मन्त्र 4 (ईशावास्य उपनिषद),मूल पाठ अनेजदेकं मनसो जवीयो नैनद्देवा आप्नुवन्पूर्वमर्षत्। तद्धावतोऽन्यानत्येति तिष्ठत्तस्मिन्नपो मातरिश्वा दधाति।
मन्त्र 4 (ईशावास्य उपनिषद)
मूल पाठ
अनेजदेकं मनसो जवीयो नैनद्देवा आप्नुवन्पूर्वमर्षत्।
तद्धावतोऽन्यानत्येति तिष्ठत्तस्मिन्नपो मातरिश्वा दधाति।
शब्दार्थ
- अनेजत्: जो नहीं हिलता (स्थिर है)।
- एकम्: एक ही (अद्वितीय)।
- मनसः जवीयः: मन से भी अधिक तेज।
- न एनत्: इसे नहीं।
- देवाः: इंद्रियाँ।
- आप्नुवन्: प्राप्त कर पाती हैं।
- पूर्वम् अर्षत्: पहले से ही गति करता है।
- तत्: वह (परमात्मा)।
- धावतः अन्यान् अत्येति: दौड़ते हुए अन्य सभी को पार कर जाता है।
- तिष्ठत्: स्थिर रहता है।
- तस्मिन्: उसमें।
- अपः: जल।
- मातरिश्वा: वायु।
- दधाति: धारण करता है।
अनुवाद
परमात्मा न हिलता है (स्थिर है) और फिर भी मन से भी तेज है। इंद्रियाँ उसे प्राप्त नहीं कर सकतीं क्योंकि वह उनसे पहले ही गति कर चुका है। वह सब गतिशील वस्तुओं को पार कर जाता है और फिर भी स्थिर रहता है। उसी में वायु (मातरिश्वा) और जल विद्यमान हैं।
व्याख्या
यह मन्त्र परमात्मा के गुणों और सर्वव्यापकता का वर्णन करता है।
-
स्थिर और गतिशील दोनों:परमात्मा एक ही समय में स्थिर (न हिलने वाला) है और सभी गतिशील वस्तुओं को गति प्रदान करता है। वह मन से भी तेज है, क्योंकि मन से पहले ही वह सभी चीजों तक पहुँच चुका होता है।
-
इंद्रियों से परे:इंद्रियाँ (देवता) और मन, जो सबसे तेज माने जाते हैं, भी परमात्मा तक नहीं पहुँच सकते। परमात्मा इंद्रियों और मन की पकड़ से परे हैं।
-
सबको पार करता है:परमात्मा सभी दौड़ने वालों (गतिशील वस्तुओं) को पार कर जाता है और फिर भी स्थिर रहता है। इसका अर्थ है कि वह सब कुछ नियंत्रित करता है और फिर भी वह अपरिवर्तनीय है।
-
जल और वायु का आधार:जल और वायु जैसे जीवन के आधारभूत तत्व भी उसी परमात्मा में स्थित हैं। यह उनकी सार्वभौमिकता और सर्वशक्तिमत्ता को दर्शाता है।
आध्यात्मिक संदेश
- परमात्मा का स्वरूप: यह मन्त्र परमात्मा के अपार और असीम स्वरूप को समझने की प्रेरणा देता है। वह अद्वितीय, अचल और सब कुछ को व्याप्त करने वाला है।
- ज्ञान की सीमा: मन और इंद्रियाँ परमात्मा को समझने में असमर्थ हैं। केवल आत्मज्ञान और ध्यान के माध्यम से ही उसे अनुभव किया जा सकता है।
- सर्वव्यापकता: परमात्मा हर जगह विद्यमान है और सभी तत्व उसी में स्थित हैं।
आधुनिक संदर्भ में उपयोग
- यह मन्त्र सिखाता है कि हमारी इंद्रियाँ और मन भौतिक जगत तक सीमित हैं। आत्मा के सत्य को समझने के लिए इनसे ऊपर उठकर ध्यान और योग का सहारा लेना चाहिए।
- जीवन में स्थिरता और गति दोनों का संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है।
विशेष बात
परमात्मा को समझने के लिए हमें इंद्रियों और मन के सीमित दायरे से बाहर निकलकर आध्यात्मिक दृष्टि अपनानी होगी। वह स्थिर होकर भी हर जगह और हर समय गतिशील रहता है।
COMMENTS