उत्तररामचरितम्, तृतीय अंक, श्लोक 46 का अर्थ, व्याख्या और शाब्दिक विश्लेषण

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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Here is depiction of the serene, emotional scene with Rama, Sita in her radiant shadow form, and Vasanti. The atmosphere reflects deep sorrow, longing, and a mystical connection between the characters.
Here is depiction of the serene, emotional scene with Rama, Sita in her radiant shadow form, and Vasanti. The atmosphere reflects deep sorrow, longing, and a mystical connection between the characters.

संस्कृत पाठ और हिन्दी अनुवाद


संस्कृत पाठ:

सीता:
भगवति! प्रसीद।
क्षणमात्रमपि दुर्लभदर्शनं पश्यामि।

रामः:
अस्ति चेदानीमश्वमेधसहधर्मचारिणी मे।

सीता (साक्षेपम्):
आर्यपुत्र? का?

वासंती:
परिणीतमपि किम्?

रामः:
नहि, नहि।
हिरण्मयी सीताप्रतिकृतिः।

सीता (सोच्छ्वासास्रम्):
आर्यपुत्र! इदानीमसि त्वम्।
अहो! उत्खातितमिदानीं मे
परित्यागशल्यमार्यपुत्रेण।

रामः:
तत्रापि तावद् बाष्पदिग्धं चक्षुर्विनोदयामि।

सीता:
धन्या खलु सा, यैवमार्यपुत्रेण बहु मन्यते।
यैवमार्यपुत्रं विनोदयन्त्याशाबन्धनं
खलु जाता जीवलोकस्य।

तमसा (सस्मितस्नेहार्द्रं परिष्वज्य):
अयि वत्से! एवमात्मा स्तूयते।

सीता (सलज्जम्):
परिहसितास्मि भगवत्या।

वासंती:
महानयं व्यतिकरोऽस्माकं प्रसादः।
गमनं प्रति यथा कार्यहानिर्न भवति
तथा कार्यम्।

रामः:
तथाऽस्तु।

सीता:
प्रतिकूलेदानीं मे वासंती संवृत्ता।

तमसा:
वत्से! एहि गच्छावः।

सीता:
एवं करिष्यावः।

तमसा:
कथं वा गम्यते।
यस्यास्तव—
प्रत्युप्तस्येव दयिते तृष्णादीर्घस्य चक्षुषः।
मर्मच्छेदोपमैर्यत्नैः सन्निकर्षो निरुध्यते॥ ४६ ॥


हिन्दी अनुवाद:

सीता:
हे भगवती! कृपा करें।
मुझे आर्यपुत्र का दुर्लभ दर्शन
क्षणभर के लिए ही देखने दीजिए।

राम:
अब मेरे साथ अश्वमेध यज्ञ की सहधर्मचारिणी है।

सीता (साक्षेप में):
आर्यपुत्र? कौन?

वासंती:
क्या आपने किसी और से विवाह कर लिया?

राम:
नहीं, नहीं।
यह तो स्वर्णनिर्मित सीता की प्रतिकृति है।

सीता (गहरी साँस और आँसुओं के साथ):
हे आर्यपुत्र! अब आप वही हैं।
आह! आपने अब मेरे परित्याग का शूल उखाड़ दिया है।

राम:
फिर भी, मेरी अश्रुओं से भरी आँखें
उस दिशा में शांत हो जाती हैं।

सीता:
वह धन्य है, जिसे आर्यपुत्र इतना आदर देते हैं।
जो आर्यपुत्र को सांत्वना देती है,
वही संसार के लिए आशा का बंधन बन जाती है।

तमसा (स्नेह और मुस्कान के साथ आलिंगन करते हुए):
वत्से,
इस प्रकार तुम स्वयं की प्रशंसा कर रही हो।

सीता (लज्जा के साथ):
भगवती ने मुझे हँसी का पात्र बना दिया।

वासंती:
यह तो हमारे लिए एक महान घटना है।
अब हमें इस यात्रा को इस तरह पूरा करना होगा
कि हमारे कार्यों में कोई बाधा न आए।

राम:
ऐसा ही होगा।

सीता:
अब वासंती मेरी विरोधी हो गई हैं।

तमसा:
वत्से, आओ, चलें।

सीता:
ऐसा ही करेंगे।

तमसा:
लेकिन यह कैसे संभव होगा?
तुम्हारी—
प्रिय के प्रति दीर्घकालीन दृष्टि,
जो तृष्णा और चेष्टा से जुड़ी है,
और हृदय को चीरने वाली पीड़ा के समान
उस निकटता को रोकने का प्रयास।


शब्द-विश्लेषण

1. अश्वमेधसहधर्मचारिणी

  • समास: तत्पुरुष समास (अश्वमेध + सहधर्मचारिणी)।
    • अश्वमेध: यज्ञ का नाम;
    • सहधर्मचारिणी: साथ में धर्म का पालन करने वाली पत्नी।
  • अर्थ: अश्वमेध यज्ञ में साथ देने वाली धर्मपत्नी।

2. सीताप्रतिकृतिः

  • संधि-विच्छेद: सीता + प्रतिकृतिः।
    • प्रतिकृतिः: प्रतिमा या प्रतिकृति।
  • अर्थ: सीता की प्रतिमा।

3. परित्यागशल्यमार्यपुत्रेण

  • समास: षष्ठी तत्पुरुष समास (परित्याग + शल्य + आर्यपुत्रेण)।
    • परित्याग: त्याग;
    • शल्य: कांटा या शूल;
    • आर्यपुत्रेण: आर्यपुत्र द्वारा।
  • अर्थ: आर्यपुत्र ने त्याग का शूल निकाल दिया है।

4. मर्मच्छेदोपमैर्यत्नैः

  • समास: कर्मधारय समास (मर्म + छेद + उपम + यत्नैः)।
    • मर्म: हृदय का संवेदनशील भाग;
    • छेद: चोट;
    • उपमः: के समान;
    • यत्नैः: प्रयासों से।
  • अर्थ: हृदय-चोट के समान प्रयासों से।

व्याख्या:

यह अंश राम, सीता और तमसा के बीच गहन भावनाओं और संघर्ष को दर्शाता है।

  • राम: अपनी पीड़ा के बावजूद, अपने कर्तव्यों और अश्वमेध यज्ञ के लिए सीता की प्रतिमा का सहारा लेते हैं।
  • सीता: राम की बातों से आहत होती हैं, लेकिन उनका प्रेम और त्याग उनके हृदय में बना रहता है।
  • तमसा: सीता को सांत्वना देती हैं और आगे की यात्रा के लिए प्रेरित करती हैं।
  • वासंती: स्थिति की गंभीरता को समझते हुए सबको धैर्य रखने का सुझाव देती हैं।

यह अंश प्रेम, त्याग और कर्तव्य के गहरे संघर्ष का प्रतीक है।

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