मन्त्र 2 (केन उपनिषद) मूल पाठ:श्रोत्रस्य श्रोत्रं मनसो मनो यद्वाचो ह वाचं स उ प्राणस्य प्राणः चक्षुषश्चक्षुः। अतिमुच्य धीराः प्रेत्यास्माल्लोकादमृता
मन्त्र 2 (केन उपनिषद)
शब्दार्थ:
- श्रोत्रस्य श्रोत्रं: श्रवण (कान) का श्रवण (स्रोत)।
- मनसो मनः: मन का मन (स्रोत)।
- वाचः वाचं: वाणी की वाणी (स्रोत)।
- स उ प्राणस्य प्राणः: प्राण का प्राण।
- चक्षुषः चक्षुः: नेत्रों का नेत्र।
- अतिमुच्य: मुक्त होकर।
- धीराः: विवेकी, ज्ञानीजन।
- प्रेत्य: मृत्यु के बाद।
- अस्मात् लोकात्: इस संसार से।
- अमृता भवन्ति: अमर हो जाते हैं।
अनुवाद:
जो श्रवण का श्रवण, मन का मन, वाणी की वाणी, प्राण का प्राण, और नेत्रों का नेत्र है – ज्ञानीजन उसे समझकर इस संसार से मुक्त हो जाते हैं और अमर हो जाते हैं।
व्याख्या:
1. इंद्रियों का स्रोत:
- यह मन्त्र बताता है कि इंद्रियां जैसे श्रवण, मन, वाणी, प्राण, और नेत्र अपनी शक्ति किसी उच्च स्रोत से प्राप्त करती हैं।
- यह उच्च स्रोत "ब्रह्म" है, जो इन सभी इंद्रियों और कार्यों का आधार है।
2. ब्रह्म की गहराई:
- ब्रह्म को "श्रोत्रस्य श्रोत्रं", "मनसो मनः", आदि कहकर यह स्पष्ट किया गया है कि वह प्रत्येक इंद्रिय और क्रिया का मूल है।
- यह दिखाता है कि हमारी इंद्रियां और मन स्वतंत्र नहीं हैं; वे ब्रह्म की शक्ति से संचालित होती हैं।
3. आत्मज्ञान का महत्व:
- जो व्यक्ति इस ब्रह्म को जान लेता है, वह संसार के मोह से मुक्त हो जाता है और मृत्यु के बंधन से छूटकर अमर हो जाता है।
- "अमृत" का अर्थ है मोक्ष, जहाँ जन्म और मृत्यु का चक्र समाप्त हो जाता है।
4. धीरता (विवेकशीलता):
- "धीराः" का अर्थ है वे लोग जो विवेकशील और आत्मज्ञान की साधना में तत्पर हैं। केवल ऐसे लोग ही इस सत्य को समझ सकते हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण:
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इंद्रियों का संचालन:
- आधुनिक विज्ञान मानता है कि हमारी इंद्रियां और मन किसी गहन ऊर्जा या चेतना से संचालित होती हैं। यह मन्त्र उस "चेतना" को ब्रह्म के रूप में पहचानता है।
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चेतना और इंद्रियों का संबंध:
- न्यूरोसाइंस भी यह मानता है कि हमारी चेतना इंद्रियों और मस्तिष्क के कार्यों से परे है।
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ब्रह्म और ऊर्जा:
- "प्राण का प्राण" आधुनिक भौतिकी में ऊर्जा के स्रोत की खोज जैसा है। विज्ञान इसे "डार्क एनर्जी" या "यूनिवर्सल फोर्स" कह सकता है।
आध्यात्मिक संदेश:
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इंद्रियों से परे सत्य:
- यह मन्त्र सिखाता है कि हमारी इंद्रियां केवल उपकरण हैं। उनका स्रोत और संचालन ब्रह्म के द्वारा होता है।
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आत्मज्ञान की यात्रा:
- जो व्यक्ति अपने इंद्रियों के स्रोत (ब्रह्म) को पहचानता है, वह जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है।
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ध्यान और साधना का महत्व:
- ब्रह्म को समझने के लिए इंद्रियों को शांत करना और आत्मचिंतन करना आवश्यक है।
आधुनिक संदर्भ में उपयोग:
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स्वयं की पहचान:
- यह मन्त्र हमें यह सिखाता है कि हमें अपनी इंद्रियों के पीछे छिपे ब्रह्म (चेतना) को पहचानने की कोशिश करनी चाहिए।
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ध्यान और आत्मविश्लेषण:
- आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए ध्यान और आत्मचिंतन आवश्यक है।
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आध्यात्मिक दृष्टिकोण:
- यह मन्त्र बताता है कि भौतिक इंद्रियों से परे एक उच्च सत्य है, जिसे केवल विवेक और आत्मिक दृष्टि से समझा जा सकता है।
निष्कर्ष:
मन्त्र 2 यह समझाने का प्रयास करता है कि हमारी इंद्रियां और मन ब्रह्म से प्रेरित हैं। इसे जानने वाले व्यक्ति मृत्यु के बंधन से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करते हैं।
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