उत्तररामचरितम्, तृतीय अंक, श्लोक 41, 42 का अर्थ, व्याख्या और शाब्दिक विश्लेषण

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
0

 

Here is depiction of the serene, emotional scene with Rama, Sita in her radiant shadow form, and Vasanti. The atmosphere reflects deep sorrow, longing, and a mystical connection between the characters.
Here is depiction of the serene, emotional scene with Rama, Sita in her radiant shadow form, and Vasanti. The atmosphere reflects deep sorrow, longing, and a mystical connection between the characters.

संस्कृत पाठ और हिन्दी अनुवाद


संस्कृत पाठ:

सीता:
हा धिक् हा धिक्! आर्यपुत्रस्पर्शमोहितायाः प्रमादो मे संवृत्तः।

रामः:
सखि वासंती!
आनन्दमीलितः प्रियास्पर्शसाध्वसेन परवानस्मि।
तत्त्वमपि धारय माम्।

वासंती:
कष्टम्! उन्माद एव।
(सीता ससंभ्रमं हस्तमाक्षिप्यापसर्पति।)

रामः:
धिक्! प्रमादः।
करपल्लवः स तस्याः सहसैव जडो जडात्परिभ्रष्टः।
परिकम्पिनः प्रकम्पी करान्मम स्विद्यतः स्विद्यन्॥ ४१ ॥

सीता:
हा धिक् हा धिक्! अद्याप्यनुबद्धबहुघूर्णमानवेदनं
न संस्थापयाम्यात्मानम्।

तमसा:
(सस्नेहकौतुकस्मितं निर्वर्ण्य)
सस्वेदरोमाञ्चितकम्पिताङ्गी
जाता प्रियस्पर्शसुखेन वत्सा।
मरुन्नवाम्भः परिधूतसिक्ता
कदम्बयष्टिः स्फुटकोरकेव॥ ४२ ॥


हिन्दी अनुवाद:

सीता:
हे दुर्भाग्य! हे दुर्भाग्य!
आर्यपुत्र के स्पर्श से मोहित होकर मुझसे यह प्रमाद हो गया।

राम:
हे सखी वासंती!
प्रिय के स्पर्श के आनंद और उससे उत्पन्न श्रद्धा से मैं पूरी तरह अभिभूत हो गया हूँ।
तुम मुझे संभालो।

वासंती:
यह तो बड़ा कष्ट है! यह तो उन्माद जैसा है।
(सीता घबराकर हाथ खींच लेती हैं और पीछे हट जाती हैं।)

राम:
धिक्कार है! यह प्रमाद है।
उनका वह कोमल हाथ,
जो अचानक मेरे हाथ से निकलकर जड़वत हो गया।
उसके कम्पन ने मेरे भी हाथ को
स्वेद और कंप से प्रभावित कर दिया।

सीता:
हे दुर्भाग्य! हे दुर्भाग्य!
अब भी, जो गहन और चक्कर उत्पन्न करने वाली वेदना है,
उससे मैं स्वयं को स्थिर नहीं कर पा रही हूँ।

तमसा:
(सस्नेह और कौतुकपूर्ण मुस्कान के साथ)
वत्से!
प्रिय के स्पर्श के सुख से,
तुम स्फुरित रोमकूपों और कम्पायमान अंगों वाली हो गई हो।
तुम्हारी अवस्था ऐसी हो गई है,
जैसे मरुस्थल में नवीन जल से सिंचित
और वायु द्वारा झकोरे गए कदम्ब की डाली,
जिसकी कलियाँ अभी-अभी खिलने लगी हों।


शब्द-विश्लेषण

1. आर्यपुत्रस्पर्शमोहितायाः प्रमादो मे संवृत्तः

  • संधि-विच्छेद: आर्यपुत्र + स्पर्श + मोहितायाः + प्रमादः + मे + संवृत्तः।
    • स्पर्शमोहितायाः: स्पर्श से मोहित होकर;
    • प्रमादः: चूक या भूल;
    • संवृत्तः: हो गया।
  • अर्थ: आर्यपुत्र के स्पर्श से मोहित होकर मुझसे चूक हो गई।

2. प्रियास्पर्शसाध्वसेन परवानस्मि

  • समास: बहुव्रीहि समास (प्रिय + स्पर्श + साध्वसेन)।
    • प्रियास्पर्श: प्रिय के स्पर्श;
    • साध्वस: श्रद्धा, सुखद भय;
    • परवानस्मि: मैं पूरी तरह अभिभूत हो गया हूँ।
  • अर्थ: प्रिय के स्पर्श और उससे उत्पन्न श्रद्धा से मैं अभिभूत हूँ।

3. करपल्लवः स तस्याः

  • समास: कर्मधारय समास (कर + पल्लवः)।
    • कर: हाथ;
    • पल्लवः: कोमल पत्ती।
  • अर्थ: उनका कोमल हाथ।

4. मरुन्नवाम्भः परिधूतसिक्ता कदम्बयष्टिः स्फुटकोरकेव

  • समास: उपमान कर्मधारय समास (मरुत् + नव + अम्भः + परिधूत + सिक्त + कदम्ब + यष्टिः + स्फुट + कोरकेव)।
    • मरुत्: हवा;
    • नवाम्भः: ताजा पानी;
    • परिधूतसिक्ता: झकोरे से सिंचित;
    • कदम्बयष्टिः: कदम्ब की डाली;
    • स्फुटकोरकेव: खिलती हुई कलियों जैसी।
  • अर्थ: ताजा पानी और हवा से सिंचित कदम्ब की डाली, जिसकी कलियाँ खिलने लगी हों।

व्याख्या:

यह अंश प्रेम, संकोच और आनंद की भावनाओं को प्रकट करता है।

  • सीता: राम के स्पर्श से मोहित होकर, अपने प्रमाद पर खेद व्यक्त करती हैं।
  • राम: सीता के स्पर्श से अभिभूत होकर इसे आनंद और श्रद्धा का अनुभव बताते हैं।
  • तमसा: सीता की अवस्था को एक नई ऊर्जा और सुखद परिवर्तन के रूप में देखती हैं, जो प्रेम के स्पर्श का परिणाम है।

यह अंश दर्शाता है कि प्रेम, शारीरिक और भावनात्मक स्तर पर, गहन और गूढ़ परिवर्तन लाता है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

thanks for a lovly feedback

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top