उत्तररामचरितम्, श्लोक 4 का अर्थ, व्याख्या और शाब्दिक विश्लेषण,उत्तररामचरितम्, तृतीय अंक, श्लोक 4 का अर्थ, व्याख्या और शाब्दिक विश्लेषण,
उत्तररामचरितम्, तृतीय अंक, श्लोक 4 का अर्थ, व्याख्या और शाब्दिक विश्लेषण |
संस्कृत पाठ और हिन्दी अनुवाद
संस्कृत पाठ:
तमसा:
इदानीं तु शम्बूकवृत्तान्तेनानेन सम्भावितजनस्थानं रामभद्रं सरयूमुखादुपश्रुत्य भगवती भागीरथी यदेव लोपामुद्रया स्नेहादभिशङ्कितं तदेवाभिशङ्क्य सीतासमेता केनचिदिव गृहाचारव्यपदेशेन गोदावरीमुपागता।
मुरला:
सुष्ठु चिन्तितं भगवत्या भागीरथ्या।
‘राजनीतिस्थितस्यास्य खलु तैश्च तैश्च जगतामाभ्युदयिकैः कार्यैर्व्यापृतस्य रामभद्रस्य नियताश्चित्तविक्षेपाः। अव्यग्रस्य पुनरस्य शोकमात्रद्वितीयस्य पञ्चवटीप्रवेशो महाननर्थ’ इति।
कथं सीतया रामभद्रोऽयमाश्वासनीयः स्यात्?
तमसा:
उक्तमेव भगवत्या भागीरथ्या—
‘वत्से, देवयजनसम्भवे सीते! अद्य खलु आयुष्मतोः कुशलवयोर्द्वादशस्य जन्मवत्सरस्य सङ्ख्यामङ्गलग्रन्थिरभिवर्तते।
तदात्मनः पुराणश्वशुरमेतावतो मानवस्य राजर्षिवंशस्य प्रसवितारं सवितारमपतपाप्मानं देवं स्वहस्तापचितैः पुष्पैरुपतिष्ठस्व।
न त्वामवनिपृष्ठवर्तिनीमस्मत्प्रभावाद्वनदेवता अपि द्रक्ष्यन्ति किमुत मर्त्याः?’ इति।
अहमप्याज्ञापिता—
‘तमसे! त्वयि प्रकृष्टप्रेमैव वधूर्जानकी। अतस्त्वमेवास्याः प्रत्यनन्तरीभव’ इति।
साऽहमधुना यथाऽदिष्टमनुतिष्ठामि।
मुरला:
अहमप्येतं वृत्तान्तं भगवत्यै लोपामुद्रायै निवेदयामि।
रामभद्रोऽप्यागत एवेति तर्कयामि।
तमसा:
तदियं गोदावरीह्रदान्निर्गत्य—
परिपाण्डुदुर्बलकपोलसुन्दरं दधती विलोलकबरीकमाननम्।
करुणस्य मूर्तिरथवा शरीरिणी विरहव्यथेव वनमेति जानकी॥ ४ ॥
हिन्दी अनुवाद:
तमसा:
अब शम्बूक-वृत्तांत के कारण जनस्थान में रामभद्र की सम्भावना को सुनकर,
सरयु के तट से भगवती भागीरथी ने लोपामुद्रा के स्नेह से जो शंका प्रकट की थी,
उसी को लेकर, और सीता के साथ किसी गृहाचार (सामाजिक औचित्य) के बहाने
वे गोदावरी तक आ पहुँची हैं।
मुरला:
भगवती भागीरथी ने यह बहुत उचित सोचा।
"राजनीति में व्यस्त इस रामभद्र का मन विभिन्न
जगत के कल्याणकारी कार्यों में उलझा हुआ है।
लेकिन जब यह बिना विचलित हुए अपने शोकमात्र से ग्रस्त होकर
पञ्चवटी के वन में प्रवेश करेगा, तो यह अत्यंत हानिकर सिद्ध होगा।"
ऐसे में सीता रामभद्र को कैसे सांत्वना दे सकेंगी?
तमसा:
भगवती भागीरथी ने कहा—
"वत्से, देवयजन में उपस्थित सीते! आज तुम्हारे पुत्रों
कुश और लव के बारहवें जन्मवर्ष की संख्याएँ मंगलसूत्र के समान समीप आ रही हैं।
इसलिए तुम अपने प्राचीन श्वसुर, इस राजर्षि वंश के प्रसवक और
पापहीन देवता को अपने हाथों से पुष्प अर्पण कर पूजनीय बनाओ।
धरती पर उपस्थित होते हुए भी, मेरे प्रभाव से,
तुम्हें न कोई वनदेवता देख पाएगा और न कोई मनुष्य।"
मुझे भी आदेश दिया गया था,
"तमसे! तुम्हारे प्रति वधू जानकी का गहन प्रेम है।
इसलिए तुम ही उनके लिए साथी बनो।"
इस प्रकार मैं अब जैसा कहा गया है, वैसा ही कर रही हूँ।
मुरला:
मैं भी इस वृत्तांत को भगवती लोपामुद्रा तक पहुँचाती हूँ।
मुझे तो यह भी लगता है कि रामभद्र यहाँ आ चुके हैं।
तमसा:
देखो, यह गोदावरी के जल से निकलती हुई—
सीता, जिनके पाण्डु और दुर्बल कपोल अत्यंत सुंदर हैं,
जिनके बिखरे बाल उनके चेहरे की शोभा बढ़ा रहे हैं,
वे करुणा की सजीव मूर्ति या विरह से पीड़ित वन में प्रवेश करती हुई दिखाई देती हैं।
शब्द-विश्लेषण:
-
शम्बूकवृत्तान्ते -
- शम्बूक - एक शूद्र तपस्वी, जिसकी राम ने हत्या की थी।
- वृत्तान्ते - घटना का विवरण।
अर्थ: शम्बूक की घटना।
-
भागीरथ्या -
- भागीरथी - गंगा।
अर्थ: गंगा देवी।
- भागीरथी - गंगा।
-
देवयजनसम्भवे -
- देवयजन - देवताओं के लिए किया गया यज्ञ।
- सम्भवे - उपस्थित।
अर्थ: यज्ञ में उपस्थित।
-
अभिशङ्कितं -
- अभि + शङ्कित - शंका करना।
अर्थ: शंका जताना।
- अभि + शङ्कित - शंका करना।
-
परिपाण्डुदुर्बल -
- परि + पाण्डु - अत्यंत पीला।
- दुर्बल - दुर्बल।
अर्थ: अत्यंत पीला और कमजोर।
-
विलोलकबरीकमाननम् -
- विलोल - बिखरा हुआ।
- कबरीक - बाल।
- माननम् - मुख।
अर्थ: बिखरे बालों वाला चेहरा।
-
विरहव्यथा -
- विरह - वियोग।
- व्यथा - पीड़ा।
अर्थ: वियोग की पीड़ा।
व्याख्या:
यह अंश रामायण के परवर्ती घटनाक्रम का चित्रण करता है, जहाँ शम्बूक-वध और राम के शोक का वर्णन किया गया है। सीता का विरह, राम का मानसिक संघर्ष और वनदेवता की भूमिका कहानी में गहराई जोड़ते हैं।
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