उत्तररामचरितम्, तृतीय अंक, श्लोक 40 का अर्थ, व्याख्या और शाब्दिक विश्लेषण

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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Here is depiction of the serene, emotional scene with Rama, Sita in her radiant shadow form, and Vasanti. The atmosphere reflects deep sorrow, longing, and a mystical connection between the characters.
Here is depiction of the serene, emotional scene with Rama, Sita in her radiant shadow form, and Vasanti. The atmosphere reflects deep sorrow, longing, and a mystical connection between the characters.

संस्कृत पाठ और हिन्दी अनुवाद


संस्कृत पाठ:
रामः:
(सानन्दं निमीलिताक्ष एव)
सखि वासंती! दिष्ट्या वर्धसे।

वासंती:
कथमिव?

रामः:
सखि! किमन्यत्। पुनरपि प्राप्ता जानकी।

वासंती:
अयि देव रामभद्र! क्व सा?

रामः:
(स्पर्शसुखमभिनीय)
पश्य, नन्वियं पुरत एव।

वासंती:
अयि देव रामभद्र! किमिति मर्मच्छेददारुणैरतिप्रलापैः
प्रियसखीविपत्तिदुःखदग्धामपि मां पुनर्मन्दभाग्यां दहसि?

सीता:
अपसर्तुमिच्छामि। एष पुनः चिरप्रणयम्भारसौम्यशीतलेन
आर्यपुत्रस्पर्शेन दीर्घदारुणमपि झटिति सन्तापमुल्लाघयता
वज्रलेपोपनद्ध इव पर्यस्तव्यापार आसज्जित इव मेऽग्रहस्तः।

रामः:
सखि! कुतः प्रलापः?
गृहीतो यः पूर्वं परिणयविधौ कङ्कणधरः सुधासूतेः
पादैरमृतशिशिरैर्यः परिचितः।

सीता:
आर्यपुत्र! स एवेदानीमसि त्वम्।

रामः:
स एवायं तस्यास्तदितरकरौपम्यसुभगो
मया लब्धः पाणिर्ललितलवलीकन्दलनिभः॥ ४० ॥
(इति गृह्णाति।)


हिन्दी अनुवाद:

राम:
(आनंदित होकर और आँखें मूँदते हुए)
हे सखी वासंती! तुम्हारी अवस्था देखकर मुझे सुख हुआ।

वासंती:
कैसे?

राम:
हे सखी! अब और क्या कहूँ, जानकी मुझे पुनः प्राप्त हुई हैं।

वासंती:
हे देव रामभद्र! वह कहाँ हैं?

राम:
(स्पर्श के सुख का अनुभव करते हुए)
देखो, क्या वह यहीं सामने नहीं हैं?

वासंती:
हे देव रामभद्र!
आप इन हृदय को चीरने वाले तीव्र शब्दों से,
प्रिय सखी की विपत्ति के दुःख से जल चुकी
मुझे, दुर्भाग्यशाली को, फिर से क्यों जलाते हैं?

सीता:
मैं यहाँ से हटना चाहती हूँ।
आर्यपुत्र के इस चिरकालीन प्रेम से भारयुक्त,
शीतल स्पर्श से,
मेरे दीर्घकालिक और कठोर दुःख को अचानक ही समाप्त कर दिया है।
यह स्पर्श मानो वज्र-लेप से बँधा हुआ है और
मेरे दाहिने हाथ को एक अचल स्थिति में जकड़ लिया है।

राम:
सखी! यह प्रलाप क्यों?
वह हाथ, जो पहले विवाह संस्कार में कंगन से सुशोभित था,
जिसे देवी सीता के अमृत-शीतल चरणों का स्पर्श प्राप्त हुआ था।

सीता:
हे आर्यपुत्र! अब आप वही हैं।

राम:
हाँ, यह वही हाथ है,
जो देवी का, दूसरे हाथ की कोमलता और सौंदर्य से युक्त,
मुझे प्राप्त हुआ है।
जो कोमल लता के अंकुर के समान सुंदर है।
(राम सीता का हाथ पकड़ते हैं।)


शब्द-विश्लेषण

1. पुनरपि प्राप्ता जानकी

  • संधि-विच्छेद: पुनः + अपि + प्राप्ता + जानकी।
    • पुनरपि: फिर से;
    • प्राप्ता: प्राप्त हुईं;
    • जानकी: सीता का दूसरा नाम।
  • अर्थ: जानकी मुझे फिर से प्राप्त हुईं।

2. मर्मच्छेददारुणैरतिप्रलापैः

  • समास: बहुव्रीहि समास (मर्म + छेद + दारुणैः + अति + प्रलापैः)।
    • मर्म: हृदय का संवेदनशील भाग;
    • छेद: चीरना;
    • दारुणैः: कठोर;
    • प्रलापैः: शब्दों या शिकायतों द्वारा।
  • अर्थ: हृदय-विदारक कठोर शब्दों द्वारा।

3. चिरप्रणयम्भारसौम्यशीतलेन

  • संधि-विच्छेद: चिर + प्रणय + भार + सौम्य + शीतलेन।
    • चिरप्रणय: दीर्घकालिक प्रेम;
    • सौम्य: शीतल और सुखदायक;
    • शीतलेन: ठंडे प्रभाव से।
  • अर्थ: दीर्घकालिक प्रेम से सौम्य शीतल प्रभाव।

4. वज्रलेपोपनद्ध

  • समास: कर्मधारय समास (वज्र + लेप + उपनद्ध)।
    • वज्र: कठोर;
    • लेप: लेप;
    • उपनद्ध: बाँधा हुआ।
  • अर्थ: वज्र-लेप से बाँधा हुआ।

5. परिणयविधौ कङ्कणधरः

  • समास: कर्मधारय समास (परिणय + विधौ + कङ्कण + धरः)।
    • परिणयविधौ: विवाह के संस्कार में;
    • कङ्कणधरः: कंगन पहनाने वाला।
  • अर्थ: विवाह संस्कार में कंगन से सुशोभित।

व्याख्या:

यह अंश राम और सीता के पुनर्मिलन की भावनात्मक तीव्रता को दर्शाता है।

  • राम: सीता के पुनः पास होने का अनुभव करते हैं और इसे अपने जीवन का पुनर्जन्म मानते हैं।
  • सीता: राम के प्रेम और स्पर्श से अपने दुःख और कष्ट को समाप्त हुआ अनुभव करती हैं।
  • वासंती: राम और सीता के भावनात्मक संवाद को देखकर हतप्रभ हैं और राम को उनकी कठोरता के लिए उलाहना देती हैं।

इस अंश में प्रेम, पुनर्मिलन, और शोक के समाप्ति की गहनता को सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया है।

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