है। यह प्राचीन ज्ञानीजनों और ऋषियों द्वारा अनुभव किया गया है।
- यह हमें ज्ञान के उत्तराधिकार (परंपरा) की आवश्यकता और सम्मान का महत्व समझाता है।
4. द्वैत और अद्वैत का पारस्परिक संबंध:
- "विदित" और "अविदित" का यह भेद अद्वैत वेदांत के उस सिद्धांत से मेल खाता है, जिसमें ब्रह्म को केवल अनुभव के माध्यम से समझा जा सकता है, न कि तर्क या इंद्रियों से।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण:
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ज्ञात और अज्ञात का भेद:
- आधुनिक विज्ञान भी यह मानता है कि ब्रह्मांड का अधिकांश भाग "अज्ञात" है (जैसे डार्क मैटर, डार्क एनर्जी)।
- "ज्ञात और अज्ञात से परे" का अर्थ है, वह शक्ति जो इन दोनों को जोड़ती है।
-
क्वांटम भौतिकी:
- क्वांटम सिद्धांत कहता है कि किसी भी कण की स्थिति (ज्ञात) और गति (अज्ञात) को एक साथ पूरी तरह नहीं समझा जा सकता।
आध्यात्मिक संदेश:
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ब्रह्म की खोज:
- ब्रह्म केवल ज्ञान या अज्ञान से नहीं समझा जा सकता; इसे अनुभव और आत्मज्ञान से समझा जाता है।
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पूर्वजों का मार्गदर्शन:
- हमें उन ऋषियों और ज्ञानियों के अनुभवों का सम्मान करना चाहिए जिन्होंने इस सत्य को समझने का प्रयास किया।
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तर्क की सीमाएँ:
- यह मन्त्र तर्क की सीमाओं को रेखांकित करता है और आत्म-अनुभव के महत्व को उजागर करता है।
आधुनिक संदर्भ में उपयोग:
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ज्ञात और अज्ञात का संतुलन:
- यह मन्त्र हमें बताता है कि हमें ज्ञात (विज्ञान, भौतिक ज्ञान) और अज्ञात (आध्यात्मिकता) दोनों को समझने का प्रयास करना चाहिए।
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आत्मज्ञान का महत्व:
- आधुनिक जीवन में, जहाँ हम बाहरी ज्ञान पर अधिक ध्यान देते हैं, यह मन्त्र हमें आंतरिक ज्ञान और ध्यान की ओर उन्मुख करता है।
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परंपरा का सम्मान:
- प्राचीन ज्ञान और पूर्वजों के अनुभवों का सम्मान करना आज भी प्रासंगिक है।
निष्कर्ष:
मन्त्र 4 यह सिखाता है कि ब्रह्म ज्ञात और अज्ञात की सीमाओं से परे है। इसे केवल आत्म-अनुभव और ध्यान के माध्यम से समझा जा सकता है। यह हमें परंपरा और आत्मचिंतन का महत्व सिखाता है।
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